हिंदू परिवारों में प्रॉपर्टी पर बेटियों को मिलते हैं ये अधिकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिसंबर 2015 में फैसला सुनाया था कि गैर विभाजित हिंदू परिवार (HUF) में बेटी भी कर्ता हो सकती है। आज हम आपको इस फैसले का मतलब और पिता की संपत्ति में बेटियों के क्या अधिकार होते हैं, इसी बारे में बताने जा रहे हैं।
11 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि पिता की संपत्ति में बेटियों के संदायादता अधिकार होंगे, भले ही पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (संशोधन) कानून 2005 के लागू होने से पहले हुई हो. अतीत में भारत की अदालतों द्वारा दिए गए विवादित फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने धुंध के बादल हटा दिए हैं.

संशोधन से पहले क्या थी स्थिति:

हिंदू कानून ने एचयूएफ कॉन्सेप्ट की अवधारणा की पहचान की थी। इसका मतलब है कि परिवार के लोगों के पू्र्वज एक ही हैं और वे जन्म या शादी से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जो लोग एक ही पूर्वज की संतान हैं, उन्हें दो भागों में बांटा गया है। पहली श्रेणी है सहदायिक। सिर्फ घर के पुरुषों को ही एचयूएफ में सहदायिक माना जाता है और स्त्रियों को सदस्य कहा जाता है। सभी सहदायिक सदस्य होते हैं, लेकिन सभी सदस्य सहदायिक हों, ये सच नहीं है।

एचयूएफ की संपत्ति में सहदायिक और सदस्यों के अधिकार अलग-अलग होते हैं। सहदायिक के पास यह अधिकार होता है कि वे प्रॉपर्टी के बंटवारे की मांग उठाकर अपना हिस्सा मांग सकते हैं। जबकि एचयूएफ के सदस्य, जैसे बेटियां और माताओं को एचयूएफ प्रॉपर्टी से गुजारा भत्ता मिलने के अलावा उस वक्त प्रॉपर्टी में हिस्सा मिलता है, जब एचयूएफ का बंटवारा होता है।
शादी होने के बाद बेटी को पिता के एचयूएफ का सदस्य नहीं माना जाएगा और अगर प्रॉपर्टी का बंटवारा शादी के बाद हुआ है तो उसे न तो गुजारा-भत्ते का अधिकार और न ही प्रॉपर्टी में शेयर मिलेगा। सिर्फ सहदायिक को ही एचयूएफ का कर्ता बनने का अधिकार था। महिला सदस्यों को कर्ता बनने का हक नहीं था।

संशोधन के बाद स्थिति:

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के सेक्शन 6 में 2005 में संशोधन किया गया था, जो 9 सितंबर 2005 से लागू हुआ था। जहां तक एचयूएफ संपत्ति में सामूहिक अधिकार का संबंध है तो इस संशोधन के साथबेटियों को बेटों के समान दर्जा दिया गया। नतीजन बेटियों को सहदायिक के सभी अधिकार दिए गए, जिसमें प्रॉपर्टी के बंटवारे और एचयूएफ का कर्ता बनने की बात शामिल है। लेकिन सिर्फ परिवार में पैदा हुई बेटियों को ही सहदायिक अधिकार दिए जाएंगे। शादी के जरिए घर में आईं महिलाओं को अब भी सदस्य ही माना जाएगा। इसलिए वे बंटवारे की मांग नहीं कर सकतीं, लेकिन अगर बंटवारा होता है तो उन्हें मेंटेनेंस और शेयर मिलेगा। शादी के बाद बेटी अपने पिता के एचयूएफ की सदस्य नहीं रहेगी, लेकिन वह सहदायिक बनी रहेगी। इसलिए वह बंटवारे की मांग भी कर सकती है और अगर वह अपने पिता की सबसे बड़ी सहदायिक है तो एचयूएफ की कर्ता भी बन सकती है। अगर शादीशुदा बेटी की मौत हो जाती है तो उसके बच्चे को वही हिस्सा मिलेगा, जो उनकी मां को मिलता। अगर बंटवारे के दिन बेटी की कोई संतान जीवित नहीं है तो उसके पोते-पोतियों को हिस्सा मिलेगा।
दिलचस्प बात है कि अपने जीवित रहते हुए बेटी एचयूएफ प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा गिफ्ट नहीं कर सकती, लेकिन वसीयत के जरिए वह अपना हिस्सा किसी को दे सकती है। अगर उसके निधन पर वसीयत तैयार नहीं होती तो जॉइंट प्रॉपर्टी अन्य सदस्यों को बांटी नहीं जाएगी बल्कि उसके कानूनी वारिसों को ट्रांसफर कर दी जाएगी।
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