भारत में संपत्ति की विरासत को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह न केवल परिवार की वंश परंपरा की रक्षा से जुड़ी होती है, बल्कि मालिक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारियों के संपत्ति और धन पर कानूनी अधिकार भी सुनिश्चित करती है। भारत में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमियों के कारण संपत्ति का उत्तराधिकार अक्सर जटिल होता है। ऐसे कई कानून हैं, जैसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, जिनके तहत संपत्ति और धन के न्यायपूर्ण वितरण के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। यह संपत्ति से संबंधित विवादों की संभावानाओं को भी कम करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी उत्तराधिकारी समान रूप से संपत्ति पर अधिकार प्राप्त करें। इस आर्टिकल में हम भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़े कानूनों और कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकारों की विस्तार से चर्चा करेंगे।
विरासत क्या होती है?
संपत्ति की विरासत का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति, पद, ऋण और जिम्मेदारियों का स्थानांतरण उसके विधिक उत्तराधिकारी को किया जाता है। भारत में संपत्ति का स्थानांतरण धर्म के आधार पर विभिन्न कानूनों और नियमों के अंतर्गत होता है। संपत्ति विरासत में प्राप्त करने के मुख्यतः दो तरीके होते हैं –
- वसीयतनामे के माध्यम से उत्तराधिकार: इस प्रक्रिया में संपत्ति का स्वामी एक वसीयत लिखकर यह बताता है कि उसकी संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को किस प्रकार से हस्तांतरित की जाएगी।
- बिना वसीयत के उत्तराधिकार: जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार उसके विधिक उत्तराधिकारियों में बांट दी जाती है।
भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करने वाले कारक
कुछ महत्वपूर्ण कारक यह निर्धारित करने में सहायक होते हैं कि मृतक व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा। इसमें इन बातों का ध्यान रखा जाता है –
- संपत्ति का स्वभाव: यह इस बात से संबंधित होता है कि संपत्ति स्वयं अर्जित है या पैतृक संपत्ति है क्योंकि इससे यह तय होता है कि संपत्ति का उत्तराधिकार कैसे तय होगा।
- परिवार की संरचना: आमतौर पर पारिवारिक समझौते और विभाजन इस बात के प्रमुख कारक होते हैं कि संपत्ति वैधानिक उत्तराधिकारियों के बीच कैसे बांटी जाएगी। ऐसे कई कानून मौजूद हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि परिवार की आने वाली पीढ़ियों को, उनके माता-पिता की वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना, पैतृक संपत्ति में उनका उचित हिस्सा मिले।
- वसीयत: संपत्ति उत्तराधिकार से संबंधित मामलों में संपत्ति स्वामी की वैध वसीयत, मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र, वैधानिक उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र, संपत्ति के दस्तावेज जैसे कानूनी दस्तावेजों की उपस्थिति बहुत जरूरी होती है।
- लैंगिक समानता: भारत के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कई निर्णय दिए गए हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं। यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है और उस पारंपरिक व्यवस्था में बदलाव को दर्शाता है, जहां केवल पुरुष उत्तराधिकारियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया जाता था।
- संपत्ति प्रबंधन: पैतृक संपत्ति को उपहार स्वरूप देने पर प्रतिबंध होते हैं, ताकि यह संपत्ति परिवार की वंश परंपरा में बनी रहे और आने वाली पीढ़ियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर सके। ये कानून संपत्ति के मनमाने वितरण को भी रोकने में सहायक होते हैं, जिससे परिवार के दीर्घकालिक हित सुरक्षित रहते हैं।
पढ़ें: पैतृक संपत्ति के बारे में विस्तार से
पैतृक संपत्ति क्या होती है और यह स्व-अर्जित संपत्ति से कैसे अलग है?
पैतृक संपत्ति वह संपत्ति होती है, जो किसी हिंदू व्यक्ति को उसके पिता, पितामह (दादा) या पितामह के पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। यदि कोई अन्य रिश्तेदार संपत्ति विरासत में देता है, तो उसे पैतृक संपत्ति नहीं माना जाता। एक पैतृक संपत्ति में मुख्यतः निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं –
- यह संपत्ति एक हिंदू संयुक्त परिवार के पास चार या उससे अधिक पीढ़ियों तक रहनी चाहिए।
- यह संपत्ति अविभाजित होनी चाहिए। अगर इसका बंटवारा हो जाए तो हर व्यक्ति को समान और स्वतंत्र हिस्सा मिलना चाहिए।
- यदि 4 पीढ़ियां जीवित हैं तो उन सभी का संपत्ति पर संयुक्त अधिकार और कब्जा रहेगा।
- पैतृक संपत्ति पर अधिकार जन्म से मिलता है, न कि पूर्वजों की मृत्यु के बाद।
इसके अलावा जब कोई व्यक्ति अपनी खुद की पूंजी से कोई संपत्ति खरीदता है, तो उसे स्व-अर्जित संपत्ति कहा जाता है। स्व-अर्जित संपत्ति एक समय के बाद पैतृक संपत्ति बन जाती है। यानी किसी व्यक्ति के परदादा की स्व-अर्जित और अविभाजित संपत्ति आगे चलकर पैतृक संपत्ति बन जाती है। इसी तरह, जब किसी संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है तो वह उस परिवार के सदस्य के लिए स्व-अर्जित संपत्ति मानी जाती है।
भारत में कानूनी वारिस कौन होता है?
भारत में कानूनी वारिस वह व्यक्ति होता है, जिसे कानून द्वारा किसी मृत व्यक्ति की संपत्ति, परिसंपत्तियों या देनदारियों को उत्तराधिकार में लेने का अधिकार प्राप्त होता है, चाहे वह कानून के तहत हो या वसीयत के माध्यम से। किसी भी संपत्ति स्वामी व्यक्ति के कानूनी वारिसों की पहचान करना अत्यंत आवश्यक होता है। वारिस ही संपत्ति के दावे और बीमा कवरेज के उत्तराधिकारी होते हैं। संपत्ति के उत्तराधिकार और अन्य दावों से जुड़ी सारी प्रक्रियाएं कानूनी वारिसों द्वारा ही आगे बढ़ाई जाती हैं। हालांकि यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि ‘वारिस’ की अवधारणा धर्म के अनुसार अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनुयायियों पर लागू होता है, साथ ही उन व्यक्तियों पर भी लागू होता है, जिन्होंने इन धर्मों को अपना लिया है या अविवाहित संबंधों से जन्मे हैं। यह अधिनियम भारतीय मुस्लिमों और ईसाईयों पर लागू नहीं होता, क्योंकि उनकी संपत्ति का उत्तराधिकार उनके निजी धार्मिक कानूनों के अनुसार तय होता है।
हिंदू कानून के अनुसार वैध उत्तराधिकारी
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार, किसी व्यक्ति के निम्नलिखित वैध उत्तराधिकारी होते हैं –
क्लास-1 के उत्तराधिकारी:
- पत्नी (विधवा)
- माता
- पुत्र
- पुत्री
- मृत पुत्र की पुत्री
- मृत पुत्री की पुत्री
- पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की पुत्री
- मृत पुत्र की पत्नी (विधवा)
- पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की पत्नी (विधवा)
- मृत पुत्र का पुत्र
- मृत पुत्री का पुत्र
- पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र
क्लास 2 के उत्तराधिकारी
अगर क्लास-1 के उत्तराधिकारी जीवित नहीं हैं, तो संपत्ति का उत्तराधिकार भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित क्लास-2 के उत्तराधिकारियों को मिलेगा। यदि किसी विशेष श्रेणी में कोई जीवित नहीं है तो उत्तराधिकार एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी (1 से 8 तक) में स्थानांतरित होता जाएगा।
श्रेणी-1:
- पिता
श्रेणी 2:
- पुत्र की पुत्री की पुत्री
- पुत्र की पुत्री का पुत्र
- भाई
- बहन
श्रेणी 3:
- पुत्री की पुत्री की पुत्री
- पुत्री की पुत्री का पुत्र
- पुत्री के पुत्र का पुत्र
- पुत्र की पुत्री की पुत्री
श्रेणी 4:
- बहन का पुत्र
- बहन की पुत्री
- भाई की पुत्री
- भाई का पुत्र
श्रेणी 5:
- पिता की माता
- पिता के पिता
- पिता की पत्नी (विधवा)
- भाई की पत्नी (विधवा)
श्रेणी 6:
- पिता की बहन
- पिता का भाई
श्रेणी 7:
- मां की मां
- मां के पिता
श्रेणी 8:
- मां की बहन
- मां का भाई
हिंदू महिला का कानूनी वारिस
जिस हिंदू महिला की मौत बगैर वसीयत के हो जाती है तो उसकी संपत्ति का कानूनी वारिस इस प्रकार होगा –
- बेटियां और बेटे (जिसमें किसी मृत बेटे या बेटी के बच्चे भी शामिल हैं) और पति
- पति के वारिस
- मां और पिता
- पिता के वारिस
- मां के वारिस
मुस्लिम कानून के तहत वारिस
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के अनुसार नीचे दिए व्यक्ति में से कोई कानूनी वारिस हो सकता है –
- पति (केवल कानूनी)
- पत्नी (बहुपत्नी और तलाकशुदा पत्नी को अगर वह इद्दत अवधि में हो तो हकदार)
- पुत्र (सौतेले, दत्तक और अवैध पुत्र को हकदार नहीं)
- पुत्री (सौतेली, दत्तक और अवैध पुत्री को हकदार नहीं)
- पोता (केवल पुत्र के पुत्र को हकदार, पुत्री के पुत्र को नहीं)
- पोतरी (केवल पुत्र की पुत्री को हकदार)
- पिता (सौतेला या अवैध पिता हकदार नहीं)
- माता (सौतेली या अवैध माता हकदार नहीं)
- दादा (केवल पिता के पिता को हक)
- दादी (मातृ और पितृ दोनों दादी हकदार)
- भाई (वे सभी भाई, जो समान पिता और माता से हैं, हकदार हैं)
- बहन (वे सभी बहनें, जो समान पिता और माता से हैं, हकदार हैं)
- पितृ भाई (समान पिता लेकिन भिन्न माता वाले भाई हकदार)
- पितृ बहन (समान पिता लेकिन भिन्न माता वाली बहनें हकदार)
- मातृ भाई (समान माता लेकिन भिन्न पिता वाले भाई हकदार)
- मातृ बहन (समान माता लेकिन भिन्न पिता वाली बहनें हकदार)
- भतीजा (केवल भाई के पुत्र को हकदार)
- पितृ भतीजा (केवल पितृ भाई के पुत्र को हकदार)
- पूर्ण भाई का पुत्र
- पितृ भाई का पुत्र
- पिता के पूर्ण भाई
- पिता के पितृ भाई
- पिता के पूर्ण भाई का पुत्र
- पिता के पितृ भाई का पुत्र
- पिता के पूर्ण भाई के पुत्र का पुत्र
- पिता के पितृ भाई के पुत्र का पुत्र
- पिता के पूर्ण भाई के पुत्र के पुत्र का पुत्र
- पिता के पितृ भाई के पुत्र का पुत्र
- पिता के पूर्ण भाई के पुत्र के पुत्र का पुत्र
- पिता के पितृ भाई के पुत्र के पुत्र का पुत्र
क्रिश्चियन लॉ के अंतर्गत कानूनी वारिस
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा-32 के अनुसार, एक क्रिश्चियन व्यक्ति के कानूनी वारिस इस प्रकार हो सकते हैं –
- पत्नी (विधवा)
- पुत्र
- पुत्री
- पिता
- माता
- भाई
- बहन
- प्रत्यक्ष रक्त संबंध (जैसे पुत्र और उसके पिता, दादा और परदादा)
- यदि किसी व्यक्ति ने वसीयत नहीं बनाई है और केवल उसका परदादा, एक चाचा और एक भतीजा बचे हैं तो तीसरे स्तर के संबंध के अंतर्गत प्रत्यक्ष संबंधियों के समान हिस्से कोई भी व्यक्ति नहीं लेगा।
पारसी कानून के तहत वैध वारिस
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा-54 के अनुसार, एक पारसी व्यक्ति के वैध वारिस इस प्रकार तय हो सकते हैं –
- पिता
- माता
- पूर्ण भाई
- पूर्ण बहन
- पितृ पक्ष के दादा-दादी
- मातृ पक्ष के दादा-दादी
- मातृ पक्ष के दादा-दादी के बच्चे और उनकी वंशावली
- पितृ पक्ष के दादा-दादी के बच्चे और उनकी वंशावली
- पितृ पक्ष के दादा-दादी के माता-पिता
- मातृ पक्ष के दादा-दादी के माता-पिता
- पितृ पक्ष के दादा-दादी के माता-पिता के बच्चे और उनकी वंशावली
- मातृ पक्ष के दादा-दादी के माता-पिता के बच्चे और उनकी वंशावली
उत्तराधिकार और वसीयत की भूमिका
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 2 (एच) के अनुसार, वसीयत एक कानूनी घोषणा है, जिसमें वसीयत बनाने वाला अपनी संपत्ति के संबंध में अपनी इच्छा व्यक्त करता है कि उसकी मृत्यु के बाद क्या किया जाए। इस प्रकार वसीयत एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी मौत के बाद अपनी संपत्ति के वितरण या हस्तांतरण के बारे में जिक्र करता है। वसीयत के होने से कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवाद या गलतफहमी की संभावना खत्म हो जाती है, क्योंकि यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज होता है। यह व्यक्ति के परिवार और आश्रितों के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है और संपत्ति के हस्तांतरण को आसान बनाता है।
उत्तराधिकार और वैध वारिस प्रमाणपत्र की भूमिका
जब किसी व्यक्ति का निधन हो जाता है और उसके परिवार को उसकी संपत्ति विरासत में लेनी होती है तो वैध वारिसों को आमतौर पर 2 महत्वपूर्ण दस्तावेजों की आवश्यकता होती है, एक जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति का निधन हो चुका है यानी (मृत्यु प्रमाणपत्र) और दूसरा जो यह प्रमाणित करता है कि कौन उसकी संपत्ति का वारिस हो सकता है (वैध वारिस प्रमाणपत्र)।
वैध वारिस प्रमाणपत्र एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त होती है और यह मृतक और उसके वैध वारिसों के बीच संबंध को दर्शाता है। यह ‘मौत के बाद’ जारी किया गया दस्तावेज, जिसमें मृतक के सभी वैध वारिसों के नाम होते हैं, उनके जीवित परिजनों के लिए उनकी संपत्ति में दावा करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे जारी करने से पहले संबंधित अधिकारियों द्वारा सावधानीपूर्वक जांच और सत्यापन किया जाता है।
वैध वारिस प्रमाणपत्र के लिए कौन आवेदन कर सकता है?
कानून के अनुसार, मृतक के वर्ग-1 के वैध वारिस, जिनमें जीवनसाथी, बच्चे (पुत्र / पुत्री) और माता-पिता शामिल हैं। मृतक के ये सभी रिश्तेदार वैध वारिस प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं। मृतक के वर्ग-2 के वारिस भी इस प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं।
विरासत और निजी पारिवारिक ट्रस्ट की भूमिका
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, एक संपत्ति स्वामी ट्रस्ट बना सकता है, जो उन्हें अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्तियों के बंटवारे या वितरण पर लचीलापन और नियंत्रण प्रदान करता है। कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में या वसीयत के माध्यम से ट्रस्ट स्थापित कर सकता है, जो संपत्तियों का स्वामित्व रखता है और यह निर्धारित करता है कि आय और बाद में स्वामित्व कानूनी वारिसों में कैसे हस्तांतरित या वितरित होगा।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम क्या है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम उन मामलों से संबंधित प्रावधान तय करता है, जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है। इस अधिनियम में 2005 में संशोधन किया गया ताकि पहले के अधिनियम में विभिन्न धाराओं को जोड़ा या हटाया जा सके।
- धारा 4(2) का संशोधन: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 4(2) के अंतर्गत कृषि भूमि को उत्तराधिकार के दायरे में शामिल नहीं किया गया था। 2005 में इसे रद्द करते हुए कृषि भूमि पर उत्तराधिकार का दावा करने का अधिकार जोड़ा गया। यह अधिनियम पुरुषों और महिलाओं के बीच अधिक समानता सुनिश्चित करने के लिए संशोधित किया गया ताकि महिलाएं उन भूमि पर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें, जिन पर वे परिश्रम करती हैं।
- धारा 6 का पुनर्गठन: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 कहती थी कि महिलाएं केवल तभी संपत्ति अधिकार ले सकती हैं, जब वह संपत्ति महिला के रिश्तेदारों या अजनबियों द्वारा उपहार स्वरूप मिली हो। लेकिन दोनों ही मामलों में पूर्ण स्वामित्व या अधिकार रिश्तेदारों या अजनबियों के पास ही रहते थे। धारा 6 के पुनर्गठन और नई धाराओं के जोड़ने से महिलाओं को अपने भाईयों या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों के समान बराबर अधिकार मिलने लगे।
- धारा 3 का अपवर्जन: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3 महिलाओं को तब तक घर के भीतर विभाजन का अधिकार नहीं देती थी, जब तक पुरुष सदस्य ऐसा न चाहते। इससे महिलाओं की स्वायत्तता और अधिकार कम होते थे और उनकी निजता बाधित होती थी। इसके परिणामस्वरूप इस अधिनियम की धारा 3 को संशोधन के तहत हटा दिया गया।
पति के संपत्ति अधिकार और विरासत
क्या भारत में पति पत्नी का वैधानिक उत्तराधिकारी होता है?
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, पति अपनी पत्नी का वैधानिक उत्तराधिकारी होता है और यदि पत्नी बिना वसीयत के मर जाती है तो उसे उसकी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होता है। हालांकि, पति को संपत्ति में कितना हिस्सा मिलेगा, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि अन्य वैधानिक उत्तराधिकारियों की उपस्थिति। यदि पत्नी ने वसीयत बनाई है तो संपत्ति उन्हीं को दी जाएगी जिनका उल्लेख वसीयत में किया गया है। जब तक पत्नी जीवित है, पति को उसकी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता।
एक विवाहित महिला की मौत के बाद उसकी संपत्ति उसके वैधानिक उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है। इसमें उसके पति, बच्चे, पोते-पोतियां, माता-पिता और पति के उत्तराधिकारी शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, यदि किसी महिला की संपत्ति उसकी स्वयं की अर्जित की हुई है, उसका पति उससे पहले मर चुका है और साथ ही उसकी कोई संतान नहीं है तो ऐसी स्थिति में उसकी संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को जाएगी, न कि उसके माता-पिता, भाई-बहनों या अन्य रिश्तेदारों को।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि पत्नी को अपने जीवनकाल में कोई हिस्सा प्राप्त हुआ है तो पति उसे विरासत में प्राप्त कर सकता है, लेकिन यदि पत्नी ने अपने माता-पिता या पूर्वजों की संपत्ति जीवनकाल में प्राप्त नहीं की है तो पति उस पर दावा नहीं कर सकता। यदि किसी पुरुष ने अपनी पत्नी के नाम पर अपनी ही पूंजी से संपत्ति खरीदी है तो पत्नी की मृत्यु के बाद भी वह उसका स्वामी बना रहता है।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के अनुसार, यदि कोई ईसाई महिला बिना वसीयत के मरती है तो उसकी संपत्ति उसके पति और बच्चों को विरासत में मिलती है, जबकि मुस्लिम महिलाओं के मामले में उत्तराधिकार का निर्धारण सुन्नी या शिया कानून के अनुसार होगा, जो उनके संप्रदाय पर निर्भर करता है।
बगैर वसीयत के यदि महिला की मृत्यु होती है तो उसकी संपत्ति का वारिस कौन होता है?
भारत में यदि किसी महिला की मौत बिना वसीयत के हो जाती है तो उसकी संपत्ति का वितरण उसके धार्मिक समुदाय पर लागू कानूनों के अनुसार होता है। ईसाई समुदाय पर लागू होने वाले इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 के अनुसार, उस महिला की संपत्ति उसके पति और बच्चों को मिलती है। अगर उसके कोई संतान नहीं है तो उसकी संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को दी जाती है। यदि अविवाहित महिला की मौत वसीयत के बगैर होती है तो उसकी संपत्ति उसके माता-पिता को या यदि वे जीवित नहीं हैं तो उनके उत्तराधिकारियों को मिलती है।
स्त्री धन पर पति के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि पति को अपनी पत्नी के स्त्रीधन (संपत्ति) पर कोई अधिकार नहीं होता। वह कठिन समय में इसका उपयोग कर सकता है, लेकिन उसका नैतिक कर्तव्य है कि वह यह संपत्ति पत्नी को वापस लौटाए। पत्नी को इस संपत्ति पर पूरा नियंत्रण और स्वामित्व होता है और पति इस पर अपना हक नहीं जता सकता। पत्नी की मृत्यु के बाद स्त्रीधन या अन्य संपत्ति उसके अपने उत्तराधिकारियों को मिलती है।
हिन्दू कानून के अनुसार, स्त्रीधन उस चल या अचल संपत्ति को कहा जाता है, जो किसी महिला को विवाह से पहले, विवाह के समय, संतान जन्म के दौरान या विधवा होने पर प्राप्त होती है। इसमें आभूषण, वस्त्र, धनराशि, भूमि आदि शामिल हो सकते हैं।
पत्नी के संपत्ति अधिकार और उत्तराधिकार
#1. परित्यक्त पहली पत्नी के संपत्ति अधिकार
मान लीजिए कोई हिन्दू पुरुष अपनी पत्नी को बिना तलाक दिए छोड़ देता है और दूसरी शादी कर लेता है। ऐसे में उसकी पहली शादी कानून के द्वारा समाप्त नहीं मानी जाती और पहली पत्नी और उनके बच्चे वैध उत्तराधिकारी होते हैं। अगर दोनों के बीच तलाक हो गया हो तो पहली पत्नी पति की संपत्ति पर कोई दावा नहीं कर सकती और उसकी अपनी चल-अचल संपत्ति केवल उसी की मानी जाएगी। यदि पति-पत्नी दोनों ने मिलकर किसी संपत्ति की खरीद की है तो तलाक की स्थिति में प्रत्येक के आर्थिक योगदान का प्रतिशत दस्तावेजों में प्रमाणित होना आवश्यक होता है। यह विशेष रूप से तब जरूरी हो जाता है, जब आप संपत्ति खाली कराने का मुकदमा दायर करना चाहते हो।
#2. दूसरी पत्नी का उत्तराधिकार
दूसरी पत्नी को अपने पति की संपत्ति पर सभी कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं, बशर्ते कि पति की पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो या तलाक हो चुका हो और उसके बाद पति ने दोबारा विवाह किया हो। दूसरी पत्नी से पैदा हुए बच्चों को अपने पिता की संपत्ति में वही अधिकार प्राप्त होते हैं, जो पहली शादी से जन्मे बच्चों को होते हैं। यदि दूसरी शादी कानूनी रूप से वैध नहीं है तो न तो दूसरी पत्नी और न ही उसके बच्चों को पति की पैतृक संपत्ति में कानूनी उत्तराधिकारी होने का अधिकार प्राप्त होता है।
भारत में विवाहित महिला के कानूनी उत्तराधिकारी
भारत में किसी विवाहित महिला की संपत्ति का वितरण यानी किसी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा इस बात पर निर्भर करेगा कि उसने वसीयत छोड़ी थी या उसका बगैर वसीयत के ही निधन हुआ था।
- यदि वसीयत है तो ऐसी स्थिति में संपत्ति उन्हीं व्यक्तियों को दी जाएगी, जिनका उल्लेख वसीयत में किया गया है। वसीयत लिखित रूप में होनी चाहिए और महिला द्वारा कम से कम 2 गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षरित होनी चाहिए। साथ ही उन गवाहों के भी हस्ताक्षर होने चाहिए।
- यदि वसीयत नहीं है तो एक हिन्दू महिला की संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों (क्लास 1) यानी उसके बच्चों को जाएगी। उसके पति का हिस्सा अन्य उत्तराधिकारियों पर निर्भर करेगा। यदि महिला की मृत्यु बिना संतान के होती है तो उसका पति उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता।
पहली पत्नी अपने पति की दूसरी शादी को अवैध घोषित करवाने के लिए याचिका दाखिल कर सकती है
अगस्त 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1955 की धारा-11 के तहत पहली पत्नी की ओर से अपने पति की दूसरी शादी को अवैध घोषित करवाने के लिए दायर याचिका स्वीकार की जा सकती है। इस फैसले में कोर्ट ने पहली पत्नी को दूसरी शादी की अवैधता के आधार पर उसे निरस्त कराने के लिए कानूनी रास्ता अपनाने की अनुमति दी, जबकि दूसरी पत्नी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि यदि पहली पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत राहत पाने से वंचित किया गया, तो यह अधिनियम की मूल भावना और उद्देश्य को ही विफल कर देगा। ऐसी स्थिति में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5, 11 और 12 के तहत विधिक पत्नी को प्रदान किया गया संरक्षण महत्वहीन हो जाएगा।
देखें: दूसरी शादी में पत्नी और उसके बच्चों के संपत्ति अधिकारों से जुड़ी पूरी जानकारी
पति की मृत्यु के बाद पत्नी के नाम पर संपत्ति कैसे स्थानांतरित करें?
- बिना वसीयत उत्तराधिकार: यदि पति ने कोई वसीयत नहीं छोड़ी है तो संपत्ति का स्थानांतरण भारत के उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार होगा।
- कानूनी वारिसों की पहचान: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और अन्य व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार, संपत्ति का स्थानांतरण वारिसों की प्राथमिकता और मृत पति के धर्म के अनुसार होता है।
- उत्तराधिकार/कानूनी वारिस प्रमाणपत्र के लिए आवेदन: पत्नी प्रमुख तौर पर कानूनी वारिस होती है, उसको संबंधित कोर्ट से उत्तराधिकार प्रमाणपत्र या कानूनी वारिस प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करना चाहिए।
- संपत्ति के नामांतरण की प्रक्रिया: कानूनी वारिसों को संपत्ति के स्थानांतरण की औपचारिक प्रक्रिया आरंभ करनी होती है, जिसके तहत स्थानीय प्राधिकरण के साथ दस्तावेजों सहित संपत्ति रिकॉर्ड को अपडेट कराना आवश्यक होता है।
- वसीयत द्वारा उत्तराधिकार: यदि वसीयत मौजूद है तो संपत्ति वसीयत में निर्दिष्ट लाभार्थियों को हस्तांतरित की जाएगी।
पैतृक संपत्ति पर बेटियों का अधिकार और विरासत
क्या विवाह के बाद बेटी को पिता की संपत्ति में अधिकार होता है?
2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में किए गए एक संशोधन के बाद बेटियों को भी अपने पिता की संपत्ति पर बराबर का अधिकार प्राप्त हो गया है। इस संशोधन से पहले केवल पुत्र ही मृतक पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगने के अधिकारी होते थे, जबकि बेटियां केवल तब तक ही दावा कर सकती थीं, जब तक वे अविवाहित रहती थी। पुराने कानून के पीछे यह धारणा थी कि विवाह के बाद महिला अपने पति के परिवार से जुड़ जाती है और इस कारण उसका किसी अन्य हिन्दू अविभाजित परिवार में कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि, नए कानून के तहत अब विवाहित और अविवाहित बेटियों को उनके भाइयों के समान ही पिता की संपत्ति में अधिकार मिलता है। इसी प्रकार उन्हें भाइयों के समान ही कर्तव्यों और देनदारियों में भी बराबरी का दर्जा प्राप्त है।
2005 में कोर्ट के द्वारा यह फैसला भी दिया गया था कि यदि 9 सितंबर 2005 को पिता और बेटी दोनों जीवित थे, तो बेटी को भी समान अधिकार प्राप्त होंगे। 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बेटी अपने मृत पिता की संपत्ति में अधिकार रखती है, चाहे पिता उस दिन जीवित हों या नहीं। इसके बाद, महिलाओं को भी सह-उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार किया गया। वे अपने पिता की संपत्ति में हिस्से की मांग कर सकती हैं।
2022 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि बेटियों को उनके माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति और ऐसी किसी भी संपत्ति में अधिकार है, जिसकी वे पूर्ण स्वामी हो। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यह नियम उन मामलों पर भी लागू होगा, जहां बेटी के माता-पिता हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त हुए हो।
क्या बहू अपने ससुर से भरण-पोषण की मांग कर सकती है?
पटना हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत बहू अपने ससुर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती। हालांकि, बहू हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत यह दावा कर सकती है। न्यायालय के अनुसार, हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत दायर याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की व्यवस्था लागू नहीं की जा सकती।
क्या अविवाहित वयस्क पुत्री अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकती है?
केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले में कहा गया है कि कोई वयस्क अविवाहित पुत्री केवल इस आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत अपने पिता से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती कि उसके पास अपने पालन-पोषण के साधन नहीं हैं। हालांकि, यदि वह यह दावा करती है कि किसी शारीरिक, मानसिक अक्षमता या चोट के कारण वह स्वयं का पालन-पोषण नहीं कर सकती तो उसे इसके समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे।
पिता की संपत्ति में विवाहित बेटियों का क्या हिस्सा है?
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, बेटी को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में अपने भाइयों के साथ समान अधिकार मिलता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पिता के निधन के बाद संपत्ति भाई और बहन के बीच बराबर बांटी जाएगी। संपत्ति का वितरण या हस्तांतरण लागू उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार प्रत्येक वारिस के हिस्से के आधार पर होगा, जिसमें अन्य कानूनी वारिसों के भी मृतक की संपत्ति पर अधिकार होते हैं।
क्या बेटा उस संपत्ति को गिरवी रख सकता है, जिसमें बेटियों का अधिकार होता है?
कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, बेटे को ऐसी पारिवारिक संपत्ति को गिरवी रखने का अधिकार नहीं है, जिसमें बेटियों को भी समान अधिकार प्राप्त हों। यदि पिता बिना वसीयत के निधन हो जाते हैं तो बेटा एकतरफा संपत्ति को गिरवी नहीं रख सकता, क्योंकि वह संपत्ति बेटियों की बराबर की है।
भारत में विधवाओं के संपत्ति अधिकार और विरासत
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 यह निर्धारित करता है कि यदि कोई व्यक्ति वसीयत छोड़े बिना मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसकी संपत्ति अनुसूची के क्लास- 1 के वारिसों में बांटी जाएगी। यदि कोई व्यक्ति वसीयत छोड़े बिना मर जाता है, तो उसकी विधवा को एक हिस्सा मिलता है। मृतक के क्लास-1 के वारिस होंगे विधवा, उसका पुत्र, उसकी पुत्री, उसकी माता, पूर्ववर्ती पुत्र का पुत्र, पूर्ववर्ती पुत्र की पुत्री, पूर्ववर्ती पुत्र की विधवा, पूर्ववर्ती पुत्री का पुत्र, पूर्ववर्ती पुत्री की पुत्री, पूर्ववर्ती पुत्र के पूर्ववर्ती पुत्र का पुत्र, पूर्ववर्ती पुत्र के पूर्ववर्ती पुत्र की पुत्री, पूर्ववर्ती पुत्र के पूर्ववर्ती पुत्र की विधवा।
क्या विधवा को अपने ससुराल वालों को भरण-पोषण देना होता है?
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125, जो पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है, इसके के अनुसार विधवा पर अपने ससुराल वालों को भरण-पोषण देने की कोई बाध्यता नहीं है। हाईकोर्ट ने शोभा बनाम किशनराव और कांताबाई मामले में यह स्पष्ट किया गया था कि इस धारा के तहत भरण-पोषण पाने का हक रखने वालों को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वे स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं।
विधवाओं को संपत्ति अधिकारों का दावा करते समय सामने आने वाली चुनौतियां
कानून में कई प्रावधान होने के बावजूद भी भारत में विधवाओं को अपने पति की संपत्ति में उचित हिस्सा पाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो पुराने सांस्कृतिक नियमों, पितृसत्तात्मक रवैये या कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी के कारण है। अपने वैध अधिकार सुरक्षित करने के लिए विधवाओं के लिए यह जरूरी है कि वे उत्तराधिकार कानूनों और कानूनी प्रावधानों को समझें। वे कानूनी विशेषज्ञ से भी संपर्क कर सहायता ले सकती हैं। व्यक्ति एक वसीयत भी बना सकता है, जिसमें संपत्ति के वितरण संबंधी अपनी इच्छाएं स्पष्ट की जाएं।
विधवाओं को स्त्रीधन न देने के प्रभाव
दिसंबर 2022 में कोलकाता हाई कोर्ट ने कहा कि विधवाओं को स्त्रीधन का अधिकार न देना उनके प्रति घरेलू हिंसा के समान है। स्त्रीधन से तात्पर्य है वह चल, अचल संपत्ति, उपहार आदि, जो एक महिला को विवाह से पूर्व, विवाह के समय, संतानोत्पत्ति के दौरान और विधवा अवस्था में मिलती है।
महिला के पति की पैतृक संपत्ति में सह-स्वामित्व के अधिकार क्या हैं?
भारत के कई राज्यों में जब पुरुष बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए शहरों में प्रवास करते हैं तो वे अस्थायी रूप से अपने परिवारों को घर पर छोड़ जाते हैं। उत्तराखंड में जहां बहुत से पुरुष काम के लिए पलायन करते हैं। महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने एक अध्यादेश लाया है, जिसके तहत पति की पैतृक संपत्ति में सह-स्वामित्व के अधिकार दिए जाएंगे। इस कदम से उत्तराखंड की 35 लाख से अधिक महिलाओं को लाभ मिलेगा। ध्यान रहे कि एक तलाकशुदा महिला जो पुनः विवाह करती है, वह सह-स्वामी नहीं बन पाएगी। हालांकि, यदि तलाकशुदा पति उसकी आर्थिक जरूरतें पूरा करने में असमर्थ है तो वह महिला सह-स्वामी बनेगी। ऐसी तलाकशुदा महिला, जिसके कोई बच्चे नहीं हैं या जिसका पति 7 वर्षों से लापता/गुमशुदा है वह भी अपने पिता की जमीन की सह-स्वामी बनेगी।
संपत्ति अधिकार और अविवाहित महिलाओं की विरासत
बिना संतान वाली और बिना वसीयत मरने वाली महिला की संपत्ति किसे मिलती है?
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, यदि कोई हिंदू महिला बगैर वसीयत के और बगैर संतान के मृत्यु को प्राप्त होती है, तो उसकी संपत्ति उस स्रोत के पास लौट जाती है, जिससे उसने वह संपत्ति प्राप्त की थी। उदाहरण के लिए, यदि संपत्ति उसने अपने पिता या माता से प्राप्त की थी तो वह संपत्ति उसके पिता के वारिसों को जाएगी, जबकि यदि वह संपत्ति उसके पति या ससुर से प्राप्त हुई थी, तो वह संपत्ति उसके पति के वारिसों को जाएगी। ऐसी विवाहित महिलाएं जो अपने पीछे पति और बच्चों को छोड़ जाती हैं, उनकी सारी संपत्तियां, जिनमें वे संपत्तियां भी शामिल हैं, जो उन्होंने अपने माता-पिता से प्राप्त की थीं, उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(क) के अनुसार उनके पति और बच्चों को प्राप्त होंगी।
अविवाहित मां और बच्चे के संपत्ति अधिकार क्या हैं?
अविवाहित जोड़े में यदि बच्चे हों और माता-पिता के बीच संरक्षण को लेकर विवाद हो तो इस मामले में कोई स्पष्ट नियम नहीं है कि किसे कितना अधिकार मिलेगा। यदि माता-पिता एक ही धर्म के हो तो उनके व्यक्तिगत कानूनों को देखा जाता है। यदि वे अलग-अलग धर्म के हो तो नाबालिग बच्चे की राय ली जाती है और बच्चे को परामर्श दिया जाता है और किसी मानसिक प्रभाव को जांचा जाता है। ध्यान दें कि हिंदू व्यक्तिगत कानून के अनुसार, एक मां बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक होती है, जब तक बच्चा 5 वर्ष का न हो। उसके बाद पिता प्राकृतिक अभिभावक बन जाता है। पिता की मृत्यु पर मां अभिभावक बन जाती है।
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संपत्ति अधिकार और बच्चों की विरासत
दत्तक बच्चों के संपत्ति अधिकार क्या हैं?
एक दत्तक बच्चा भी क्लास-1 का वारिस होता है और उसे वही सभी अधिकार प्राप्त होते हैं, जो एक जैविक बच्चे को मिलते हैं। हालांकि, यदि दत्तक पिता किसी अपराध के कारण संपत्ति पाने से अयोग्य घोषित हो चुका है, तो दत्तक बच्चा उसके संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता। यदि पिता ने किसी अन्य धर्म को अपनाया हो और दत्तक बच्चा भी उसी धर्म का पालन करता हो तो इस स्थिति में भी दत्तक बच्चा पूर्वजों की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता।
नवम्बर 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी यह फैसला दिया कि गोद लिया गया बच्चा जैविक बच्चे के समान अधिकार रखता है और करुणा के आधार पर अपने माता-पिता की नौकरी के लिए विचार करते समय उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
क्या दत्तक बच्चा जन्म लेने वाले परिवार का सह-भागीदार होता है?
तेलंगाना हाई कोर्ट के 27 जून 2023 के एक फैसले के अनुसार, दत्तक बच्चा अपने जन्म लेने वाले परिवार का सह-भागीदार होना बंद कर देता है और इसलिए परिवार की पूर्वज संपत्ति में कोई अधिकार या हित नहीं रखता। कोर्ट ने कहा कि केवल तब ही यदि दत्तक से पहले विभाजन हुआ हो और संपत्ति दत्तक व्यक्ति को आवंटित की गई हो, तो वह उस संपत्ति को अपने नए परिवार में ले जा सकता है।
क्या विधवा के पहले विवाह से जन्मे बच्चे उसकी दूसरी शादी के पति की संपत्ति के वारिस हो सकते हैं?
गुजरात हाई कोर्ट ने जून 2022 में कहा कि विधवा के पहले विवाह से जन्मे बच्चों को उसकी उस संपत्ति में हक है, जो वह अपने दूसरे पति से प्राप्त करती है। हाई कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यह तब भी सही है, जब बच्चे विवाहेतर या अवैध संबंध से जन्मे हो।
भारत में पिता की संपत्ति कैसे विरासत में मिलती है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, हिंदू पिता की संपत्ति क्लास-1 के विधिक वारिसों में बराबर बांटी जाती है, जिनमें उसकी विधवा, बच्चे और माता शामिल हैं। यदि माता जीवित नहीं है तो संपत्ति बराबर बच्चों में वितरित की जाएगी।
दूसरे विवाह से जन्मे बच्चों के अधिकार
कानून के अनुसार, दूसरे विवाह से जन्मे बच्चों को पूर्वजों की संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हैं, जैसे पहले विवाह के बच्चे। इससे परिवार के सभी वंशजों में समानता सुनिश्चित होती है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सभी बच्चों के पूर्वजों की संपत्ति में अधिकारों को उनके माता-पिता के वैवाहिक इतिहास से स्वतंत्र रूप से मान्यता दी है।
सौतेले बच्चों के संपत्ति अधिकार
सौतेल बच्चे ऐसे बच्चों को कहा जाता है, जिनमें एक बच्चा पिता से किसी अन्य पत्नी/साथी से जन्मा हो और दूसरा बच्चा पत्नी से किसी अन्य पति/साथी से जन्मा हो। संक्षेप में जब एक सामान्य माता-पिता होता है (जैसे पुनर्विवाह या तलाक के मामले में) तो उस बच्चे को प्राथमिकता दी जाती है, जो उस सामान्य माता-पिता के अधिक करीब होता है, जिससे वह विरासत में पा रहा हो। उदाहरण: A ने B से शादी की। C, A का पहला पत्नी से पुत्र है। D, B का पहले पति से पुत्र है। यदि A की संपत्ति बांटी जानी हो तो प्राथमिकता C को दी जाएगी।
अवैध संतान के संपत्ति अधिकार
शून्य विवाह, निरस्त/अमान्य विवाह, अवैध संबंधों, गौत्रिनी संतान और उचित संस्कारों के अभाव में वैध न होने वाले विवाह से जन्मे बच्चों को अवैध संतान माना जाता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 (3), जो हिन्दू, सिख, जैन और बौद्धों पर लागू होती है, इसमें उल्लेख किया गया है कि अवैध संतान केवल अपने माता-पिता की संपत्ति की हकदार होती है, न कि किसी अन्य संबंधी की। ऐसे बच्चों को उनके माता-पिता की स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त होता है।
क्या दत्तक पुत्र का जैविक परिवार की संपत्ति में कोई हिस्सा होता है?
कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार दत्तक पुत्र दाता के परिवार का सह-हिस्सेदार बन जाता है और अपने जैविक परिवार की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार खो देता है। कानून के अनुसार, यदि दत्तक पुत्र दत्तक ग्रहण के समय संयुक्त परिवार का सदस्य था तो उसके संयुक्त परिवार की संपत्ति में अधिकार समाप्त हो जाते हैं, जब तक कि उसने विभाजन के माध्यम से उन संपत्तियों का अधिकार न प्राप्त किया हो। यह माना गया कि दत्तक ग्रहण पर दत्तक पुत्र उस परिवार में स्थानांतरित हो जाता है, जिसमें उसे दत्तक लिया गया है और उसे प्राकृतिक पुत्र के समान अधिकार प्राप्त होते हैं। अतः दत्तक पुत्र का दत्तक ग्रहण से लिया गया परिवार से सभी अधिकार समाप्त हो जाते हैं। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि वह अपने जैविक परिवार की संपत्तियों में उत्तराधिकार का अधिकार खो देता है।
क्या बच्चे तलाक के बाद अपने माता-पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा दावा कर सकते हैं?
बच्चों को उनके माता-पिता की संपत्ति पर भारत के संबंधित वारिस नियमों के अनुसार वारिस होने के अधिकार प्राप्त होते हैं।
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पिता की संपत्ति का मृत्यु के बाद वारिस
जब कोई पुरुष व्यक्ति, जिसकी मृत्यु हो जाए और उसने वसीयत बनाई हो तो उसकी संपत्तियां वसीयत में उल्लिखित लाभार्थियों में बांटी जाएंगी, लेकिन यदि कोई वसीयत न हो तो संपत्ति लागू व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार वितरित की जाएगी। इनमें शामिल हैं –
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत बिना वसीयत की उत्तराधिकार कानून
- मुस्लिम व्यक्तिगत कानून
- ईसाइयों और पारसियों के लिए भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम
क्या पिता की संपत्ति उसकी मृत्यु के बाद बेची जा सकती है?
कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति मृतक का वैध उत्तराधिकारी है और उसने कानूनी रूप से संपत्ति अपने नाम पर ट्रांसफर करवा ली है तो वह पिता की संपत्ति मृत्यु के बाद बेच सकता है। एक बार संपत्ति कानूनी रूप से उनके नाम पर होने के बाद वे संपत्ति बेच सकते हैं। हालांकि, सभी वैध उत्तराधिकारियों को बिक्री के लिए सहमत होना चाहिए और संबंधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना चाहिए, इसमें अनापत्ति प्रमाण पत्र भी शामिल है।
माता के संपत्ति अधिकार और उत्तराधिकार
पुत्र की सम्पत्ति पर मां का कानूनी अधिकार क्या है?
मां अपने दिवंगत पुत्र की सम्पत्ति की कानूनी वारिस होती है, इसलिए यदि कोई पुरुष अपनी मां, पत्नी और बच्चों को पीछे छोड़ता है तो उन सभी का उसकी सम्पत्ति पर समान अधिकार होता है। ध्यान रखें कि यदि मां बिना वसीयत बनाए चल बसे तो पुत्र की सम्पत्ति में उसका हिस्सा उसकी कानूनी वारिसों, जिसमें उसके अन्य बच्चे भी शामिल हैं, उनको प्राप्त होगा।
पुरुष यदि बिना वसीयत के मर जाए तो उसकी मां कानूनी उत्तराधिकारी नहीं होती
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के अनुसार, जो पुरुष बिना वसीयत के मरता है, उसकी संपत्तियां उसकी विधवा और बच्चों के बीच बांट दी जाती है, जैसा कि मद्रास हाई कोर्ट के फैसले में बताया गया है। दिवंगत पुत्र की मां को उसकी सम्पत्तियों में कोई अधिकार नहीं होता। वह केवल तब अपने दिवंगत पुत्र की सम्पत्ति में हिस्सा पाने की हकदार होती है, जब उसकी जीवित विधवा और बच्चे नहीं होते। धारा 33 और 33-ए के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई ईसाई बिना वसीयत के मरता है और अपनी विधवा औरर सीधे वंशजों को छोड़ जाता है तो सम्पत्ति का 1/3 हिस्सा विधवा को मिलेगा और बाकी 2/3 हिस्सा सीधे वंशजों को मिलेगा।
क्या एक मां के पास अपने नाबालिग बच्चों की संपत्ति के अधिकार छोड़ने का अधिकार है?
तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, मां को अपने नाबालिग बच्चों की पूर्वज संपत्ति पर उनके ज्ञान और सहमति के बिना अधिकार छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह कानूनी स्थिति सुप्रीम कोर्ट के आदेशों द्वारा घोषित की गई है। कानून के अनुसार, हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्ति में सह-वारिस के हिस्से का त्याग, विभाजन या पराया करना केवल पंजीकृत दस्तावेज के माध्यम से किया जा सकता है। मौखिक विभाजन या त्याग का कोई दावा अस्वीकार्य और असंगत है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बताया गया है।
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लिव-इन कपल्स और उनके बच्चों के संपत्ति अधिकार
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि लंबे समय तक घरेलू साझेदारी में रहने वाले जोड़ों को विवाहित माना जाएगा, जबकि भारत में कोई भी धर्म लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता नहीं देता। ऐसे में कानून कुछ राहत प्रदान करता है। फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं कानूनी अधिकारों और भरण-पोषण की पात्र हैं। लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के अनुसार माता-पिता की स्व-प्राप्त संपत्ति के हकदार होते हैं। बच्चे भरण-पोषण का भी दावा कर सकते हैं। ध्यान दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि वह “चल-आओ और चल-जाओ” संबंधों को लिव-इन संबंध नहीं मानता। नियम तभी लागू होते हैं, जब साथी लंबे समय तक एक साथ रह चुके हों। 2008 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, लिव-इन जोड़े के जन्मे बच्चों को कानूनी वारिस के समान विरासत का अधिकार मिलेगा। हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, जिन लोगों ने विवाह नहीं किया है, उनके बच्चों को केवल अपने माता-पिता की संपत्ति का अधिकार होता है, अन्य रिश्तेदारों की संपत्ति का नहीं।
भाई-बहनों के संपत्ति अधिकार
क्या एक विवाहित बहन अपने पिता द्वारा खरीदी गई भाई की संपत्ति का दावा कर सकती है?
पारिवारिक वंशावली और पिता की स्व-प्राप्त संपत्ति का कानूनी वारिसों द्वारा उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है। एक पिता अपनी स्व-प्राप्त संपत्ति अपने बच्चों को वसीयत के माध्यम से दे सकता है। यदि वसीयत नहीं है तो संपत्ति क्लास-1 वारिसों द्वारा विरासत में प्राप्त होती है। इसका मतलब ये है कि बच्चों को संपत्ति विरासत में पाने का पहला अधिकार होता है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार, बड़ी बहन क्लास-1 कानूनी वारिसों में शामिल होती है। एक विवाहित बहन अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति या भाई की उस संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है, जब तक कि कोई वसीयत उसे इस अधिकार से वंचित न करे। यदि संपत्ति उसकी माता के नाम है, तो माता जीवित रहते हुए बहन अपनी हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकती।
सास-ससुर की संपत्ति पर अधिकार
क्या दामाद को सास या ससुर की सम्पत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार होता है?
कानून के अनुसार, दामाद को सास या ससुर की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि, किसी वसीयत या अन्य कानूनी दस्तावेजों के आधार पर सम्पत्ति पर अधिकार तय किया जा सकता है। इसका मतलब ये है कि सास या ससुर अपनी सम्पत्ति को गिफ्ट डीड या सेल डीड के माध्यम से दामाद को स्थानांतरित कर सकते हैं या वसीयत में दामाद को लाभार्थी के रूप में नामित करके सम्पत्ति देने का प्रावधान कर सकते हैं।
वरिष्ठ नागरिकों के संपत्ति अधिकार
23 जुलाई 2021 को कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, बुजुर्ग माता-पिता को अपने बेटे और बहू के घर में रहने का विशेष अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने कहा कि बेटा और बहू ‘अधिक से अधिक लाइसेंसी’ हैं, जो उस सम्पत्ति में रह रहे हैं और इसलिए उन्हें निकाला जा सकता है। जैसे ही बुजुर्ग अपने बच्चों और उनके परिवारों के साथ असहज महसूस करने लगते हैं, यह लाइसेंस स्वतः समाप्त हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक का अपने ही घर में विशेष रूप से रहने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
आदिवासी महिला का पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार
9 दिसम्बर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से आग्रह किया कि वह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की उन धाराओं की पुन: समीक्षा करे, जो आदिवासी महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार नहीं देतीं। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2), जो पुरुष और महिला को पुश्तैनी संपत्ति में समान अधिकार देती है, अनुसूचित जनजातियों (ST) पर लागू नहीं होती। यह निर्णय इस आधार पर आधारित है कि जब गैर-आदिवासी की बेटी को पिता की संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त है, तो आदिवासी समुदाय की बेटी को यह अधिकार क्यों न दिया जाए। किसी आदिवासी महिला को बगैर वसीयत की संपत्ति के मामले में पुरुष आदिवासी के समान अधिकार मिलना चाहिए।
पारिवारिक संपत्ति बेचने का अधिकार
कुछ परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने एक सदस्य को पारिवारिक संपत्ति बेचने की अनुमति दी
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है कि यदि कुछ कानूनी और नैतिक शर्तें पूरी होती हैं तो हिन्दू अविभाजित परिवार का कोई एक सदस्य पूरी पारिवारिक संपत्ति को बेच सकता है। कोर्ट ने कहा है कि अगर विक्रेता यह साबित कर दे कि संपत्ति की बिक्री से पूरे परिवार को लाभ होता है तो सभी पारिवारिक सदस्यों की सहमति अनिवार्य नहीं है। यह ध्यान देने योग्य है कि यह निर्णय मुख्य रूप से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत आने वाले हिन्दू अविभाजित परिवारों पर लागू होता है। हालांकि, अदालतों को यह परखना जरूरी होगा कि संपत्ति का सौदा परिवार के सर्वोत्तम हित में किया गया है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से संयुक्त परिवार की संपत्तियों और उनके हस्तांतरण को लेकर कानून में स्पष्टता आई है।
धर्म परिवर्तन का उत्तराधिकार पर प्रभाव
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, किसी व्यक्ति ने यदि अपना धर्म परिवर्तित कर लिया हो तो भी वह संपत्ति का उत्तराधिकारी बन सकता है। भारत का कानून किसी व्यक्ति को केवल इस आधार पर संपत्ति प्राप्त करने से वंचित नहीं करता कि उसने अपना धर्म बदल लिया है। ‘जातीय अक्षमता उन्मूलन अधिनियम’ यह कहता है कि कोई भी व्यक्ति, जिसने अपने धर्म का परित्याग किया हो, वह संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार रखता है। हालांकि, धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के उत्तराधिकारी (वंशज) को समान अधिकार नहीं मिलते। यदि किसी धर्म परिवर्तित व्यक्ति का पुत्र या पुत्री हिंदू धर्म को छोड़कर कोई अन्य धर्म अपनाते हैं तो वे पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार पाने से वंचित किए जा सकते हैं।
Housing.com का पक्ष
भारत में विरासत की प्रक्रिया विभिन्न कानूनी प्रावधानों और कारकों द्वारा संचालित होती है, जिनमें स्थान और धर्म भी शामिल हैं। अगर संपत्ति पैतृक है तो यह प्रक्रिया काफी जटिल हो सकती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपकी संपत्तियां सही रूप से लाभार्थियों को हस्तांतरित हों, यह जरूरी है कि आप विभिन्न ऑप्शन के बारे में सोचें, जैसे- वसीयत बनाना, ट्रस्ट बनाना या संपत्ति के लिए संयुक्त स्वामित्व तय करना आदि। आप एक कानूनी सलाहकार से परामर्श ले सकते हैं, जो संपत्ति की विरासत से जुड़े मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या संपत्ति का अधिकार एक कानूनी अधिकार है?
अब संपत्ति का स्वामित्व मौलिक अधिकार नहीं रहा है, क्योंकि 1978 के संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे हटा दिया गया। हालांकि, यह अब भी एक कानूनी, मानव और संवैधानिक अधिकार है।
क्या विवाहित बेटी अपने पिता की संपत्ति पर दावा कर सकती है?
हां, कानून के अनुसार विवाहित बेटी को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगने का पूरा अधिकार है। उसे अपने भाई या अविवाहित बहन के बराबर अधिकार प्राप्त है।
संपत्ति के अधिकार में क्या-क्या शामिल है?
हर भारतीय को संपत्ति रखने का अधिकार है। इसके साथ ही उसे संपत्ति प्राप्त करने, उसका प्रबंधन करने, संचालन करने, उपभोग करने और उसे हस्तांतरित करने का अधिकार भी है। जब तक कि व्यक्ति ने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया है या व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया गया हो।
क्या बेटे को पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है?
हां, बेटा क्लास-1 का उत्तराधिकारी होता है और उसे अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है।
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