भारतीय संस्कृति में पूजा कक्ष या मंदिर का बड़ा महत्व है क्योंकि यहां देवी-देवताओं की मूर्तियां और धार्मिक ग्रंथ रखे जाते हैं और पूरा परिवार मिलकर पूजा और आराधना करता है। मंदिर एक पवित्र स्थान है और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के निर्माण और कमरों के स्थान निर्धारण के कुछ नियम होते हैं, जिनमें मंदिर की दिशा भी शामिल है। हर दिशा का अपना एक विशेष महत्व और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से संबंध होता है। अगर मंदिर को वास्तु के अनुसार सही दिशा में रखा जाए, तो यह न केवल घर की ऊर्जा को संतुलित करता है, बल्कि आध्यात्मिक विकास में भी मदद करता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर रखने की सबसे शुभ दिशा है – उत्तर-पूर्व दिशा, जिसे ईशान कोण कहा जाता है। यह दिशा भगवान ईशान से जुड़ी मानी जाती है और इसे ज्ञान और बुद्धिमत्ता की दिशा कहा गया है। इस दिशा में मंदिर रखने से घर में सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। इस लेख में हम आपको मंदिर की दिशा और स्थान से जुड़े कुछ और वास्तु उपाय भी बताएंगे।
मंदिर की दिशा और वास्तु के नियम
- मंदिर के लिए शुभ दिशा: ईशान कोण (उत्तर-पूर्व), घर का मध्य भाग, पूर्व या उत्तर दिशा मंदिर के लिए सबसे शुभ मानी जाती है।
- जिन दिशाओं से बचना चाहिए: दक्षिण और आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) दिशा में मंदिर स्थापित करने से बचें।
- मंदिर के लिए आदर्श स्थान: पूजा कक्ष या घर का बैठक (लिविंग रूम) सबसे उत्तम स्थान होता है।
- किस मंजिल पर मंदिर होना चाहिए: भूतल (ग्राउंड फ्लोर) पर मंदिर रखना सबसे उत्तम माना गया है।
- इन स्थानों पर मंदिर बनाने से बचें: बेसमेंट, सीढ़ियों के नीचे, मुख्य द्वार के सामने या शौचालय के पास मंदिर नहीं होना चाहिए।
- पूजा करते समय किस दिशा की ओर मुख होना चाहिए: पूर्व, पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा करें।
- देवी-देवताओं की मूर्तियां किस दिशा की ओर हों: भगवान का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए ताकि भक्त का मुख पूर्व की ओर रहे।
- पूजा कक्ष में क्या-क्या रखें: दीपक, फूल, देवी-देवताओं की मूर्तियां या चित्र, अगरबत्तियां और पवित्र धार्मिक पुस्तकें।
- पूजा कक्ष में क्या नहीं रखना चाहिए: जानवरों की खाल, चमड़े की वस्तुएं, धन-संपत्ति से जुड़ी सामग्री और क्रोधित रूप में दर्शाए गए देवी-देवताओं की तस्वीर।
- मंदिर के लिए शुभ रंग: सफेद, नारंगी, क्रीम, हल्का पीला, हल्का नीला, लैवेंडर और बेज रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक होते हैं।
- इन रंगों से बचना चाहिए: काला और गहरा भूरा रंग मंदिर में नहीं होना चाहिए।
- मंदिर बनाने के लिए उत्तम सामग्री: लकड़ी और प्राकृतिक पत्थर जैसे संगमरमर (मार्बल) और ग्रेनाइट सबसे उत्तम माने जाते हैं।
- मंदिर की ऊंचाई: मंदिर की ऊंचाई लगभग 32 से 36 इंच के बीच होनी चाहिए, ताकि यह पूजा के समय सुविधाजनक हो।
मंदिर की दिशा और वास्तु के नियम
मंदिर के लिए सर्वोत्तम दिशा | उत्तर-पूर्व, घर का मध्य, पूर्व और उत्तर |
इस दिशा में मंदिर न रखें | दक्षिण, दक्षिण-पूर्व |
मंदिर के लिए सर्वोत्तम स्थान | पूजा कक्ष या बैठक कक्ष |
घर में सबसे अच्छा फर्श | भूतल |
मंदिर के लिए किन स्थानों से बचें | बेसमेंट, सीढ़ी के नीचे, मुख्य दरवाजे के सामने, बाथरूम के पास |
पूजा करते समय किस दिशा में मुख करें | पूर्व, पश्चिम या उत्तर |
भगवान का मुख किस दिशा में होना चाहिए? | पश्चिम |
पूजा कक्ष में रखने योग्य चीजें | दीपक, फूल, देवी-देवताओं की मूर्तियां या चित्र, अगरबत्ती और पवित्र पुस्तकें |
पूजा कक्ष में किन चीजों से बचें | पशु की खाल या चमड़े की वस्तुएं और पैसा |
मंदिर के लिए सर्वोत्तम रंग | सफेद, नारंगी, क्रीम, हल्का पीला, हल्का नीला, लैवेंडर और बेज |
किन रंगों से बचें | काला और गहरा भूरा |
मंदिर डिजाइन के लिए सर्वोत्तम सामग्री | लकड़ी और प्राकृतिक पत्थर जैसे संगमरमर और ग्रेनाइट |
मंदिर की ऊंचाई | लगभग 32 से 36 इंच |
घर में मंदिर किस दिशा में होना चाहिए?
ईशान कोण: सबसे शुभ दिशा
मंदिर को उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में रखना शुभ माना जाता है। यह दिशा बृहस्पति ग्रह से जुड़ी होती है और इसमें मंदिर स्थापित करने से घर में सकारात्मकता और सौहार्द बना रहता है।
वास्तु के अनुसार, यह दिशा भगवान शिव से संबंधित मानी जाती है और यह पवित्रता व आध्यात्मिकता का प्रतीक है। साथ ही, यह दिशा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, जो प्रकृति के पांच तत्वों में से एक है और यह संतुलन का प्रतीक मानी जाती है।
विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाए तो ईशान कोण में सूर्य की पहली किरणें पड़ती हैं, जिससे यह कोना ऊर्जा से भर जाता है, इसलिए यह ध्यान और पूजा के लिए आदर्श स्थान माना जाता है।
घर का केंद्र: पवित्र स्थान
घर का बीच का हिस्सा ब्रह्मस्थान कहलाता है। यह स्थान ऊर्जा का सबसे मजबूत केंद्र होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इस स्थान पर मंदिर रखने से घर में समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का वास होता है। अगर मंदिर न रख पाएं तो यहां एक छोटा-सा पूजा स्थल या धार्मिक क्रियाएं करने की जगह बनाई जा सकती है।
पूर्व दिशा: मंदिर स्थापना का एक वैकल्पिक स्थान
सूर्य और देवेंद्र की अधिपत्य वाली पूर्व दिशा भी घर में मंदिर रखने के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिशा में मंदिर स्थापित करने से समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
उत्तर दिशा: धन का कोना
धन के देवता कुबेर की दिशा उत्तर, घर में मंदिर रखने के लिए बेहद लाभकारी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिशा में मंदिर रखने से घर में धन-धान्य बढ़ता है।
पश्चिम दिशा: एक व्यावहारिक विकल्प
यदि घर में मंदिर के लिए अन्य दिशाएं उपलब्ध नहीं हैं तो पश्चिम दिशा को एक व्यावहारिक समाधान के रूप में चुना जा सकता है। यह दिशा वरुण देव द्वारा शासित मानी जाती है।
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष की विशेषज्ञ जयश्री धामाणी के अनुसार, पृथ्वी का झुकाव भी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर ही होता है और यह अपनी गति की शुरुआत भी वहीं से करती है, इसलिए यह कोना एक रेल इंजन की तरह है, जो पूरे डिब्बों को खींचता है।
घर में मंदिर की दिशा भी ठीक वैसे ही काम करती है, वह पूरे घर की ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करती है और उसे आगे बढ़ाती है।
मंदिर की दिशा कैसे पहचानें?
जब घर में मंदिर की सही दिशा निर्धारित करना हो तो सबसे पहले एक कंपास लें और घर के मध्य में खड़े होकर दिशाओं की पहचान करें। जिस दिशा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है, वही मुख्य द्वार कहलाता है। मंदिर की दिशा इसी के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।
यह भी देखें: लिविंग रूम में पूजा स्थान: वह सब जो आपको जानना चाहिए
घर में मंदिर की दिशा: त्वरित तथ्य
मंदिर के लिए सर्वोत्तम दिशा | उत्तर-पूर्व, घर का मध्य, पूर्व और उत्तर |
इस दिशा में मंदिर न रखें | दक्षिण, दक्षिण-पूर्व |
मंदिर के लिए सर्वोत्तम स्थान | पूजा कक्ष या बैठक कक्ष |
घर में सबसे अच्छा फर्श | भूतल |
मंदिर के लिए किन स्थानों से बचें | बेसमेंट, सीढ़ी के नीचे, मुख्य दरवाजे के सामने, बाथरूम के पास |
पूजा करते समय किस दिशा में मुख करें | पूर्व, पश्चिम या उत्तर |
भगवान का मुख किस दिशा में होना चाहिए? | पश्चिम |
पूजा कक्ष में रखने योग्य चीजें | दीपक, फूल, देवी-देवताओं की मूर्तियां या चित्र, अगरबत्ती और पवित्र पुस्तकें |
पूजा कक्ष में किन चीजों से बचें | पशु की खाल या चमड़े की वस्तुएं और पैसा |
मंदिर के लिए सर्वोत्तम रंग | सफेद, नारंगी, क्रीम, हल्का पीला, हल्का नीला, लैवेंडर और बेज |
किन रंगों से बचें | काला और गहरा भूरा |
मंदिर डिजाइन के लिए सर्वोत्तम सामग्री | लकड़ी और प्राकृतिक पत्थर जैसे संगमरमर और ग्रेनाइट |
मंदिर की ऊंचाई | लगभग 32 से 36 इंच |
दिशा | शासन किया | महत्व |
ईशान कोण | बृहस्पति | ईशान कोण नामक इस दिशा में मंदिर बनाना शुभ माना जाता है। |
घर का केंद्र | ब्रह्म स्थान | घर में रहने वालों के लिए समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य लेकर आता है। |
पूर्व | सूर्य और भगवान इंद्र | समृद्धि और धन लाता है |
उत्तर | कुबेर | धन लाता है |
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष विशेषज्ञ जयश्री धामनी के मुताबिक, पृथ्वी का झुकाव भी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर ही है और यह उत्तर-पूर्व के शुरुआती बिंदु के साथ ही आगे बढ़ती है। ऐसे में घर में यह कोना ट्रेन के इंजन की तरह है, जो पूरी ट्रेन को खींचता है। घर का यह कोना ऊर्जा से भरपूर होता है। इसलिए घर में मंदिर का मुख भी ऐसा ही है, यह पूरे घर की ऊर्जा को अपनी ओर खींचता है और फिर उसे आगे ले जाता है।
मंदिर की दिशा कैसे तय करें?
मंदिर की सही दिशा तय करने के लिए आप एक चुंबकीय कंपास का उपयोग कर सकते हैं और घर के केंद्र में खड़े होकर दिशाओं को पहचान करें। इस बात का ध्यान रखें कि घर का मुख्य प्रवेश द्वार वह स्थान है, जहां से सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है।
इस में मंदिर या पूजा घर बनाने से बचें
दक्षिण दिशा
वास्तु शास्त्र के अनुसार, मंदिर को दक्षिण दिशा में बनाना या पूजा घर रखना अशुभ माना जाता है। इसी तरह देवी-देवताओं की मूर्तियां या तस्वीरें भी दक्षिण दिशा में नहीं रखनी चाहिए। ऐसा करने से पूजा करने वाला व्यक्ति दक्षिण की ओर मुख करके पूजा करेगा, जो वास्तु शास्त्र में उचित नहीं माना जाता है।
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दक्षिण-पूर्व दिशा
दक्षिण पूर्व दिशा अग्नि तत्व से जुड़ी होती है, जिसे अग्नि के स्वामी अग्निदेव नियंत्रित करते हैं। यह दिशा शुक्र ग्रह से भी संबंधित है, इसलिए यह रसोई घर बनाने के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। घर में मंदिर को दक्षिण पूर्व दिशा में नहीं रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार, दक्षिण पूर्व दिशा में पूजा कक्ष बनाने से आर्थिक दिक्कतें हो सकती हैं। हालांकि, कुछ वास्तु विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण-पूर्व दिशा कुछ देवी-देवताओं जैसे देवी दुर्गा की पूजा के लिए आदर्श स्थान है। यह दिशा दिये, दीपक और अग्नि कुंड रखने के लिए भी उपयुक्त है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा
दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कोण भी कहा जाता है। यह दिशा पृथ्वी तत्व और राहु ग्रह से जुड़ी होती है। यह दिशा स्थिरता का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन पूजा कक्ष या आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती, क्योंकि इससे ऊर्जा प्रवाह बाधित हो सकता है।
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घर के पूजा घर में देवी-देवताओं का मुख किस दिशा में होना चाहिए?
पूजा घर में भगवान की मूर्तियां पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रखनी चाहिए, ताकि पूजा करने वाला व्यक्ति भी पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करें। हालांकि, पूर्व दिशा को भगवान के मुख की सबसे उत्तम दिशा माना गया है।
क्या भगवान का मुख उत्तर दिशा की ओर कर सकते हैं?
नहीं, भगवान की मूर्तियां उत्तर-पूर्व कोने में रखी जा सकती हैं, लेकिन उनका मुख उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे पूजा करने वाला व्यक्ति दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करेगा, जो कि अशुभ मानी जाती है।
क्या भगवान दक्षिण दिशा की ओर मुख कर सकते हैं?
वास्तु के अनुसार, भगवान की मूर्तियां दक्षिण दिशा की ओर मुख करके नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इससे घर में अस्थिरता और नकारात्मक ऊर्जा आ सकती है।
घर के पूजा रूम में भगवान का मुख किस दिशा में होना चाहिए?
पूजा कक्ष के लिए वास्तु के अनुसार, देवताओं के चेहरे पश्चिम की ओर हो सकते हैं ताकि पूजा करते समय आपका मुख पूरब दिशा की ओर हो।
- भगवान गणेश को लक्ष्मी की बाईं ओर और देवी सरस्वती को देवी लक्ष्मी के दाहिने तरफ रखा जाना चाहिए।
- शिवलिंग (वास्तु के अनुसार केवल छोटे आकार का) घर के उत्तरी भाग में रखा जाना चाहिए।
- वास्तु के अनुसार मंदिर या पूजा कक्ष में भगवान हनुमान की मूर्ति हमेशा दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए।
- जिन देवताओं की मूर्तियों को उत्तर दिशा में, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखना चाहिए, वे हैं गणेश, दुर्गा और कुबेर।
- भगवान कार्तिकेय और दुर्गा की मूर्तियों को पूरब दिशा की ओर मुख करके रख सकते हैं।
- सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पूरब दिशा में पश्चिम की ओर मुख करके रखना चाहिए।
पूजा घर में मूर्ति स्थापित करते समय ध्यान देने वाली बातें
मुख्य मूर्ति का स्थान
आमतौर पर किसी मंदिर या घर के पूजा स्थल में मुख्य देवता की एक प्रधान मूर्ति होती है। यह पूजा स्थल का केंद्रीय केंद्र होता है, जो ईश्वरीय उपस्थिति को दर्शाता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह को सुनिश्चित करता है। वास्तु के अनुसार, मुख्य मूर्ति को मंदिर के केंद्र या पीछे की ओर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्थापित करना चाहिए।
एक ही देवता की कई मूर्तियां न रखें
मंदिर में एक ही देवता की कई मूर्तियां, चाहे वे बैठी हुई हों या खड़ी, नहीं रखनी चाहिए। मूर्तियों को एक-दूसरे के आमने-सामने न रखें, ताकि उनकी ऊर्जा में कोई टकराव न हो और हर मूर्ति की विशेषता बनी रहे।
दर्शन और स्थान
हमेशा ठोस मूर्ति रखें और मंदिर में खोखली मूर्तियां रखने से बचें। देवताओं के चेहरे को फूलों की माला से ढकने से बचें। मूर्तियों को बहुत तंग स्थान पर न रखें, ताकि उनका स्पष्ट दर्शन हो सके।
मूर्तियों की ऊंचाई और स्थान
- मंदिर ऊंचाई पर होना चाहिए, ताकि उसमें रखी मूर्तियों के चरण भक्त के हृदय स्तर पर रहें।
- घर के मंदिर में बड़ी मूर्तियों से बचना चाहिए। वास्तु के अनुसार 9 अंगुल की मूर्तियां शुभ मानी जाती हैं।
- पूजा कक्ष के वास्तु के अनुसार छोटी मूर्तियां रखें। आदर्श रूप से, मूर्तियों की ऊंचाई सात इंच हो सकती है।
- भगवान गणेश की मूर्ति को देवी लक्ष्मी के बाईं ओर रखना चाहिए।
- मूर्तियां बैठी हुई मुद्रा में होनी चाहिए और उन्हें ‘चौकी’ पर रखना चाहिए।
घर के मंदिर में इन मूर्तियों से बचें
- नटराज, जो भगवान शिव का क्रोधित या रुद्र रूप है, को घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में अशांति हो सकती है।
- मंदिर में दो शिवलिंग नहीं रखने चाहिए।
- घर के मंदिर में शनि देव की मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। उनकी पूजा केवल घर के बाहर के मंदिर में ही करनी चाहिए।
- राहु-केतु की मूर्ति घर में रखना अशुभ माना जाता है।
- पूजा स्थान में पूर्वजों, युद्ध या मृत्यु से जुड़ी मूर्तियाँ या चित्र नहीं रखने चाहिए।
- टूटी हुई मूर्तियाँ या क्षतिग्रस्त तस्वीरें पूजा स्थल में नहीं होनी चाहिए।
मंदिर में पूजा करते समय आपको किस दिशा में मुंह करना चाहिए
दिशा | लाभ |
पूर्व | सौभाग्य और धन |
पश्चिम | धन को आकर्षित करता है |
उत्तर | अवसर और सकारात्मकता को आकर्षित करें |
घर में मंदिर बनाते समय उसकी दिशा ऐसे तय करें कि भगवान पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रहें, ताकि पूजा करने वाला पश्चिम या पूर्व दिशा की ओर मुख करके प्रार्थना कर सके। मंदिर या देवघर में पूजा करते समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करने से बचें, क्योंकि वास्तु के अनुसार यह शुभ नहीं माना जाता।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर या पूर्व दिशा में बैठकर पूजा करना लाभदायक होता है, इससे मन को शांति और एकाग्रता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि सही दिशा में पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा और स्थान का महत्व
वास्तु शास्त्र के अनुसार चारों दिशाएं उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। सिर्फ दिशा ही नहीं, प्रकृति के पांच तत्व धरती, वायु, अग्नि आदि भी उतने ही जरूरी होते हैं। हर दिशा की अपनी एक विशेषता होती है, इसलिए सही दिशा का ध्यान रखना जरूरी होता है, क्योंकि यही दिशा घर में शुभ ऊर्जा और सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती है।
अगर आपके पास मंदिर के लिए पूरा कमरा नहीं है तो घर के उत्तर-पूर्व कोने की ओर या पूर्वी दीवार पर एक छोटा-सा पूजा स्थल बना सकते हैं।
किसी भी निर्माण कार्य को वास्तु के अनुसार करने के लिए दिशाओं की सही जानकारी बहुत जरूरी होती है। प्राचीन समय में लोग दिशा जानने के लिए सूरज की छाया का उपयोग करते थे, लेकिन आज के समय में दिशा की सटीकता के लिए चुंबकीय कंपास का सहारा लिया जाता है। कुल मिलाकर 10 दिशाएं मानी जाती हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र में चुंबकीय कंपास में सिर्फ 8 दिशाओं को ही दर्शाया गया है।
वास्तु के अनुसार मंदिर के लिए कौन-सी जगह सही है?
- ड्रॉइंग रूम: अगर मंदिर ड्रॉइंग रूम में बनाना हो तो उत्तर-पूर्व दिशा का कोना चुनें।
- अलग पूजा कक्ष: अगर घर बड़ा है तो एक खाली कमरे को पूजा कक्ष में बदला जा सकता है।
- वेदी: भगवान की मूर्तियां हमेशा ऊंचे चबूतरे या स्टैंड पर रखें।
- किचन: अगर आप किचन में मंदिर रखना हो तो उसे उत्तर-पूर्व दिशा में ही बनाएं।
घर में मंदिर के लिए ग्राउंड फ्लोर सबसे अच्छा स्थान होता है
अगर आपका घर डुप्लेक्स है तो मंदिर को ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थापित करना सबसे उचित होता है। कुछ लोग मंदिर को बेडरूम या किचन में भी रखते हैं। ऐसे में जब मंदिर का उपयोग न हो रहा हो, तो उसके सामने एक पर्दा लगा देना चाहिए। ऊपरी मंजिलों पर भी, जैसे कि किचन या बेडरूम में, एक छोटा मंदिर बनाया जा सकता है। लेकिन अगर घर में अलग से पूजा कक्ष है तो वह ग्राउंड फ्लोर पर ही होना चाहिए।
मंदिर को घर के हॉलवे या प्रवेश द्वार वाले हिस्से में भी डिजाइन किया जा सकता है। पुराने समय में मंदिर अक्सर घर के आंगन या सामने वाले बरामदे में बनाए जाते थे। इस जगह को हमेशा साफ-सुथरा रखें और यहां जूते-चप्पलों की रैक जैसी चीजें रखने से बचें।
बेडरूम में पूजा रूम
अगर लिविंग रूम में जगह नहीं है और आप अपने बेडरूम में पूजा का मंदिर बनाना चाहते हैं तो वास्तु नियमों का पालन जरूर करें। मंदिर को कमरे के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में स्थापित करें। सोते समय ध्यान रखें कि आपके पैर मंदिर की ओर न हों। अगर घर डुप्लेक्स या बहुमंजिला है, तो मुख्य मंदिर यूनिट को हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर ही बनवाएं। बेडरूम में आप छोटा पूजा स्थान रख सकते हैं।
बालकनी में पूजाघर बनाना
सामान्यतः वास्तु शास्त्र बालकनी में मंदिर बनाने की सलाह नहीं देता, लेकिन अगर बालकनी में ही पूजा का स्थान बनाना जरूरी हो तो ध्यान रखें कि वह पूरी तरह ढकी हुई हो। पूर्व दिशा की ओर खुलने वाली बालकनी में मंदिर स्थापित करना शुभ माना जाता है।
छोटे फ्लैट्स के लिए मंदिर की जगह
- दीवार पर मंदिर: छोटे अपार्टमेंट्स के लिए दीवार पर लगा मंदिर यूनिट सबसे उपयुक्त होता है। एक फोल्डेबल मंदिर कैबिनेट जगह बचाने में काफी सहायक होता है, जिसके दरवाजे पूजा के समय खोले जा सकें और बाकी समय बंद रखे जा सकें।
- रसोई में मंदिर: किचन के एक कैबिनेट को छोटे मंदिर के रूप में बदला जा सकता है, लेकिन ध्यान रखें कि यह चूल्हे और सिंक से दूर हो। इसे स्टोव के बाईं या दाईं ओर स्थापित करना बेहतर रहेगा
- डाइनिंग रूम का कोना: भोजन कक्ष के किसी खाली कोने को पूजा स्थल में बदला जा सकता है। आप चाहें तो परदे या रूम डिवाइडर का उपयोग करके इस पूजा स्थल को अलग कर सकते हैं।
घर में इन स्थानों मंदिर नहीं बनाना चाहिए
- बेसमेंट (तलघर) में
- सीढ़ियों के नीचे
- मुख्य दरवाजे के ठीक सामने
- शौचालय के पास या उसकी पीछे की दीवार से सटी जगह पर
- ऊपर के माले में स्थित शौचालय के ठीक नीचे
घर के लिए मंदिर का सबसे अच्छा आकार क्या है?
घर में पूजाघर का आदर्श आकार कम से कम 5×7 फीट होना चाहिए। यह आकार दो से तीन लोगों को एक साथ बैठकर पूजा करने की सुविधा देता है। पूजा घर का दरवाजा बाहर की ओर खुलना चाहिए, ताकि छोटे पूजाघर में दरवाजा खोलने या बंद करने से अंदर बैठे किसी व्यक्ति को असुविधा न हो। मंदिर में सीढ़ियां विषम संख्या में होनी चाहिए, जैसे कि 3, 9, 11, 15, 21 आदि। इस बात का ध्यान रखें कि संख्या शून्य पर समाप्त न हो।
मंदिर को जमीन से कुछ फीट की ऊंचाई पर बनाना चाहिए ताकि उसमें स्थापित मूर्तियां भक्त के सीने की ऊंचाई पर रहें। मूर्तियां ऐसी ऊंचाई पर रखें, जहां व्यक्ति आराम से बैठकर या खड़े होकर पूजा कर सके। मंदिर की नींव और जमीन के बीच की ऊंचाई लगभग 32 से 36 इंच के बीच होना चाहिए।
पूजा कक्ष और विभिन्न क्षेत्रों में उनके प्रभाव
दिशा | किसके लिए उपयुक्त | वास्तु के अनुसार प्रभाव |
ईशान कोण | इसे भगवान शिव का क्षेत्र माना जाता है और अधिकांश देवताओं की पूजा के लिए आदर्श स्थान है। | सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक स्पष्टता और समृद्धि लेकर आता है। |
पश्चिम-उत्तर-पश्चिम दिशा | यह क्षेत्र यक्षिणी पूजा के लिए आदर्श है। | अन्य प्रकार की पूजा करने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। |
पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा | यह क्षेत्र राधा कृष्ण की पूजा के लिए आदर्श है। | इस दिशा में देवताओं की पूजा करने से तनाव को दूर करने में मदद मिलती है। |
पूर्व दिशा | यह दिशा राम दरबार की स्थापना के लिए आदर्श है। | इस दिशा में देवताओं की पूजा करने से जल्द सफलता प्राप्त होती है। |
पूर्व-दक्षिण-पूर्व | यह क्षेत्र स्टॉकब्रोकरों के लिए उपयुक्त हो सकता है। | घर का यह कोना चिंता और बेचैनी का कारण बन सकता है। |
दक्षिण-पूर्व दिशा | घर के इस कोने में पूजा करना अशुभ माना जाता है। | इससे वित्तीय समस्याएं या स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। |
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा | इस क्षेत्र में हनुमान की पूजा की जा सकती है। | यह ऊर्जा, शक्ति और आत्मविश्वास देता है। |
दक्षिण दिशा | वास्तु के अनुसार, यह क्षेत्र ध्यान का लिए उचित होता है। साथ ही देवी काली की पूजा के लिए भी अनुशंसित है। | इस क्षेत्र में अन्य देवी-देवताओं की पूजा करना अनुशंसित नहीं है। |
दक्षिण पश्चिम दिशा | यह दिशा पितृ क्षेत्र है और परिवार के पूर्वजों के लिए कोई भी अनुष्ठान करने के लिए उपयुक्त है। | इस क्षेत्र में पूजा करने से नकदी प्रवाह संबंधी समस्याएं या व्यवसाय और पारिवारिक समस्याएं हो सकती हैं। |
पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम | यह क्षेत्र देवी सरस्वती के लिए आदर्श है। यह सलाहकारों, छात्रों और उच्च बुद्धि वाले लोगों के लिए उपयुक्त है। | इस क्षेत्र में पूजा करने से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। |
पश्चिम दिशा | यह क्षेत्र गुरुओं और माता पृथ्वी का क्षेत्र माना जाता है। | इस क्षेत्र में पूजा करने से समृद्धि और वित्तीय लाभ मिलता है। |
उत्तर-पश्चिम दिशा | यह क्षेत्र परिवार के मृत पूर्वजों से संबंधित है | इस क्षेत्र में देवी-देवताओं की पूजा करना अनुशंसित नहीं है। |
उत्तर दिशा | यह क्षेत्र भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए आदर्श माना जाता है। | इस क्षेत्र में पूजा करने से आर्थिक समृद्धि आती है। |
दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र | यह क्षेत्र देवताओं की पूजा के लिए अनुशंसित नहीं है। | इस क्षेत्र में देवी-देवताओं की पूजा करने से हानि हो सकती है। |
वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा चुनते समय क्या करें और क्या न करें
यह करें | इन बातों से बचना चाहिए |
दरवाजे, खिड़कियां उत्तर या पूर्व दिशा में खुलनी चाहिए। | इसे बहुउद्देश्यीय कमरे के रूप में उपयोग न करें। |
तांबे के बर्तन उचित माना जाता है। | मंदिर में मृतकों की तस्वीर न रखें। |
पूजा कक्ष को सजाने के लिए गहरे रंगों के बजाय हल्के और सुखदायक रंगों का उपयोग करें। | ऐसी मूर्तियां न रखें, जो टूटी हुई हों या जिनका रंग उड़ गया हो। |
प्रार्थना करते समय हमेशा चौकी, चटाई या कालीन का प्रयोग करें। | अपने बेडरूम में मंदिर रखने से बचें। |
मंदिर की छत गुम्बदाकार होनी चाहिए। वह सपाट नहीं होनी चाहिए। | देवताओं की मूर्तियां हमेशा ऊंचाई पर होनी चाहिए और जमीन पर मंदिर बनाने से बचना चाहिए। |
अच्छे स्वास्थ्य और धन को आकर्षित करने के लिए पूर्व या उत्तर दिशा में तेल के दीपक या दीये रखें। | दीपक दक्षिण दिशा की ओर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे धन की हानि हो सकती है। |
पवित्र पुस्तकें और धार्मिक ग्रन्थ पश्चिम और दक्षिण की दीवार पर रखें। | फटी हुई किताबें न रखें। इस बात का ध्यान रखें कि मंदिर परिसर में केवल वही पवित्र पुस्तकें रखें, जिन्हें नियमित रूप से पढ़ा जाता है। |
भगवान की मूर्तियों, प्रतिमाओं और चित्रों को वास्तु द्वारा अनुशंसित दिशाओं में रखें। | अपने दिवंगत परिवार के सदस्यों/पूर्वजों की तस्वीरें लगाने से बचें क्योंकि इससे ऊर्जा में असंतुलन पैदा हो सकता है। |
दीयों के अंदर हमेशा रुई की बत्ती का इस्तेमाल करें। दीयों को साफ रखें। | उलझी हुई बत्तियों से बचें। |
मूर्तियों को सजाने और उनकी पूजा करने के लिए ताजे फूलों का उपयोग करें। | बासी फूलों से बचें। जब वे सूख कर मुरझा जाएं तो उन्हें देर शाम हटा दें। |
शांत वातावरण और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के लिए धूपबत्ती जलाएं। |
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यह भी देखें: शयन कक्ष के लिए वास्तु टिप्स
वास्तु दोष के सरल उपाय
अगर पूजा घर वास्तु के अनुसार नहीं बना है, जैसे कि दक्षिण-पश्चिम दिशा में पूजा कक्ष या उसके पास शौचालय हो, तो यह कई तरह की समस्याएं ला सकता है। विशेष रूप से, दक्षिण-पश्चिम दिशा में भगवान की मूर्तियां रखने से (भगवान विश्वकर्मा को छोड़कर) धन हानि या व्यापार में बाधाएं आ सकती हैं। इस दोष को ठीक करने के लिए कुछ आसान उपाय किए जा सकते हैं –
- राहु यंत्र घर में स्थापित करें, यह नकारात्मक ऊर्जा को कम करता है।
- दक्षिण-पश्चिम कोने में एक कांच का गिलास रखें, जिसमें थोड़ा सा नमक मिला हुआ पानी हो।
- वास्तु पिरामिड को इस कोने में रखें, इससे ऊर्जा संतुलन होता है।
- लाल रंग का कपड़ा दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें, यह स्थान को ऊर्जावान बनाता है।
- दक्षिण-पूर्व कोने में, मूर्तियों के सामने दीपक या मोमबत्ती जलाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- मूर्तियों के पीछे थोड़ा खाली स्थान अवश्य रखें, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।
- मंदिर और दक्षिण दिशा के बीच में परदा या दीवार लगाएं, ताकि दक्षिण की नकारात्मक ऊर्जा मंदिर तक न पहुंचे।
- अगर पक्का विभाजन न कर सकें तो पीले या सफेद रंग के पर्दे से पूजा स्थान को अलग करें। इससे उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ेगी।
- यदि पूजा घर उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं है तो उत्तर-पूर्व कोने में क्रिस्टल पिरामिड रखें। यह वास्तु दोष को दूर करता है।
- मंदिर के नीचे पीतल की वास्तु प्लेट रखें, इससे गलत दिशा में बने मंदिर का दोष शांत होता है। इन उपायों से न सिर्फ पूजा घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ेगी, बल्कि घर में समृद्धि और शांति भी बनी रहेगी।
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दक्षिण दिशा में मंदिर के लिए वास्तु उपाय
- वास्तु दोष को ठीक करने के लिए आइना लगाएं। दक्षिण दीवार पर आइना लगाने से कमरे की सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होगी।
- कमरे में पीले रंग की दरी या मंदिर के सामने पीला मैट बिछाएं। इससे दक्षिण दिशा में मंदिर होने के नकारात्मक प्रभाव कम होंगे।
- पीतल या तांबे की पूजा की थाली, दीपक आदि जैसी वस्तुएं भी मंदिर में रखें। ये वातावरण को सकारात्मक बनाए रखेंगी।
दक्षिण-पूर्व दिशा में मंदिर के लिए वास्तु उपाय
- दक्षिण-पूर्व दिशा में मंदिर हो तो वहां तांबे का यंत्र रखें, इससे वास्तु दोष दूर होगा।
- मंदिर में चांदी की पूजा सामग्री जैसे कलश, दीपक आदि रखने से नकारात्मकता खत्म होती है।
- पूजन करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके अग्नि को भोग अर्पित करें।
- मंदिर में रोशनी की व्यवस्था रखें, ताकि वातावरण हमेशा उज्ज्वल और शुभ बना रहे।
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- अगर आप लकड़ी का मंदिर इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसकी छत पर गुंबद का आकार जरूर रखें और पूजा घर के प्रवेश द्वार पर चौखट यानी देहली अवश्य होनी चाहिए। अगर कोई मूर्ति टूट जाए तो उसे तुरंत बदल दें और कभी भी टूटी मूर्तियां मंदिर में न रखें।
- पूजा घर के वास्तु के अनुसार, दो पल्लों वाला दरवाजा सबसे अच्छा माना जाता है। ऐसे में ध्यान रखें कि मूर्तियां दरवाजे की सीधी दिशा में न हों।
- जब आप पूजा का स्थान डिजाइन करें तो उसके दरवाज़े और खिड़कियां उत्तर या पूर्व दिशा में खुलना चाहिए। पूजा स्थान खुला और हवादार होना चाहिए ताकि दरवाजे पूरी तरह खुल सकें। ऐसे में जालीदार डिजाइन बेहतरीन विकल्प होते हैं।
- पूजा घर की अलमारियां हमेशा दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए।
- घर में पूजा घर की छत त्रिकोण आकार की होनी चाहिए, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का लगातार प्रवाह बना रहे।
- पूजा स्थान को शुभ चिन्हों जैसे स्वास्तिक, ओम और रंगोली डिजाइनों से सजाएं।
- मंदिर की घंटी को बाईं ओर रखें और अग्निकुंड को दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थापित करें।
- हवन करते समय मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए और दीपक हमेशा दक्षिण-पूर्व कोने में जलाएं।
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पूजा घर के लिए शुभ वस्तुओं का चयन
- घर में मंदिर बनवाते समय लकड़ी एक उत्तम और पवित्र ऑप्शन माना जाता है।
- आप चाहें तो लकड़ी के साथ कांच जैसी सामग्री का कॉम्बिनेशन तैयार कर सकते हैं, जिससे मंदिर में उजास और आकर्षकता बनी रहती है।
- प्राकृतिक पत्थरों का चयन करें। संगमरमर और ग्रेनाइट जैसे पत्थर इस कार्य के लिए बेहद उपयुक्त माने जाते हैं।
- मंदिर परिसर में जानवरों की खाल का उपयोग न करें, यह अशुद्ध माना जाता है।
- छत की सजावट के लिए कलात्मक पीओपी डिजाइन के साथ पेंडेंट लाइट्स और बैकलिट पैनल्स का उपयोग किया जा सकता है, जिससे मंदिर का सौंदर्य और रोशनी दोनों बढ़ती है।
- हालांकि कांच और ऐक्रेलिक से बने मंदिर देखने में सुंदर लगते हैं, लेकिन इन्हें घर के पूजा स्थल के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। इनसे बचना ही बेहतर है।
पूजा कक्ष में किन चीजों से बचें
- पूजा घर में अशुद्ध वस्तुओं का स्थान नहीं होना चाहिए। चमड़ा एक ऐसा पदार्थ है जिसे अशुद्ध माना गया है, इसलिए किसी भी प्रकार की जानवरों की खाल को मंदिर में न रखें।
- पूजा स्थल में धन या पैसे रखने से भी बचना चाहिए। भले ही पैसा अशुद्ध नहीं है, लेकिन शांति और आशीर्वाद की जगह को संग्रह या बचत स्थल नहीं बनाना चाहिए।
- मंदिर में उन चित्रों को न रखें, जिनमें युद्ध का दृश्य हो या भगवान का रौद्र रूप दिखाया गया हो। ऐसे चित्र पूजा के शांत वातावरण में विघ्न डाल सकते हैं।
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ऑफिस में पूजा घर के लिए वास्तु
ऑफिस डिजाइन करते समय पूजा घर यानी मंदिर का स्थान वास्तु नियमों के अनुसार तय करना जरूरी होता है। मंदिर में ऐसे भगवान की मूर्तियां रखें, जिनके चेहरे स्पष्ट रूप से दिखते हों। साथ ही एक जग में पानी और पीने के लिए पानी भी वहां जरूर रखें।
वास्तु के अनुसार, मंदिर का सही स्थान कमरे का उत्तर या उत्तर-पूर्व कोना होता है। मूर्तियों को इस तरह रखें कि वे पश्चिम की ओर देख रही हों, ताकि पूजा करने वाला व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पूजा करे।
दीये उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर जलाएं। दक्षिण दिशा में दीया जलाने से बचें क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है और इससे धन हानि हो सकती है। इसके अलावा पूजा घर सीढ़ियों के नीचे या वॉशरूम के पास नहीं बनाना चाहिए।

छोटे फ्लैट्स के लिए जगह बचाने वाला मंदिर डिजाइन
छोटे अपार्टमेंट में एक अलग मंदिर बनाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन फिर भी कोशिश करें कि मंदिर उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में बनाएं। अगर यह दिशा उपलब्ध न हो तो पूर्व या उत्तर दिशा का चुनाव करें।
- दीवार पर लगाने वाला मंदिर यूनिट सबसे अच्छा ऑप्शन है, क्योंकि इससे फर्श की जगह नहीं घिरती।
- इसके अलावा फोल्ड होने वाला मंदिर कैबिनेट भी एक शानदार आइडिया है। पूजा के समय इसके दरवाजे खोल सकते हैं और बाकी समय बंद रख सकते हैं।
- आप लिविंग रूम के एंटरटेनमेंट यूनिट में भी एक छोटा पूजा कोना बना सकते हैं।
- एक और उपाय है कि रसोई के कैबिनेट को मंदिर में बदलना। मंदिर को चूल्हे के बाईं या दाईं ओर रखें। कभी भी मंदिर को गैस स्टोव या सिंक के ऊपर न रखें, क्योंकि ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
- डाइनिंग रूम के किसी खाली कोने को भी आप छोटे-छोटे पेडेस्टल डिजाइन करके पूजा स्थल बना सकते हैं।
- लिविंग रूम में आप एक साधारण परदा, कांच की दीवार, सजावटी प्लास्टर ऑफ पेरिस का डिवाइडर, या वर्टिकल गार्डन रूम डिवाइडर लगाकर भी पूजा का कोना बना सकते हैं।
- घर की किसी दीवार के छोटे से खाली हिस्से या अलमारी जैसी जगह को भी मंदिर में बदला जा सकता है।
- घर के किसी कोने में मेटल शेल्फ लगाकर ट्रेंडी पूजा एरिया तैयार किया जा सकता है।
छोटे फ्लैट में मंदिर डिजाइन के लिए अन्य सुझाव:
- मंदिर को टीवी या स्पीकर जैसे एंटरटेनमेंट यूनिट्स के पास न रखें, इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बाधित हो सकता है।
- भारी फर्नीचर के पास मंदिर न रखें, क्योंकि यह मंदिर को ढक सकता है या उसकी महत्ता को कम कर सकता है।
- पूजा की चीजें रखने के लिए वर्टिकल शेल्फ का इस्तेमाल करें और मंदिर के आस-पास अनावश्यक सामान न रखें।
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वास्तु के अनुसार पूजा घर के लिए सबसे अच्छे रंग
- सफेद
- हल्का नीला
- बेज (मिट्टी जैसा हल्का रंग)
- लैवेंडर (हल्का बैंगनी)
- नारंगी
- क्रीम (हल्का पीला-सफेद)
- हल्का पीला
जिन रंगों से बचना चाहिए:
- काला
- गहरा भूरा
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सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए पूजा कक्ष के वास्तु सुझाव
- अव्यवस्था से दूर रहें: मंदिर क्षेत्र को हमेशा साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखें। वहां बहुत ज्यादा मूर्तियां या धार्मिक वस्तुएं एकत्र न करें। जितना सादा होगा, उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा वहां बनी रहेगी।
- सही ढंग से चीजें रखें: मंदिर के नीचे बेकार या फालतू सामान न रखें। मंदिर के ऊपर भी कुछ न रखें। यदि जरूरत हो, तो मंदिर के पास सुंदर और व्यवस्थित स्टोरेज कैबिनेट रखें जिससे चीजें व्यवस्थित रहें और मंदिर का पवित्र रूप बना रहे।
- श्रद्धा से मूर्तियां स्थापित करें: जब भी देवताओं की मूर्तियां मंदिर में रखें, उन्हें पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ स्थापित करें। यह भाव दर्शाता है कि आप ईश्वर का अपने घर में स्वागत कर रहे हैं।
- सुगंध का प्रयोग करें: अगरबत्ती, धूप या सुगंधित तेल जलाकर मंदिर के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करें। चंदन, चमेली या तुलसी जैसी प्राकृतिक खुशबू सकारात्मकता को फैलाती हैं।
- ताजे फूल और फल चढ़ाएं: पूजा करते समय ताजे फूल और फल अर्पित करें। इससे न केवल ईश्वर की पूजा और अधिक पवित्र होती है, बल्कि मंदिर का माहौल भी शांत और स्वागतपूर्ण बनता है।
- रोशनी से फैलाएं उजाला: दीपक, मोमबत्तियां या आधुनिक सॉफ्ट लाइटिंग जलाने से मंदिर के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मकता का प्रसार होता है। पूजा कक्ष में सूर्यास्त के बाद भी प्रकाश बना रहना चाहिए।
- रंगोली बनाएं: त्योहारों के समय मंदिर के पास रंगोली बनाना शुभ माना जाता है। रंगोली के हर रंग की अपनी एक खास ऊर्जा होती है जो मन को शांत करती है और घर में सौंदर्य और सुख-शांति लाती है।
- घंटी का प्रयोग करें: घंटी की मधुर ध्वनि न केवल पूजा का हिस्सा है, बल्कि यह सात चक्रों को सक्रिय करने में सहायक होती है। यह वातावरण में सकारात्मक कंपन फैलाती है और ध्यान व उपचार के लिए उपयुक्त ऊर्जा पैदा करती है।
- लाल कपड़े का प्रयोग करें: लाल रंग को पवित्र और सौभाग्यशाली माना जाता है। मंदिर में देवताओं की मूर्तियों को ढकने के लिए लाल रंग का साफ-सुथरा कपड़ा उपयोग करें। यह समृद्धि और शुभ ऊर्जा को आकर्षित करता है।
- बैठने की उचित व्यवस्था करें: अगर मंदिर में बैठने की जगह हो तो लकड़ी या शुभ सामग्री से बने आसन, कुशन या कुर्सियां चुनें। इससे पूजा करते समय आराम भी मिलता है और माहौल भी पवित्र बना रहता है।
- पिरामिड जैसी बनावट अपनाएं: यदि आप मंदिर का निर्माण करवा रहे हैं, तो उसकी छत पिरामिड या मंदिर के गोपुरम जैसी बनवाएं। ऐसी आकृति को ऊर्जा को केंद्रित करने वाला माना जाता है और यह वातावरण में सकारात्मकता को बढ़ावा देती है।
- शुभ रंगों का चयन करें: रंगों का विशेष महत्व होता है क्योंकि ये प्रकृति के विभिन्न तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ वास्तु-अनुकूल रंग हैं जैसे सफेद रंग, जो शुद्धता का प्रतीक है, हल्का नीला रंग जो शांति प्रदान करता है। नारंगी रंग, जो मजबूत सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। वहीं, गहरे रंग जैसे भूरा, गहरा नीला और काला नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं, इसलिए इनसे बचना चाहिए।
Housing.com का पक्ष
जब आप अपने लिविंग रूम में एक पूजा घर या छोटा मंदिर बना रहे हों तो यह जरूरी है कि वह स्थान वास्तु के अनुसार बनाया जाए, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा आए और माहौल शांतिपूर्ण बना रहे। केवल मंदिर की दिशा ही नहीं, बल्कि उसके आस-पास की हर चीज को भी वास्तु के अनुसार सही दिशा में रखना चाहिए।
कुछ अतिरिक्त सुझाव: मकान में प्रवेश करने के बाद और गृह प्रवेश पूजा से पहले सबसे पहला काम मंदिर स्थापित करना होना चाहिए। मंदिर रखने से पहले उस स्थान को अच्छी तरह साफ कर लें और फूलों व रोशनी से सजाएं, ताकि वातावरण पवित्र और शुभ हो।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
क्या हम मंदिर में शंख रख सकते हैं?
घर के मंदिर में शंख रखना शुभ माना जाता है. शंख बजाने से पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
दिया जलाने के लिए कौन से तेल का इस्तेमाल करना चाहिए?
वास्तु के मुताबिक गाय का घई सबसे ज्यादा अच्छा है। आप सिसेम या सरसों के तेल का इस्तेमाल दिया जलाने के लिए कर सकते हैं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित होते हैं।
मंदिर में रखे कलश के जल का क्या करें?
मंदिर में रखे कलश के जल को हर रोज़ बदलें। सुबह इसे तुलसी या किसी अन्य पौधे को अर्पित करें।
क्या मैं मंदिर के कमरे में मोर पंख रख सकता हूँ?
पांच मोर पंख मंदिर या पूजा घर में रख सकते हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा को कम करने और वास्तु दोषों को दूर करने में मदद करेगा।
पूजा में पान या सुपारी का प्रयोग क्यों किया जाता है?
पान के पत्तों को शुभ माना जाता है और वे समृद्धि के प्रतीक हैं और पूजा अनुष्ठानों में उपयोग किए जाते हैं। सुपारी उस अहंकार दर्शाता है जिसे भगवान की वेदी पर समर्पित करना चाहिए और व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि सुपारी घर में शांति और सद्भाव लाने में मदद करती है।
घर के मंदिर में पूजा की थाली में चावल क्यों रखा जाता है?
पूजा की थाली में रखे चावल को 'अक्षत' कहा जाता है और वो अखंड सफेद चावल होते हैं और घर के मंदिर में हमेशा कुमकुम के साथ रखे जाते हैं। चावल शुभता, समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है। यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
पूजा कक्ष में जल संग्रह करने के लिए किस सामग्री का प्रयोग करना चाहिए?
पूजा घर में जल रखने के लिए तांबे के कलश को आदर्श माना जाता है। बर्तन में पानी को रोजाना जरूर बदलें।
भगवान गणेश की तस्वीर या मूर्ति रखने के लिए सबसे अच्छी दिशा कौन सी है?
पूजा कक्ष में भगवान गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति को माता लक्ष्मी के बायीं ओर रखें।
मन्दिर में किन रंग के पर्दों को लगाना बेहद शुभ माना जाता है?
वास्तु के अनुसार घर के मन्दिर में पीला, गुलाबी, क्रीम आदि रंग के पर्दे लगाने बेहद शुभ माने जाते हैं।
घर के मन्दिर में पूजा की किन सामग्रियों का होना अत्यंत आवश्यक होता है?
वास्तु के अनुसार घर के मन्दिर में प्रतिदिन की पूजा में फूल, अक्षत, धूप, दीप, जल, गंगाजल, सिंदूर, भोग ये सामग्रियों का होना आवश्यक होता है।
पूजा रूम में पूजा करते समय हमारा मुख किस दिशा में होना चाहिए?
पूजा रूम में पूजा करते समय हमारा मुख सदैव पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए माना जाता है ये दिशा पूजा करने के लिये बहुत शुभ मानी जाती हैं।
घर के मंदिर में किन भगवान की मूर्तियों से बचना चाहिए?
वास्तु के अनुसार घर के मन्दिर में हमें भगवान शिव के रुद्र रूप नटराज जो की उनका क्रोधित अवतार है। इसलिए नटराज की मूर्ति को घर के मन्दिर में नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे घर में अशांति हो सकती है। साथ ही घर के मंदिर में कभी भी दो शिवलिंग तथा शनि देव की मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। घर के बाहर ही मंदिर में उनकी पूजा करनी चाहिए। राहु-केतु की मूर्ति को घर में रखना अशुभ माना जाता है।
पूजा घर में हम कितने इंच की मूर्तियों को रख सकते है?
वास्तु के अनुसार पूजा घर में हमें सदैव छोटी मूर्तियों को ही रखना चाहिये पूजा घर में रखी मूर्तियों की साइज कभी भी सात इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिये।
क्या दक्षिण पूर्व दिशा पूजा करने के लिए अच्छी होती है?
नहीं! घर के मन्दिर में कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके पूजा नहीं करनी चाहिए और न ही दक्षिण दिशा की तरफ मन्दिर का मुख बनाना चाहिए।
घर के मन्दिर में प्रतिदिन की पूजा में हमें किस चीज का दीपक जलाना चाहिए?
घर के मन्दिर में प्रतिदिन हम घी या तिल के तेल का दीपक जला सकते हैं।
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