रियल एस्टेट पर कैसा है जीएसटी और RERA का प्रभाव और क्यों ओसी-रेडी प्रोजेक्ट्स को तहजीह दे रहे ग्राहक

जीएसटी और RERA लागू होने के बाद कई ग्राहक रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टीज को तहजीह दे रहे हैं। भले ही उनकी कीमत अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी से ज्यादा ही क्यों न हो। आप भी सोच रहे होंगे कि इसकी वजह क्या है? हम आपको आज यही बताने जा रहे हैं।
रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डिवेलपमेंट) एक्ट (RERA) के लागू होने के बाद इंडस्ट्री में काफी बदलाव देखे गए हैं। इस कानून के तहत बिल्डरों द्वारा अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स के विज्ञापन करने पर रोक लगा दी गई है। लेकिन जिन प्रोजेक्ट्स का अॉक्युपेंसी सर्टिफिकेट (OC) तैयार है, उन्हें ग्राहकों को लुभाने की छूट दी गई है। नए नियमों के लागू होने के साथ ही ग्राहक खुद ही रेडी-टू-मूव इन प्रॉपर्टीज में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
इसमें कुछ छिपा नहीं है कि रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टीज निर्माणाधीन संपत्तियों के मुकाबले ज्यादा महंगी हैं। अब ग्राहक एेसी प्रॉपर्टीज खरीदने को तैयार हैं, जो तैयार हो चुकी हैं। वह निर्माण पूरा होने का इंतजार नहीं करना चाहते। आइए आपको कारण बताते हैं कि ग्राहक एेसी संपत्तियां क्यों खरीद रहे हैं जो रेडी-टू-मूव हों या ओसी रेडी:

निर्माणाधीन और रेडी प्रॉपर्टीज में कीमत का फर्क:

पिछले कुछ वर्षों के दौरान रियल एस्टेट सेक्टर ने बदतर समय देखा है। इसके कारण कीमतों में गिरावट, बिना बिके फ्लैट्स की संख्या में इजाफा और कम प्रोजेक्ट लॉन्च हुए हैं। इन सबके चलते बिल्डरों को शानदार डील्स, डिस्काउंट्स और मुफ्त चीजें ग्राहकों को देने के लिए मजबूर होना पड़ा। मार्केट धीरे-धीरे बुरे वक्त से उभर रहा है, लेकिन ये चीजें अब भी मौजूद हैं। इसलिए ग्राहक के लिए यही सही है कि वे रेडी-टू-मूव प्रोजेक्ट्स में निवेश करें न कि एेसे नए प्रोजेक्ट्स में, जिनके बनने का लंबे समय तक इंतजार करना पड़े। मार्केट रिकवर होने के बाद कीमतें दोबारा बढ़ेंगी, लिहाजा यह ट्रेंड शुरुआती चरण में है। इसलिए यह ग्राहकों के लिए रेडी-टू-मूव इन प्रॉपर्टीज पर ध्यान लगाने के लिए बेस्ट टाइम है।

किराये की लागत:

ये प्रोजेक्ट्स ज्यादातर ग्राहकों की मदद से चलते हैं, जो बैंक लोन के जरिए पैसा चुकाते हैं। ग्राहकों को सिर्फ ईएमआई ही चुकानी नहीं होती, बल्कि जिस मकान में वे रह रहे हैं, प्रोजेक्ट पूरा होने तक उसका किराया भी देना होता है। थोड़ा ज्यादा चुकाकर घर मिलना, लंबे समय तक किराया देने से ज्यादा सस्ता है।

डिलीवरी की तारीख:

भारत में अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स निर्माण में देरी के लिए मशहूर हैं। इसके कारण ईएमआई के रूप में कीमत में इजाफा होता है बल्कि पोजेशन मिलने तक किराया भी देते रहना पड़ता है। भले ही देरी रियल एस्टेट सेक्टर में कई वजहों से हो रही हो, लेकिन कई ग्राहकों की वित्तीय स्थिति एेसी होती है कि वे एक वक्त से ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते। इसलिए रेडी-टू-मूव इन या ओसी रेडी प्रोजेक्ट्स में निवेश करने के फैसला ज्यादा बेहतर है।

किराये की आय:

कई लोग घर इसलिए खरीदते हैं, ताकि किराये की आय और उसे बेचकर पैसा पा सकें। पूरे हो चुके प्रोजेक्ट में प्रॉपर्टी खरीदने से वह तुरंत किराया के जरिए पैसा हासिल कर सकते हैं। यह फायदा उन्हें निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में नहीं मिलेगा।

फर्जी बिल्डरों से छुटकारा:

भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर अब भी बिखरा हुआ है और इसका इतिहास रहा है कि कई बिल्डर लोगों की गाढ़ी कमाई लेकर फरार हो चुके हैं। लेकिन RERA के लागू होने से एेसे बिल्डरों की गिनती में कमी आएगी। सख्त गाइडलाइंस के तहत सिर्फ वही बिल्डर्स मैदान में रहेंगे जो असली और गंभीर हैं। कुछ समय के लिए ग्राहक खुद को कमजोर महसूस कर रहे हैं इसलिए वे आश्वासन चाहते हैं कि पूरे हो चुके प्रोजेक्ट्स उन्हें अॉफर करेंगे।

सहायक इन्फ्रास्ट्रक्चर:

बड़े शहरों में कई एेसे प्रोजेक्ट्स आ रहे हैं, जहां बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे सड़कें, बिजली, वाटर कनेक्शन इत्यादि भी डिवेलप नहीं हुए हैं। उनसे वादा तब किया जाता है, जब प्रोजेक्ट्स पूरे हो जाते हैं और निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स में बुनियादी ढांचे के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। यह उन ग्राहकों का ध्यान बंटा देता है, जो अपने नए घर में जाना और बेहतर सुविधाएं चाहते हैं।

जीएसटी का प्रभाव:

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) के लागू होने से उन खरीददारों पर टैक्स का बोझ कम हो गया है, जो रेडी-टू-मूव इन अपार्टमेंट्स लेना चाहते हैं। यह टैक्स प्रोजेक्ट की पूरी लागत पर लागू होगा, जिसमें जमीन भी शामिल है। इसकी दर 12 प्रतिशत है। यह बिल्डर द्वारा इनपुट क्रेडिट क्लेम करने के लिए पर्याप्त है, जिससे ओसी रेडी प्रोजेक्ट्स ग्राहकों के लिए और किफायती हो जाते हैं।
इसके अलावा रेडी प्रॉपर्टीज को बेचना बिल्डरों के लिए भी अच्छा है क्योंकि इससे उनके बिना बिके फ्लैट्स बिक जाते हैं और पैसा मिलता है, जिसका इस्तेमाल वे उन प्रोजेक्ट्स में कर सकते हैं, जिनकी मांग बढ़ रही है। RERA के मुताबिक महाराष्ट्र में सभी रिहायशी प्रोजेक्ट्स के विज्ञापन या बिक्री से पहले महाराष्ट्र रियल एस्टेट रेग्युलेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य है। चूंकि अब नियम सख्त हो गए हैं, इसलिए बिल्डरों को कायदों का पालन करने में ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी। लेकिन महाराष्ट्र के RERA में रजिस्ट्रेशन अब भी कम है। एमएमआर में करीब 5000 अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स हैं, जिन्हें RERA का पालन करना है।

 

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