आयकर कानून के तहत रियल एस्टेट निवेश से मिली किराये की आय पर इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी के तहत टैक्स लगाया जाता है। जिन संपत्तियों को किराये पर दिया जाता है, वह वर्तमान में सर्विस टैक्स के रूप में इन्डायरेक्ट टैक्स के तहत आते हैं। इसके अलावा संपत्ति के ठेकेदारों को भी टीडीएस काटने की जरूरत है (स्रोत पर टैक्स कटौती), जबकि प्रस्तावित जीएसटी (गुड्स् एंड सर्विस टैक्स) किराये की आय पर टैक्स गणना भी प्रभावित करेगा।
मौजूदा सर्विस टैक्स कानून:
फिलहाल अगर मकानमालिक की सभी संपत्तियों से किराये की आय मिलाकर मूल सीमा 10 लाख सालाना को पार करती है तो उसे सर्विस टैक्स रजिस्ट्रेशन हासिल करना होता है। इसलिए अगर भारत में सभी संपत्तियों से होने वाली आपकी किराये की आमदनी 10 लाख को पार नहीं करती तो आप सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर हैं।
मौजूदा कानून सर्विस टैक्स की लेवी से मिले किराये को बाहर रखता है। एेसा तब होता है, जब रिहायशी संपत्ति को रहने के लिए ही किराये पर दिया जाता है। फिलहाल सिर्फ कमर्शियल प्रॉपर्टी पर ही सर्विस टैक्स चुकाना होता है। इसके अलावा अगर रिहायशी संपत्ति कमर्शियल के लिए इस्तेमाल हो रही है तो उस पर भी सर्विस टैक्स देना होगा। सिर्फ कर योग्य सेवाओं पर ही 10 लाख की सीमा लागू होगी। इसलिए अगर आपकी रिहायशी संपत्ति से किराये की आमदनी 10 लाख को पार करती है तो आपको सर्विस टैक्स नहीं चुकाना होगा। अगर कमर्शियल प्रॉपर्टी के मामले में एेसा होता है तो फिर सर्विस टैक्स लगेगा। हर साल की शुरुआत में 10 लाख की लिमिट रीसेट हो जाती है। फिलहाल कमर्शियल प्रॉपर्टी पर किराये का 15 प्रतिशत सर्विस टैक्स लिया जाता है।
जीएसटी के तहत प्रस्तावित प्रावधान:
सभी टैक्स को हटाकर जीएसटी आने से सर्विस और सामान पर अलग-अलग टैक्स की लेवी पर भ्रम दूर हो गया है। यह सर्विस टैक्स सिस्टम से बिल्कुल अलग है, जिसमें जीएसटी के प्रयोज्यता के लिए सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है। इसलिए सर्विस टैक्स के तहत आने वाले कई मकानमालिक 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद इनडायरेक्ट टैक्स के दायरे से बाहर हो गए।
यह भी ध्यान में रखना दिलचस्प है कि जीएसटी के तहत 20 लाख रुपये की कुल सीमा की गणना करने का मकसद टैक्सेबल और छूट वाले सामानों और सेवाओं की सप्लाई पर नजर रखना है। इसलिए सर्विस टैक्स सिस्टम से उलट, जहां सिर्फ टैक्सेबल सर्विस टैक्स सिस्टम है, वहां यह देखा जाता है कि आपने मूल सीमा पार की या नहीं। लेकिन जीएसटी के तहत भारत में सप्लाई की जाने वाली सभी सर्विसेज और चीजों की कीमत के साथ-साथ कर योग्य या छूट के मामले में 20 लाख रुपये की सीमा पर विचार किया जाता है। कमर्शियल प्रॉपर्टी को किराये पर देने पर 18 प्रतिशत जीएसटी चुकाना प्रस्तावित है।
व्यावसायिक संपत्तियों पर किराए के संबंध में जीएसटी के तहत एक और बड़ी टैक्स उलझन है। जीएसटी में रिवर्स चार्ज मिकैनिजम का विषय सर्विस टैक्स सिस्टम से लिया गया है। हालांकि सर्विस टैक्स सिस्टम से उलट रिवर्स चार्ज मिकैनिजम सर्विसेज के मामलों में लागू होता है। इसका विस्तार बिक्री या सामानों के उत्पादन में नहीं होता। यही जीएसटी में सामानों और सर्विसेज पर भी लागू होता है। एक शख्स जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड है, उसे एेसे शख्स से सामानों की सप्लाई होती है, जो जीएसटी के तहत पंजीकृत नहीं है, उसे रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत जीएसटी का भुगतान करना पड़ेगा। सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत ठेकेदार द्वारा चुकाए जाने वाले किराये के संबंध में रिवर्स चार्ज मिकैनिजम का कोई प्रावधान नहीं था। रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत बढ़ी हुई कीमतें और लेवी के कारण प्रस्तावित जीएसटी प्रावधान किराये पर किसी कमर्शियल परिसर को लेना महंगा बना देंगे।
किराये की संपत्ति के लिए आयकर पर टैक्स कटौती के प्रावधान:
सर्विस टैक्स और जीएसटी के मामले में अगर मकानमालिक इन कानूनों के तहत रजिस्टर्ड है तो उसे ठेकेदार से किराये पर सर्विस टैक्स या जीएसटी वसूलना होगा। इसी तरह आयकर कानूनों के तहत अगर संपत्ति का एक साल में 1.80 लाख रुपये तक किराया है तो लीज पर संपत्ति या जमीन देने वाले को स्रोत पर इनकम टैक्स घटाकर 10 प्रतिशत करना पड़ता है। 1.80 लाख रुपये की सीमा, मकान मालिक पर लागू होती है, संपत्ति पर नहीं। यह लीज का विषय है। ये टीडीएस प्रावधान रिहायशी के अलावा कमर्शियल प्रॉपर्टीज पर भी लागू होते हैं।
लेकिन यह प्रावधान तभी लागू होगा, अगर संपत्ति का मालिक इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 48एबी के तहत अपने खातों को अॉडिट कराता है। बजट 2017 में स्रोत पर टैक्स कटौती को लेकर एक प्रावधान लाया गया था। यह उन गैर विभाजित हिंदू परिवारों पर लागू होता है, जिन्हें अपना खाता अॉडिट कराने की जरूरत नहीं होती। इस तरह के लोगों और गैर विभाजित हिंदू परिवारों को साल या किराये की अवधि के अंत में स्रोत पर दो सूरतों में टैक्स घटाना होगा। पहला अगर साल खत्म होने से पहले किराये की अवधि खत्म हो जाती है तो उस साल के दौरान दिए गए किराए का 5 प्रतिशत घटाना होगा और दूसरा अगर पूरे साल के दौरान भुगतान किए गए किराए का कुल मूल्य 50,000 रुपये महीना से अधिक है।