जानिए, जीएसटी के तहत घर खरीदना जनता के लिए महंगा होगा या सस्ता?

होम लोन के मद्देनजर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में क्या-क्या बदलाव आएंगे और यह कैसे उधार लेने की लागत को प्रभावित करेगा? आज हम आपको इसी बारे में बताएंगे.

कर्जदाता अब सुविधाओं के लिए 18 प्रतिशत जीएसटी वसूलेगा, जो सर्विस टैक्स सिस्टम में 15 प्रतिशत होता था. इसलिए माना जा रहा है कि इससे होम लोन महंगा हो जाएगा. लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है, जितना लग रहा है.

होम लोन प्रोसेसिंस की ऐसी कौन सी चीजें हैं, जिन पर जीएसटी लगेगा?

होम लोन की दरों पर जीएसटी का क्या असर पड़ेगा, यह समझने से पहले जानना जरूरी है कि जीएसटी की दरें बढ़ने से किन चीजों पर असर पड़ेगा. होम लोन लेने की मुख्य लागत, उस राशि पर ब्याज चुकाना होता है. लागत नहीं बदलेगी, क्योंकि उस पर कोई सर्विस टैक्स या जीएसटी नहीं है. इसी तरह, होम लोन के डॉक्युमेंटेशन पर लगने वाली स्टैंप ड्यूटी जीएसटी के साथ नहीं बदलेगी क्योंकि स्टैंप ड्यूटी जीएसटी में शामिल नहीं है.

लेकिन ऐसे कई बदलाव हैं तो कर्जदाता होम लोन्स पर लगाएंगे. सबसे पहली है, प्रोसेसिंग फीस जो होम लोन लेते वक्त भरनी होती है. फिलहाल यह 15 प्रतिशत है, जो 18 प्रतिशत जीएसटी के बाद 3 प्रतिशत बढ़ गई है. यह एक बार चुकाई जाने वाली रकम है और इसका आपकी होम लोन की अवधि पर  कुछ भी असर नहीं होता. इसके अलावा होम लोन से जुड़ी एडवोकेट फीस, वैल्यूएशन चार्ज इत्यादि भी बैंक रिकवर कर सकता है, जो अनुपात में ऊपर जा सकता है.

प्रोसेसिंग फीस के अलावा अगर आप समय से पहले अपना लोन चुका देना चाहते हैं या किसी दूसरे कर्जदाता के पास अपना होम लोन शिफ्ट कराना चाहते हैं तो आपको प्री-पेमेंट चार्जेज का भुगतान करना होगा. अगर ब्याज की दर फिक्स है तो इसका भुगतान करना होगा. अगर होम लोन्स की दर अस्थिर है तो बैंक प्रीपेमेंट चार्जेज नहीं लगा सकता. अगर आप होम लोन किसी दूसरे कर्जदाता को ट्रांसफर करते हैं तो हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां प्रीपेमेंट चार्जेज लगा सकती हैं. लेकिन अगर आप होम लोन अपने संसाधनों से चुका रहे हैं तो हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां प्रीपेमेंट चार्जेज नहीं लगाएंगी.अगर EMI में चूक होती है, चाहे वह चेक बाउंस के कारण हो या ईसीएस रिटर्न के कारण, तो कर्जदाता आपसे चार्ज वसूल सकता है. इसलिए कर्जदाता आपसे जो भी चार्ज लेगा, उस पर जीएसटी 3 प्रतिशत बढ़ जाएगा.

जीएसटी का कर्जदाता पर क्या असर पड़ेगा?

चूंकि कर्जदाता सर्विस मुहैया करा रहे थे और उन्हें सर्विस टैक्स के नियमों के तहत रजिस्टर कराने की जरूरत थी. लिहाजा वह इनपुट क्रेडिट का फायदा उठा सकते थे क्योंकि उन्होंने सर्विस का फायदा उठाया और उत्पादक से सीधे माल खरीदा. कर्जदाता वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) चुकाते थे, वह  स्टेशनरी और बाकी इस्तेमाल की चीजों की खरीद पर इनपुट क्रेडिट लेने की स्थिति में नहीं थे.

जीएसटी लागू होने के बाद, जिसमें गुड्स एंड सर्विसेज की सप्लाई भी शामिल है, कर्जदाता इस तरह की सप्लाई पर दिए गए टैक्स का भी फायदा उठा सकेंगे. इससे कर्जदाता टैक्स में कुछ बचत कर पाएंगे क्योंकि सुविधाओं के मद्देनजर इनपुट क्रेडिट के रूप में और साथ ही खरीदे गए सामान पर जीएसटी आउटपुट टैक्स देयता के खिलाफ सेट ऑफ के लिए उपलब्ध होंगे.

रिवर्स चार्ज मिकैनिजम, जिसे सर्विस टैक्स सिस्टम से उठाया गया है और जिसका जीएसटी में विस्तार कर दिया गया है, बैंकों के मुनाफे को बुरी तरह प्रभावित करेगा. सर्विस टैक्स में रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत, पानेवाले (Recipient) को कुछ खास सर्विसेज पर सर्विस टैक्स देना होता था. इसलिए रिवर्स चार्ज का दायरा सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत सीमित था. लेकिन जीएसटी ने रिवर्स चार्ज मिकैनिजम का स्कोप और व्यापक कर दिया है. अब जिन कर्जदाताओं को GST के तहत रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है, उन्हें सामान और सेवा की खरीद के लिए GST का भुगतान ऐसे लोगों को करना होगा, जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं.

इसके अलावा कर्जदाताओं को जीएसटी के तहत हर राज्य में रजिस्ट्रेशन कराना होगा. वहीं सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत, उन्हें एक केंद्रीय रजिस्ट्रेशन हासिल करना होता था. इससे कर्जदाताओं की अनुपालन लागत में इजाफा होगा. इसके अलावा इसे कर्जदाताओं के मुनाफे पर भी असर पड़ेगा क्योंकि उन्हें किसी भी छोटे सप्लाई से आपूर्ति के खर्चे को उठाना पड़ेगा, जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं. यह काम कर्जदाताओं को सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत करने की जरूरत नहीं थी.

जीएसटी के तहत मुनाफाखोरी विरोधी प्रावधान

जीएसटी नियमों के तहत सप्लायर्स से कहा गया है कि वे घटी हुई कीमतों का फायदा इनपुट सप्लायर्स को दें. साथ ही इनपुट क्रेडिट की उपलब्धता के कारण फायदा कस्टमर्स और क्लाइंट्स को कम कीमतों के रूप में दें. इसलिए कर्जदाताओं को घटी हुई बैंक दरों के जरिए फायदा आगे देना होगा.लेकिन सवाल है कि जीएसटी के वास्तविक प्रभाव की गणना कैसे की जाए क्योंकि रिवर्स चार्ज और एक्सपैंड इनपुट टैक्स क्रेडिट बेस जैसी प्रभावित करने वाली चीजें हैं. ऐसी स्थिति में, जब उनकी लागतों पर जीएसटी के प्रभाव को तय करना संभव नहीं है तो कर्जदाता अपना कोई शुल्क घटाना तो दूर उल्टा रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत बढ़ी हुई कीमतों का हवाला देकर उसमें इजाफा कर देंगे.

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