माता-पिता भरण पोषण का हवाला देते हुए गिफ्ट डीड (तोहफे के तौर पर दी गई संपत्ति) को वापस नहीं ले सकते: सुप्रीम कोर्ट

अपने बच्चों को गिफ्ट डीड के तौर पर संपत्ति दिए जाने के बाद, तब भी वापस नहीं ली जा सकती जब उनके बच्चे बुढ़ापे में खयाल रखने से इनकार कर दें.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,  अगर माता-पिता अपनी संपत्ति अपने बच्चों के नाम कर रहे हैं, तो नाम करते वक्त उन्हें दस्तावेज में यह शर्त जरूर रखनी चाहिए कि उसके बदले वे उनका बुढ़ापे में खयाल रखेंगे. अगर इस तरह की शर्त गिफ्ट डीड वाले दस्तावेज में नहीं डाली जाती तो बाद में माता-पिता इस डीड को  रद्द नहीं कर सकते. इस बात का जिक्र 6 दिसंबर 2022 को जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस ओका की बेंच ने अपने एक ऑर्डर में किया.

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का रखरखाव और कल्याण अधिनियम 2007 का सेक्शन 23 अपने सब सेक्शन 1 में इस बात की जिक्र करता है.  यह कहता है कि संपत्ति ट्रांसफर तब ही रद्द माना जाएगा अगर कुछ शर्तों का उल्लंघन होता है. गिफ्ट डीड का एक अहम हिस्सा ये है कि संपत्ति प्राप्त करने वाला संपत्ति देने वाले को सारी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराए. संपत्ति प्राप्त करने वाला अगर इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराता, तो यह डीड रद्द मानी जाएगी.

“सेक्शन (23) के मुताबिक दो शर्तें पूरी होना चाहिए. अगर ऊपर बताई गईं  दोनों शर्तें लीगल तौर पर पूरी होती हैं, तो संपत्ति ट्रांसफर को धोखाधड़ी या ज़बरदस्ती या अनुचित प्रभाव के जरिए ट्रांसफर माना जाएगा. इन हालातों में इस तरह के संपत्ति ट्रांसफर संपत्ति प्राप्त करने वाले के लिहाज से रद्द माना जाते हैं, क्योंकि अब ट्रिब्यूनल को अधिकार होता है कि संपत्ति ट्रांसफर को रद्द करार दे दे.” इस बात की जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने सुदेश चिकारा बनाम रामति देवी केस का ऑर्डर देते हुए कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जब यह कथित तौर पर कहा जाता है कि सेक्शन 23(1) में बताई शर्त ट्रांसफर से अटैच है, तो इस तरह की शर्त थी या नहीं, इसको कोर्ट के सामने साबित करना अनिवार्य है.”

एक मामले में जब, एक गुड़गांव की महिला ने गिफ्ट डीड के जरिए अपनी संपत्ति बेटियों के नाम कर दी और बाद में जब उनकी बेटियों ने उनका खयाल  नहीं रखा, तो वह नॉन-मेंटिनेंस के तहत डीड को रद्द करवाने के लिए मेंटिनेंस ट्रिब्युनल फरियाद लेकर पहुंची. ट्रिब्युनल ने मां के पक्ष में फैसला सुनाया और 2018 में डीड को रद्द कर दिया. पंजाब और हरियाणा होईकोर्ट ने भी मां के पक्ष में फैसला सुनाया.

कोर्ट ने आगे कहा, “जब सीनियर सिटिज़न अपनी संपत्ति बच्चों के नाम करते हैं, तो अक्सर यह देखा जाता है कि वे भरण-पोषण की शर्त दस्तावेज में अटैच नहीं करते. इसके उलट, इस तरह के ट्रांसफर प्यार में किए जाते हैं और किसी तरह की उम्मीद नहीं की जाती. लेकिन अगर इस तरह की शर्त दस्तावेज में अटैच की गई है, तो कोर्ट के सामने इसकी सत्यता की जांच अनिवार्य है.

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