नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस क्या होते हैं और इसे कौन देता है, जानें सबकुछ

रेडी-टू-मूव-इन प्रॉपर्टी, जो खाली छोड़ी गई हो या किराए पर दी गई हो, उसे हाउसिंग सोसाइटी को एनओसी देना होता है, लेकिन इसे कैसे कैलकुलेट किया जाता है? यहां इस बारे में विस्तार से जानें।

घर खरीदने वालों के लिए प्रॉपर्टी में निवेश करने की सबसे आम वजहों में से एक होती है, उसे किराए पर देकर कमाई करना। हालांकि, अगर यह प्रॉपर्टी किसी हाउसिंग सोसाइटी की है तो फिर घर के मालिक को सोसाइटी को नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्ज देना होते हैं।

नॉन-ऑक्युपेंसी चार्ज क्या होते हैं?

जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि रेडी-टू-मूव-इन संपत्ति, जिसे मालिक द्वारा कब्जा नहीं किया गया है, वह नॉन-ऑक्युपाइड संपत्ति कहलाती है। किसी भी हाउसिंग सोसायटी के सभी सदस्यों को सोसायटी मेंटेनेंस चार्जेस देना अनिवार्य होता है। यह नियम संपत्ति में मालिक के रहने या न रहने दोनों स्थितियों में लागू होता है।

लेकिन, यदि संपत्ति न तो मालिक द्वारा और न ही उसके परिवार के सदस्यों द्वारा उपयोग की जा रही हो और उसे व्यावसायिक लाभ के लिए प्रयोग में लाया जा रहा हो, तो हाउसिंग सोसायटी अतिरिक्त शुल्क लगाती है, जिसे नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस कहा जाता है। इस प्रकार सोसायटी को उस वित्तीय लाभ का कुछ हिस्सा प्राप्त होता है, जो मकान मालिक अपनी संपत्ति को किराए पर देकर अर्जित करता है। नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस मेंटेनेंस बिल में शामिल होते हैं, जो सोसायटी हर तिमाही में जारी करती है।

नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस को लेकर स्पष्ट जानकारी होना आवश्यक है ताकि सोसायटी सदस्य और प्रबंधन समिति के बीच किसी भी प्रकार का भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो या फिर कानूनी विवाद न हो।

हालांकि इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि हाउसिंग सोसायटी के नियमों के अनुसार, यदि संपत्ति में मालिक के रक्त संबंधी जैसे माता-पिता या भाई-बहन रह रहे हों तो नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस नहीं लिए जा सकते हैं।

हाउसिंग सोसायटी कब वसूल सकती हैं नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस?

हाउसिंग सोसायटी नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस वसूल सकती हैं –

हालांकि, नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस हर राज्य में अलग-अलग होते हैं और कुछ राज्यों ने तो इसे पूरी तरह खत्म भी कर दिया है। उदाहरण के लिए, जहां महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्य नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस वसूलते हैं, वहीं कर्नाटक जैसे राज्य ने इसे खत्म कर दिया है और इस पर सख्त दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस कौन देता है?

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस घर का मालिक या मकान मालिक देता है, जो सोसाइटी का सदस्य भी होता है। हालांकि, मकान मालिक मेंटेनेंस चार्जेस किरायेदार पर भी डाल सकता है, अगर यह बात किराया तय करते समय साफ-साफ बताई गई हो। यह भी सुझाव दिया जाता है कि मेंटेनेंस चार्जेस का यह ट्रांसफर रेंट एग्रीमेंट में साफ-साफ लिखा हो, ताकि भविष्य में कोई विवाद न हो।

कब लागू नहीं होते नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस?

नीचे दिए गए मामलों में नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस लागू नहीं होते।

  • यदि फ्लैट मालिक स्वयं फ्लैट में रह रहा हो तो उसे नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस नहीं देने होते।
  • यदि हाउसिंग सोसाइटी में स्थित फ्लैट हमेशा के लिए बंद हो और मकान मालिक कहीं और रह रहा हो और सोसाइटी के संपूर्ण मेंटेनेंस चार्जेस बिना किसी छूट के चुका रहा हो तो नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस नहीं लगाए जाते। हालांकि कुछ लोग इस बात पर विवाद कर सकते हैं, लेकिन एक आसान तरीका यह है कि जब तक आप बाहर हैं, तब तक अपने माता-पिता को उस प्रॉपर्टी में शिफ्ट करवा दें।
  • बायलॉज के अनुसार, यदि प्रॉपर्टी में मालिक के परिवार के सदस्य जैसे पति, पत्नी, पिता, माता, दामाद, बहू, पोता, पोती आदि रह रहे हों तो नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस नहीं वसूले जा सकते हैं।
  • इसके अलावा दोस्तों या परिवार के लोगों का समय-समय पर संयुक्त रूप से रुकना भी नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस के दायरे में नहीं आता है।

2025 में नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस कैसे कैलकुलेट करें?

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस की गणना सेवा शुल्क और संपत्ति की लोकेशन पर निर्भर करती है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस सेवा शुल्क का 10 फीसदी से अधिक नहीं हो सकते। इसी आधार पर महाराष्ट्र सरकार ने एक परिपत्र जारी किया था। महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट, 1960 की धारा 79A के अंतर्गत, नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस की राशि सोसाइटी के सेवा शुल्क (नगर पालिका करों को छोड़कर) के 10 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती।

उदाहरण के लिए, यदि कोई मेंटेनेंस बिल 11,000 रुपए का है, जिसमें सेवा शुल्क 10,000 रुपए प्रति माह है तो मासिक नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस 10 फीसदी यानी 1,000 रुपए होंगे।

सर्विस चार्जेस क्या होते हैं?

सर्विस चार्जेस में सोसायटी के कर्मचारियों के वेतन, स्टेशनरी खर्च, ओवरहेड लागत आदि शामिल होते हैं, जो किसी सोसाइटी को वहन करने पड़ते हैं। इसके अलावा इन चार्जेस में बिजली जैसे यूटिलिटी खर्च भी शामिल होते हैं, जिन्हें मिलाकर नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस लागू किए जाते हैं। यह जानकारी मासिक मेंटेनेंस विवरण में पाई जा सकती है। यदि किसी मकान मालिक के पास हाउसिंग सोसायटी के अंदर पार्किंग स्पेस है, तो नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस की गणना करते समय इसे भी शामिल किया जाता है। लेकिन यदि मकान मालिक के पास कोई वाहन या पार्किंग स्पेस नहीं है तो यह हिस्सा नॉन-ऑक्युपेंसी चार्जेस के अंतर्गत भुगतान करना आवश्यक नहीं होता।

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस के रूप में क्या लेना गैरकानूनी है?

निश्चित 10 फीसदी शुल्क के अतिरिक्त यदि किसी भी अन्य मद के तहत कोई राशि नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस के रूप में ली जाती है, तो वह गैरकानूनी मानी जाएगी। ऐसे मामलों में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सोसायटी पर जानबूझकर लापरवाही, सेवा में कमी, राशि की अधिक वसूली, अधिकारों के दुरुपयोग और उत्पीड़न का मुकदमा चलाया जा सकता है। किरायेदार को कानूनी कार्यवाही शुरू करते समय निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है और संबंधित दस्तावेजी प्रमाण पेश करने पड़ते हैं।

एनआरआई के लिए नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस क्या हैं?

जब एनआरआई भारत में संपत्तियों में निवेश करते हैं, तो उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। यह समझना चाहिए कि नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस की गणना कैसी की जाती है। एनआरआई को हाउसिंग सोसाइटी के साथ पारदर्शी संवाद बनाए रखना चाहिए। यदि कोई एनआरआई भारत में संपत्ति का मालिक है और वह संपत्ति किराए पर दी गई है या बंद पड़ी है तो उसे नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस देना अनिवार्य होता है। यह शुल्क केवल उस परिस्थिति में ही टाला जा सकता है, जब उस घर में एनआरआई मालिक का रक्त संबंधी रिश्तेदार निवास कर रहा हो।

हालांकि अनिवासी भारतीय (एनआरआई) संपत्ति मालिकों को भारत का रियल एस्टेट बाजार आकर्षक लगता है, लेकिन अतीत में कई लोगों को भारी नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस का सामना करना पड़ा है। चूंकि ये मालिक अक्सर विदेश में रहते थे, ऐसे में हाउसिंग सोसायटियों ने उनसे मोटी रकम वसूली, जो कभी-कभी लाखों में पहुंच जाती थी। ऐसे में यह चलन तब तक जारी रहा, जब तक कि महाराष्ट्र सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया और इन चार्जेस पर 10 फीसदी सेवा शुल्क की सीमा तय नहीं की।

अगर नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस नहीं चुकाए जाएं तो क्या प्रभाव होंगे

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस नहीं चुकाने के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। हाउसिंग सोसायटी मकान मालिक से ये शुल्क वसूलने के लिए निम्नलिखित कदम उठाती है –

  • रिमाइंडर नोटिस: जब मकान मालिक समय पर नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस का भुगतान नहीं करते हैं तो हाउसिंग सोसाइटी उन्हें रिमाइंडर नोटिस भेज सकती है।
  • मालिक को डिफॉल्टर घोषित करना: अगर कई बार रिमाइंडर देने के बावजूद भी मकान मालिक नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस का भुगतान नहीं करता तो सोसायटी उस मालिक को वित्तीय रूप से डिफॉल्टर घोषित कर सकती है।
  • नो-ड्यूज सर्टिफिकेट न देना: चूंकि मकान मालिक नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस का भुगतान नहीं कर रहा है तो ऐसी स्थिति में सोसायटी को अधिकार होता है कि वह नो-ड्यूज सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दे, जिसकी आवश्यकता मकान मालिक को हो सकती है। इसका नकारात्मक असर तब ज्यादा होता है, जब मकान मालिक भविष्य में यदि अपनी संपत्ति बेचना चाहेगा। ऐसे में जब तक सभी लंबित नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस और पेनल्टी का भुगतान नहीं हो जाता, तब तक वह अपनी संपत्ति बेच नहीं पाएगा।

क्या सोसाइटी गठन के बाद नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस वसूल किए जाएं या डेवलपर के प्रोजेक्ट से बाहर होने तक इंतजार किया जाए?

नए रेसिडेंशियल कॉम्प्लेक्स में एक आम बात ये होती है कि फ्लैट मालिकों से सोसायटी बनने से पहले डेवलपर द्वारा (आमतौर पर 18 महीने की अवधि के लिए) मेंटेनेंस चार्ज वसूला जाता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या सोसायटी को डेवलपर के पूरी तरह प्रोजेक्ट से हटने (18 महीने की अवधि के बाद) तक इंतजार करना चाहिए या फिर जब सोसायटी का गठन हो जाए और हैंडओवर पूरा हो जाए, तभी से नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस वसूलना शुरू कर देना चाहिए?

एडवोकेट नीलम मयूरेश पवार के अनुसार, “चूंकि डेवलपर पहले ही 18 महीने की मेंटेनेंस राशि वसूल चुका है, इसलिए इस अवधि में सोसायटी के लिए नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस लगाने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है, जब तक कि वसूली गई राशि अपर्याप्त न हो जाए। ऐसे में बेहतर होगा कि सोसायटी डेवलपर से खातों का विधिवत हैंडओवर ले, ताकि बची हुई मेंटेनेंस राशि सोसायटी के खाते में ट्रांसफर की जा सके। यदि जरूरी हो तो नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस 18 महीने की मेंटेनेंस अवधि समाप्त होने के बाद ही लगाए जाने चाहिए, जब तक कि कोई तात्कालिक वित्तीय आवश्यकता उत्पन्न न हो जाए। इस मुद्दे पर सामूहिक निर्णय के लिए आगामी जनरल बॉडी मीटिंग में प्रस्ताव पारित करना सोसायटी के लिए उपयुक्त होगा।”

क्या नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस पर हाउसिंग सोसाइटी में जीएसटी लगता है?

इनकम टैक्स नियमों के अनुसार नॉन-ऑक्युपेंसी चार्ज टैक्स योग्य नहीं है। हालांकि, सरकारी दस्तावेज “हाउसिंग सोसायटी पर जीएसटी” के अनुसार, सिंकिंग फंड, रिपेयर्स एंड मेंटेनेंस फंड, कार पार्किंग चार्ज, नॉन-ऑक्युपेंसी चार्ज या लेट पेमेंट पर सिंपल इंटरेस्ट जैसे चार्ज पर जीएसटी लागू होता है क्योंकि ये चार्ज RWA/को-ऑपरेटिव सोसाइटी द्वारा अपने मेंबर्स को सर्विस देने के लिए वसूले जाते हैं।

Housing.com का पक्ष

वर्तमान में हाउसिंग सोसायटियों द्वारा लगाए जाने वाले नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस मासिक मेंटेनेंस बिल के सर्विस चार्ज घटक के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते। जैसे ही फ्लैट किराए से या लाइसेंस पर दिया जाता है या खाली हो जाता है, ये चार्जेस लगाए जा सकते हैं। किसी रीसेल फ्लैट खरीदार को यह सलाह दी जाती है कि वह फ्लैट खरीदने से पहले ऐसे किसी बकाए की जांच कर ले, क्योंकि सोसायटी खरीदार को एनओसी नहीं दे सकती या खरीदार से नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस चुकाने को कह सकती है, जिससे डील रद्द हो सकती है।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस की गणना कैसे की जाती है?

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस मासिक रखरखाव की गणना के सेवा लागत घटक का 10 फीसदी होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि मासिक रखरखाव की गणना का सेवा लागत घटक 5,820 रुपए प्रति माह है, तो नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस 582 रुपए प्रति माह होंगे।

भारत में नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस क्या है?

भारत में नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस वह पैसा होता है, जो तब सोसायटी को दिया जाता है, जब मालिक खुद उस प्रॉपर्टी में नहीं रहता बल्कि उसे किराए पर दूसरों को दे देता है।

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, एक सोसाइटी सेवा शुल्क का 10 प्रतिशत गैर-प्रवासी शुल्क के रूप में वसूल सकती है।

महाराष्ट्र में गैर-आधिकारिक शुल्क पर परिपत्र क्या है?

महाराष्ट्र सहकारी समितियां अधिनियम, 1960 की धारा 79A के अंतर्गत किसी भी स्थिति में गैर-प्रवासी शुल्क सोसायटी के रखरखाव शुल्क का 10 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता।

क्या गैर-आधिकारिक शुल्क कर योग्य होते हैं?

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस और स्थानांतरण शुल्क जैसे तत्व आयकर से मुक्त होते हैं।

कौन लोग नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस से मुक्त होते हैं?

यदि मालिक या उसके रक्त संबंधी संपत्ति का उपयोग करते हैं, तो वे 2025 के नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस से मुक्त होते हैं।

नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस कौन अदा करता है?

संपत्ति मालिक (सोसायटी का सदस्य) भी नॉन-ऑक्यूपेंसी चार्जेस अदा करता है।

सेवा शुल्क क्या होते हैं?

नए मॉडल बायलॉज के अनुसार बायलॉज संख्या-68 के तहत, सेवा शुल्क में कर्मचारियों की वेतन और भत्ते, समिति के सदस्य को बैठने की फीस, सोसायटी ऑफिस के लिए सामान्य बिजली और खर्च शामिल होते हैं।

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को jhumur.ghosh1@housing.com पर लिखें
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