इनकम टैक्स एक्ट ने टैक्स संस्थाओं को विभिन्न श्रेणियों में बांट दिया है। सभी लोगों को ‘व्यक्तिगत’ श्रेणी के तहत लाया गया है। लेकिन अगर एक से ज्यादा लोग बिजनेस करने या बिल्डिंग खरीदने के लिए हाथ मिलाते हैं (सह-स्वामित्व) तो उन पर विभिन्न स्थितियों के तहत पार्टनर शिप फर्म (जिसमें लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप आते हैं) की तरह टैक्स लगाया जा सकता है। इन पर एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स (एओपी) या इंडिविजुअल बॉडी ऑफ इंडिया (बीओआई) के रूप में भी टैक्स लगाया जा सकता है।
सह-मालिकों (को-ओनर्स) के संयुक्त स्वामित्व (जॉइंट ओनर) वाली संपत्ति से जुड़े इनकम टैक्स के सेक्शन 26 के तहत एक इमारत में सह-मालिकों के हिस्से पर टैक्स की गाइडलाइंस दी गई हैं। प्रॉपर्टी में इनकम का शेयर किराया या ऐसी इमारत की बिक्री के वक्त मिले कैपिटल गेन्स भी हो सकते हैं। सेक्शन के मुताबिक अगर सह-मालिकों का हिस्सा साफ तौर पर परिभाषित है तो हर सह-मालिक का हिस्सा व्यक्तिगत होगा और इस पर टैक्स लगाया जाएगा। इसे बीओआई, एओपी या पार्टनरशिप नहीं माना जाएगा। यह भी अहम है कि एचयूएफ (हिंदू गैर-विभाजित परिवार) के स्वामित्व वाली इमारत ऐसी संपत्ति नहीं है जो संयुक्त रूप से स्वामित्व में हो। एचयूएफ का इस पर अपनी क्षमता से स्वामित्व है। इसलिए एेसी एचयूएफ संपत्ति से मिली आय पर अलग टैक्स यूनिट के जरिए टैक्स लगाया जाएगा और एचयूएफ के सदस्यों के बीच इसे विभाजित नहीं किया जाएगा।
हर को-ओनर का शेयर कैसे तय होगा?
अगर अग्रीमेंट में खरीददारों के तौर पर पति और पत्नी दोनों का नाम शामिल है तो दोनों का प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा भी हो, एेसा हमेशा नहीं होगा। कई बार अतिरिक्त लोगों का नाम भी बेहतर उत्तराधिकार के मकसद से अग्रीमेंट में जोड़ दिया जाता है। इसलिए संपत्ति में सह-मालिकों का संबंधित हिस्सा अनुपात में होगा, जिसमें उन्होंने संपत्ति की लागत के लिए वास्तव में योगदान दिया है। लागत या तो डाउन पेमेंट के जरिए या होम लोन में उनके अनुपात के आधार पर भी हो सकती है। यह सह-मालिकों की बैंक डिटेल से भी पता लगाया जा सकता है। इसलिए अगर खरीद में आपका कोई योगदान नहीं है तो इनकम टैक्स के लिए आपको को-ओनर नहीं माना जाएगा, चाहे आपका नाम अग्रीमेंट में संपत्ति के खरीददार के तौर पर दर्ज ही क्यों न हो।
संपत्ति विरासत के जरिए भी हासिल की जा सकती है। वह या तो वसीयत के तहत होगी या बेवसीयत उत्तराधिकार के जरिए। इसके अलावा स्वामित्व का अनुपात वसीयत के आधार पर किया जाएगा। अगर संपत्ति संयुक्त रूप से विरासत में मिली है, वसीयत के तहत नहीं तो स्वामित्व का अनुपात आपके धर्म के आधार पर लागू होने वाले उत्तराधिकार कानून के मुताबिक होगा। अगर कुछ कानूनी वारिसों ने आपसी सहमति से प्रॉपर्टी पर अपने अधिकार छोड़ दिए हैं तो स्वामित्व का अनुपात उस हद तक संशोधित होगा।
संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति के लिए किराए का कराधान:
खुद के कब्जे, संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति के मामले में टैक्स कानून आपको एक घर खुद के कब्जे के तौर पर रखने की इजाजत देते हैं, जिसमें कोई टैक्स देयता नहीं होती। लेकिन एक से ज्यादा संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्तियों को खुद के कामकाज के लिए इस्तेमाल करने पर आपको एक संपत्ति खुद के कब्जे वाली चुननी होगी, जबकि बाकियों को किराये पर दिया गया (लैट-आउट) माना जाएगा।
एेसी संपत्तियां, जिन्हें किराये पर दिया गया माना गया है, उस पर आपको काल्पनिक किराया अॉफर करना होगा। यह वह राशि है, जिसके लिए प्रॉपर्टी को टैक्स के लिए किराए पर दिए जाने की उम्मीद है। एेसे काल्पनिक किराये को स्वामित्व के अनुपात में विभाजित किया जाता है, जैसा ऊपर बताया गया है। इसके अलावा वह प्रॉपर्टी, जिसे वास्तव में किराये पर दिया जाना है, उससे मिले किराये को तय स्वामित्व अनुपात में विभाजित किया जाना चाहिए। विभाजित किराये को प्रॉपर्टी का सालाना वार्षिक मूल्य माना जाता है, जिससे किराए के कर योग्य मूल्य पर पहुंचने के लिए उसकी 30% फ्लैट कटौती या तो वास्तव में हासिल की गई है या काल्पनिक रूप से गणना की गई है। मानक कटौती के अलावा इमारत की खरीद, निर्माण, मरम्मत या पुनर्निमाण के मकसद से उधार ली गई किसी भी राशि में कटौती करने की इजाजत दी जाती है, जो तब ‘आय से घर संपत्ति’ के तहत आपकी टैक्सेबल इनकम बन जाती है।
संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति की बिक्री पर लाभ का कराधान:
अगर संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति बेची जाती है तो हर को-ओनर को बिल्डिंग के अपने हिस्से पर लागू होने वाले कैपिटल गेन्स की पेशकश करनी होगी। यह ध्यान देने वाली बात है कि विभाजन ‘बिक्री विचार’ और ‘अधिग्रहण की लागत’ के स्तर पर किया जाएगा, नेट टैक्सेबल कैपिटल गेन्स के स्तर पर नहीं। इसलिए संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति (चाहे वह रिहायशी हो या कमर्शियल) की बिक्री पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के मामले में हर सह-मालिक को 50 लाख तक की इंडेक्सेड कैपिटल गेन को निवेश करके सेक्शन 54ईसी के तहत छूट मिलेगी। इसलिए सेक्शन 54ईसी के तहत खास बॉन्ड्स में जिस सीमा तक निवेश किया जा सकता है, वह को-ओनर के मामले में लागू होगा, पूरी संपत्ति पर नहीं। इसी तरह लॉन्च टर्म कैपिटल गेन्स में सेक्शन 54एफ के तहत एक से ज्यादा घर न होने की स्थिति में छूट के दावे पर विचार हर को-ओनर के तौर पर किया जाएगा, एक साथ सभी को-ओनर्स के लिए नहीं।