आपके लिए फायदेमंद होंगे संपत्ति खरीद पर स्टाम्प ड्यूटी बचाने के ये 10 कानूनी तरीके

भारत में संपत्ति खरीद पर स्टाम्प ड्यूटी कम करने के कई कानूनी तरीके मौजूद हैं, जिनके बारे में यहां विस्तार से जानकारी दी गई है।

भारत में घर खरीदने वालों को संपत्ति के पंजीकरण के समय स्टाम्प शुल्क का भुगतान करना अनिवार्य होता है। प्रापर्टी की कुल कीमत का करीब 3-8 प्रतिशत (राज्य के अनुसार यह बदलती है) स्टाम्प शुल्क के रूप में एक घर खरीदार को देना पड़ती है, जो घर खरीदने वालों का वित्तीय बोझ बढ़ा देती है। साथ ही, यदि आप स्टाम्प शुल्क का भुगतान करने में विफल रहते हैं तो आपको बकाया राशि के साथ-साथ हर माह बकाया राशि का 2 प्रतिशत जुर्माना भी देना पड़ता है। यह जुर्माना मूल देनदारी के 200 प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है। हालांकि इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है, फिर भी कुछ सुरक्षित कानूनी तरीके हैं, जिनसे इस अतिरिक्त लागत को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है। इस आर्टिकल में ऐसे ही करीब 10 तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है –

Table of Contents

स्टाम्प ड्यूटी क्या है?

स्टाम्प ड्यूटी भारत में राज्यों द्वारा संपत्ति लेनदेन पर लगाया जाने वाला एक टैक्स है। इस टैक्स का भुगतान खरीदार को संपत्ति पंजीकरण के समय उप-पंजीयक कार्यालय के जरिए राज्य सरकार को करना होता है। स्टाम्प ड्यूटी के साथ-साथ पंजीकरण शुल्क भी देना अनिवार्य होता है। पंजीकरण शुल्क भी एक टैक्स है, जो दस्तावेजीकरण के एवज में देना अनिवार्य होता है। भारत में राज्यों को इस कर को लगाने का अधिकार प्राप्त है और विभिन्न राज्यों में स्टाम्प ड्यूटी की दरें अलग-अलग होती हैं। यह एक महत्वपूर्ण कर है जिसे चुकाना आवश्यक है ताकि संपत्ति को सरकार के कानूनी अभिलेखों में दर्ज किया जा सके।

प्रमुख भारतीय राज्यों में स्टाम्प ड्यूटी 2025

राज्य स्टाम्प शुल्क (लेनदेन मूल्य के प्रतिशत के रूप में)
आंध्र प्रदेश 5 फीसदी
अरुणाचल प्रदेश 6 फीसदी
असम 6 फीसदी
बिहार 6 फीसदी
छत्तीसगढ 5 फीसदी
गोवा 3-6 फीसदी, लेनदेन मूल्य के आधार पर
गुजरात 4.90 फीसदी
हरियाणा क्षेत्र के आधार पर 5-7 फीसदी
हिमाचल प्रदेश 6 फीसदी
झारखंड 4 फीसदी
कर्नाटक लेनदेन मूल्य के आधार पर 3-5 फीसदी
केरल 7 फीसदी
मध्य प्रदेश 8 फीसदी
महाराष्ट्र लेन-देन मूल्य के आधार पर 3-6 फीसदी
मणिपुर 4 फीसदी
मेघालय 9.90 फीसदी
मिजोरम 5 फीसदी
नगालैंड 8.25 फीसदी
ओडिशा 5 फीसदी
पंजाब 7 फीसदी
राजस्थान 6 फीसदी
सिक्किम 5 फीसदी
तमिलनाडु 7 फीसदी
तेलंगाना 4 फीसदी
त्रिपुरा 5 फीसदी
उत्तराखंड 5 फीसदी
उतार प्रदेश 7 फीसदी
पश्चिम बंगाल संपत्ति मूल्य के आधार पर 3-5 फीसदी
दिल्ली 6 फीसदी

स्टाम्प ड्यूटी भुगतान बचाने के कानूनी तरीके

1905 का पंजीकरण कानून और भारतीय स्टाम्प अधिनियम, कन्वेयंस डीड, टाइटल डीड और गिफ्ट डीड जैसे संपत्ति दस्तावेजों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाते हैं। यदि स्टाम्प ड्यूटी से बचने का प्रयास किया जाए तो कानून के तहत देयता पर 10 प्रतिशत तक की पेनाल्टी लग सकती है। साथ ही, भविष्य में यदि कोई विवाद होता है तो इस स्थिति में बिना स्टाम्प लगे दस्तावेजों को कोर्ट में साक्ष्य के रूप में पेश नहीं किया जा सकेगा। हालांकि स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान न करना कोई ऑप्शन मौजूद नहीं है, फिर भी भारत में संपत्ति खरीदते समय स्टाम्प ड्यूटी कम करने के कुछ कानूनी और सुरक्षित तरीके मौजूद हैं।

#1 महिला के नाम पर सेल डीड का रजिस्ट्रेशन कराएं

कुछ अपवादों को छोड़कर, भारत के लगभग सभी राज्यों में महिला खरीदारों को छूट दी जाती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में महिला खरीदारों को केवल 4 प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी देनी होती है, जबकि पुरुष खरीदारों के लिए यह दर 6 प्रतिशत है। आप इस लाभ का फायदा उठाने के लिए घर की किसी महिला सदस्य के नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री करा सकते हैं। मुंबई में महिला खरीदारों के लिए स्टाम्प ड्यूटी 5 प्रतिशत और पुरुष खरीदारों के लिए 6 प्रतिशत है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में महिला खरीदारों के लिए कोई अतिरिक्त छूट नहीं है और यहां पुरुष व महिला दोनों के लिए स्टाम्प ड्यूटी समान रूप से लगाई जाती है।

सावधानी

संपत्ति का अधिग्रहण एक अत्यंत व्यक्तिगत और जटिल मामला है। इस ऑप्शन का सिलेक्शन उस स्थिति में ही करना चाहिए, जब आपको भविष्य में स्वामित्व अधिकार और इसके दुरुपयोग को लेकर कोई कानूनी परेशानी नहीं दिख रही हो। साथ ही यह भी ध्यान दें कि यदि विक्रय विलेख महिला के नाम पर पंजीकृत किया जाता है, तो संपत्ति पर देय संपत्ति कर कम हो सकता है। यह एक भ्रांति है कि महिलाओं के साथ संयुक्त स्वामित्व रखने से स्टाम्प शुल्क में छूट मिलती है। यदि दो महिलाओं के बीच संपत्ति का संयुक्त स्वामित्व है और राज्य सरकार द्वारा ऐसी कोई सुविधा दी जा रही है तो ही स्टाम्प शुल्क में छूट मिल सकती है। किन्तु, यदि स्वामित्व एक पुरुष और एक महिला के बीच है और यदि राज्य सरकार ने सिर्फ महिलाओं के लिए यह छूट निर्धारित की है और मिश्रित स्वामित्व के लिए कोई प्रावधान नहीं है तो इस स्थिति में स्टाम्प शुल्क में छूट प्राप्त नहीं होगी।

#2 सर्किल दर के आधार पर स्टाम्प शुल्क का भुगतान करें

सर्किल दर, वह न्यूनतम मूल्य है जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है और इससे कम पर आप अपनी संपत्ति का पंजीकरण नहीं करा सकते। इसी दर को आधार बनाकर स्टाम्प शुल्क की गणना की जाती है। चूंकि कुछ मामलों में सर्किल दर संपत्ति के बाजार मूल्य से कम हो सकती है, इसलिए आप अपनी संपत्ति का पंजीकरण सर्किल दर के आधार पर कराने के बारे में सोच सकते हैं।

उदाहरण के रूप में इसे आप समझ सकते हैं, मान लीजिए कि आपकी संपत्ति की बाजार दर के अनुसार कीमत 1 करोड़ रुपये है, क्योंकि उस क्षेत्र में बाजार मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित सर्किल दर से अधिक है। यदि सर्किल दर के अनुसार गणना करें, तो संपत्ति की कीमत केवल 80 लाख रुपये बनती है। इस प्रकार, आप सर्किल दर के आधार पर संपत्ति का पंजीकरण कराके कानूनी रूप से सुरक्षित रह सकते हैं। यदि यह संपत्ति दिल्ली में स्थित है तो एक महिला खरीदार को संपत्ति के मूल्य का 4 प्रतिशत यानी 3.20 लाख रुपये स्टाम्प शुल्क के रूप में देना पड़ेगा। यदि वह संपत्ति का पंजीकरण खरीद मूल्य यानी 1 करोड़ रुपये पर कराती तो उसे 4 लाख रुपये का स्टाम्प शुल्क चुकाना पड़ता।

सावधानी

सर्कल रेट पर संपत्ति का पंजीकरण कराना आपके कागजों पर संपत्ति का मूल्य घटाने जैसा भी होता है। इसका मतलब है कि यदि आप भविष्य में इस संपत्ति को बेचते हैं तो शायद आप उस संपत्ति के लिए 1.20 करोड रुपये की मांग नहीं कर पाएंगे, जिसकी रजिस्ट्री आपने कुछ साल पहले 80 लाख रुपए  में की थी। वहीं दूसरी ओर ऐसा करने पर आपको पूंजीगत लाभ कर (कैपिटल गेंस टैक्स) भी ज्यादा दर से देना पड़ सकता है।

साथ ही, कुछ स्थानों पर स्टाम्प शुल्क का आकलन बाजार मूल्य और सर्कल रेट में से जो भी अधिक हो, उसके आधार पर किया जाता है। यदि आपने कोई संपत्ति सर्कल रेट से कम मूल्य पर खरीदी है, तब भी रजिस्ट्री  सर्कल रेट या बाजार मूल्य, जो भी ज्यादा हो, उसके अनुसार करना पडता है।

#3 बाजार दर निर्धारण की अपील

कई बार संपत्ति का बाजार मूल्य सर्कल रेट से कम होता है। हालांकि, कानून के अनुसार आपको केवल सर्कल रेट पर ही स्टाम्प शुल्क चुकाना होता है, इस कारण कम मूल्य वाली संपत्ति पर भी आपको अधिक स्टाम्प शुल्क देना पडड सकता है, लेकिन इस स्थिति से बचने का एक तरीका है।

भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 47 के तहत, खरीदारों को यह अधिकार मिला है कि यदि किसी संपत्ति का बाजार मूल्य सर्कल रेट से कम हो, तो वे उप-पंजीयक (सब-रजिस्ट्रार) के पास अपील दायर कर सर्कल रेट की समीक्षा करवा सकते हैं।

सावधानी

आपकी अपील लंबित रहने के दौरान संपत्ति अपंजीकृत रहेगी। यदि उप-पंजीयक संतुष्ट नहीं होता है, तो आपको पुराने स्टाम्प शुल्क का भुगतान भी करना पड़ सकता है।

#4 निर्माणाधीन संपत्ति की कम अविभाजित हिस्सेदारी (यूडीएस) पर रजिस्ट्री

निर्माणाधीन संपत्ति के मामले में खरीदार निर्माण लागत और उस भूमि पर अपनी अविभाजित हिस्सेदारी (यूडीएस) के आधार पर स्टाम्प शुल्क का भुगतान करता है, जिस पर संरचना खड़ी है।

उदाहरण के लिए, कर्नाटक और तमिलनाडु में निर्माणाधीन संपत्तियों के खरीदार स्टाम्प शुल्क दो भागों में चुकाते हैं। पहले चरण में संपत्ति खरीदार के नाम पर उसके अविभाजित हिस्सेदारी (यूडीएस) के आधार पर पंजीकृत होती है। कम यूडीएस दिखाने का मतलब ये होता है कि कम स्टाम्प शुल्क देना। परियोजना पूर्ण होने पर, संपत्ति दोबारा रजिस्टर्ड की जाती है और इस बार पूरे संपत्ति मूल्य के आधार पर स्टाम्प शुल्क लिया जाता है।

सावधानी

ऐसा करने का मतल ये है कि यदि आप इस संपत्ति को बेचते हैं तो आपको वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह आपके संपत्ति मूल्य में स्थायी गिरावट ला सकता है।

#5 राज्य-विशेष में टैक्स छूट का लाभ उठाएं

कोई भी खरीदार संपत्ति खरीदने से पहले इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करता है। ऐसे में स्थानीय स्टाम्प शुल्क कानून का अध्ययन करना भी अच्छा होता है क्योंकि संपत्ति पंजीकरण के समय कुछ राज्य-विशेष में टैक्स छूट भी दी जाती है, जिसका लाभ उठाया जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में परिवार के भीतर संपत्ति स्थानांतरण पर स्टाम्प शुल्क को 7,000 रुपये (6,000 रुपये स्टाम्प शुल्क + 1,000 रुपये प्रसंस्करण शुल्क) तक सीमित कर दिया गया है। वहीं महाराष्ट्र में, परिवार के भीतर संपत्ति स्थानांतरण पर केवल 200 रुपये का स्टाम्प शुल्क लिया जाता है, हालांकि सरकार इस प्रावधान की समीक्षा कर राजस्व संग्रह बढ़ाने की प्रक्रिया में है।

सावधानी

ऐसे नियम आमतौर पर असली लेनदेन की बजाय उपहार या वसीयत आधारित होते हैं।

#6 स्टाम्प शुल्क पर टैक्स लाभ लें

आप आयकर भरते समय भी इस बचत का लाभ ले सकते हैं। आयकर अधिनियम की धारा-80सी के तहत, खरीदार संपत्ति खरीद पर लगाए गए स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क के भुगतान पर 1.50 लाख रुपए तक की कटौती का दावा कर सकता है। यदि संपत्ति के मालिक संयुक्त रूप से हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी हिस्सेदारी के अनुपात में इस कटौती का दावा कर सकता है।

सावधानी

केवल व्यक्ति और हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) ही इस कटौती का लाभ उठा सकते हैं। यह कटौती केवल उसी वर्ष में ली जा सकती है, जिस वर्ष स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क का भुगतान किया गया हो। उदाहरण के लिए, यदि आपने 20 अक्टूबर 2024 को संपत्ति खरीदी और पंजीकृत करवाई तो आप वित्तीय वर्ष 2025 (अप्रैल 2024 से मार्च 2025) में इस कटौती का दावा कर सकते हैं।

#7 गिफ्ट डीड में स्टाम्प शुल्क पर छूट

यदि आप अपनी संपत्ति को किसी रक्त संबंधी को ट्रांसफर कर रहे हैं तो आप एक गिफ्ट डीड निष्पादित कर सकते हैं, क्योंकि राज्य द्वारा उपहार पत्र पर देय स्टाम्प शुल्क पर छूट दी जाती है। यह छूट काफी कम होती है। इसका एक अन्य फायदा ये है कि जब उपहार पत्र निष्पादित किया जाता है, तो स्टाम्प शुल्क का भुगतान दाता द्वारा किया जाता है, न कि प्राप्तकर्ता द्वारा।

सावधानी

यह छूट केवल रक्त संबंधियों को संपत्ति के हस्तांतरण पर स्टाम्प शुल्क के लिए दी जाती है। अन्य मामलों में, दाता को राज्य में लागू स्टाम्प शुल्क का भुगतान करना होगा। यह दाता के लिए वित्तीय रूप से हानिकारक हो सकता है, क्योंकि वह स्टाम्प शुल्क का भुगतान करेगा और बिना किसी लाभ के संपत्ति उपहार स्वरूप देगा। यदि दाता उपहार पत्र निष्पादित करके संपत्ति के लिए किसी प्रकार का आर्थिक लाभ प्राप्त करता है तो ऐसी स्थिति में इसे अवैध माना जाएगा। ऐसे मामलों में लेनदेन को सामान्य संपत्ति हस्तांतरण के रूप में माना जाएगा और उचित स्टाम्प शुल्क व पंजीकरण शुल्क लागू होंगे।

#8 सस्ती आवास परियोजना में निवेश करें

सस्ती आवास परियोजनाओं पर स्टांप ड्यूटी अन्य आवासीय परियोजनाओं की तुलना में सस्ती होती है। इसलिए सस्ती आवास परियोजनाओं में निवेश करने से आप कानूनी रूप से कम स्टांप ड्यूटी का फायदा उठा सकते हैं।

सावधानी

हालांकि सस्ती आवास परियोजनाओं पर स्टांप ड्यूटी कम होती है, इसे निर्णय लेने का केवल एकमात्र कारण नहीं होना चाहिए। परियोजना के स्थान, विन्यास और कनेक्टिविटी पर भी जरूर सोचना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजना आपकी आवश्यकताओं के अनुकूल है।

#9 प्रधानमंत्री आवास योजना में भाग लें

प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) उन लोगों के लिए सस्ती आवास प्रदान करती है, जिनके पास कच्चे मकान हैं। इन संपत्तियों पर स्टांप ड्यूटी आमतौर पर उन संपत्तियों से कम होती है, जिन पर राज्य सामान्य संपत्तियों के लिए शुल्क लेता है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यदि महिलाओं के नाम पर घर खरीदा जाता है तो वित्तीय छूट भी प्राप्त होती है।

सावधानी

यह महत्वपूर्ण है कि आप सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करें, जैसे कि देश में कहीं भी पक्का मकान न होना, ताकि आप और आपके परिवार के सदस्य प्रधानमंत्री योजना के लिए योग्य हो सकें। पीएम आवास योजना के तहत EWS, LIG श्रेणी के लिए विभिन्न योजनाएं उपलब्ध हैं। यदि डेटा का कोई उल्लंघन होता है, तो लाभार्थी भविष्य में आवास योजना के लिए आवेदन करने का पूरा अवसर खो देंगे।

#10 ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश करें

ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों का बाजार मूल्य कम होता है और इसलिए कम स्टांप ड्यूटी भी चुकानी पड़ती है। हालांकि, यह निवेशकों के लिए कोई खराब सौदा नहीं है। Tier-2 और Tier-3 शहरों में डिमांड है, और यहां निवेश करने से उच्च लाभ सुनिश्चित होगा, साथ ही कम स्टांप ड्यूटी और कर लाभ जैसे फायदे भी मिलेंगे।

सावधानी

निवेश करते समय उचित जांच-पड़ताल करें, क्योंकि आजकल Tier-2 और Tier-3 शहरों में कई संपत्तियां बिक्री के लिए उपलब्ध हैं, जो RERA नियमों का पालन नहीं करती हैं। यह एक चेतावनी है, और यदि आपको धोखा दिया जाता है तो आपका निवेश व्यर्थ हो सकता है।

कानूनी दृष्टिकोण

संपत्ति के मामलों से जुड़े कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, किसी को अपनी संपत्ति की रजिस्ट्री करते समय केवल स्टांप ड्यूटी भुगतान में पैसे बचाने के उद्देश्य से कभी भी अपनी संपत्ति को कम मूल्यांकित नहीं करना चाहिए। उनका कहना है कि ऐसा करने के दूरगामी कानूनी और मौद्रिक परिणाम हो सकते हैं।

पहली बात यह है कि यदि आप एक कम मूल्यांकित संपत्ति को बेचने का निर्णय लेते हैं तो आपको एक ऐसा खरीदार ढूंढना बेहद मुश्किल होगा जो आपकी संपत्ति का उचित मूल्य देने को तैयार हो। भले ही ऐसा किसी तरह से काम कर जाए, लेकिन आप एक विक्रेता के रूप में बहुत सारे कर के रूप में पूंजीगत लाभ का भुगतान करेंगे।

यदि 2005 में एक संपत्ति का मूल्य 1 करोड़ रुपये है, उसको यदि 80 लाख रुपये में पंजीकृत किया गया था और फिर 2010 में इसे 1.5 करोड़ रुपये में बेचा गया तो विक्रेता को 70 लाख रुपये का मुनाफा होगा, इस राशि का 20 फीसदी (14 लाख रुपये) कर के रूप में चुकाना होगा। यदि संपत्ति की शुरुआत में कम मूल्यांकन नहीं किया जाता, तो मालिक को 50 लाख रुपये का लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ पर 20 फीसदी यानी 10 लाख रुपये टैक्स के रूप में देना होगा।

Housing.com का पक्ष

स्टांप ड्यूटी एक बहुत महत्वपूर्ण टैक्स है, जो संपत्ति को कानूनी रूप से रजिस्टर्ड कराने के लिए देना पड़ता है। यह संपत्ति के मालिक होने का दावा करने के लिए महत्वपूर्ण है। चूंकि यह घर खरीदने की लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, अधिकांश लोग इसे घटाने या न चुकाने के तरीके तलाशते हैं। जबकि इसे न चुकाने जैसा कोई भी विकल्प मौजदू नहीं है। ऐसे में पंजीकरण शुल्क को इस लेख में बताए गए कानूनी तरीकों से कम किया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रॉपर्टी खरीद पर मुझे कितना स्टांप ड्यूटी देना होगा?

भारत में प्रॉपर्टी खरीद पर स्टांप ड्यूटी की दर 3-10 फीसदी के बीच हो सकती है। आप जिस राज्य में निवास करते हैं, उस राज्य के अनुसार सही दर तय की जाती है।

स्टांप ड्यूटी दरें किस पर निर्भर करती हैं?

स्टांप ड्यूटी दरें प्रॉपर्टी की कीमत, प्रॉपर्टी का स्थान और राज्य-विशिष्ट स्टांप ड्यूटी कानून पर निर्भर करती हैं।

सर्कल रेट्स क्या हैं?

सर्कल रेट्स, जिन्हें रेडी रेकनर रेट्स की मार्गदर्शक मूल्य भी कहा जाता है, सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरें हैं, जिनसे नीचे कोई प्रॉपर्टी राज्य रिकॉर्ड में रजिस्टर्ड नहीं हो सकती।

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को jhumur.ghosh1@housing.com पर लिखें
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