लोग अकसर निवेश करते वक्त रिहायशी और कमर्शियल प्रॉपर्टीज के बीच फर्क नहीं पहचान पाते और सिर्फ एक पर ही फोकस करते हैं। ब्रिकईगल में बिजनेस पार्टनर कीर्ति तिममानगौदर ने कहा, रिहायशी और कमर्शियल सेगमेंट्स में लीज बिजनेस की एकदम अलग रफ्तार है। कीर्ति ने कहा, ”किफायती घरों की बढ़ती कमी को पूरा करने के लिए भारत में किराये पर मकान देने का चलन शुरू हुआ। किराये पर दी जाने वाली संपत्ति को चलाने की अॉपरेटिंग कॉस्ट (परिचालन लागत) बेहद कम है, क्योंकि किरायेदार को सिर्फ बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है”।
उन्होंने आगे कहा, ”दूसरी ओर, कमर्शियल प्रॉपर्टी (मॉल या अॉफिस) में ज्यादा निवेश की जरूरत होती है। साथ ही पट्टे और नौकरी के जोखिम भी होते हैं”। इस सेगमेंट पर इकनॉमी और रियल एस्टेट मार्केट साइकल्स का सीधा असर पड़ता है। यह हाउसिंग की तरह नहीं है, जिसका मार्केट से कोई संबंध नहीं है क्योंकि यह लोगों के इस्तेमाल से चलता है और वहां काफी कमी है”।
रिहायशी बनाम कमर्शियल स्पेस
- रिहायशी के मुकाबले कमर्शियल प्रॉपर्टीज हमेशा महंगी होती हैं, जब तक आप व्यक्तिगत दुकानों में निवेश न करें।
- रिहायशी प्रोजेक्ट्स की तुलना में कमर्शियल प्रॉपर्टीज की लीज अवधि और किराया ज्यादा होता है।
- कमर्शियल प्रॉपर्टीज में किरायेदार पर ही रिपेयर और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी होती है। जबकि रिहायशी में इसका जिम्मा मकानमालिक का होता है।
किराये की आय के लिए ज्यादा आकर्षक क्या है?
रहेजा होम्स बिल्डर्स एंड डिवेलपर्स के सीईओ सुशील रहेजा ने कहा, ”कानूनी पहलुओं को देखते हुए कमर्शियल प्रॉपर्टीज ज्यादा पेचीदा है। इसका लीज पीरियड ज्यादा होता है और इससे आपको ज्यादा किराया भी मिल सकता है। लेकिन आपको लंबे समय के लिए अच्छी डील करनी पड़ेगी। कमर्शियल प्रॉपर्टी के उलट रिहायशी प्रॉपर्टी की रेंटल वैल्यू मार्केट स्लो होने पर भी कम नहीं होती। लेकिन आपको ये अच्छी तरह पता होना चाहिए कि कमर्शियल रियलिटी मार्केट कैसे काम करता है”। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि क्वॉलिटी और संपत्ति की लोकेशन को देखते हुए कमर्शियल प्रॉपर्टी में किया गया निवेश किसी को भी 6-10 प्रतिशत तक किराया दे सकता है। लेकिन पूंजी में इजाफा सीमित है। कई इंस्टिट्यूशनल फंड्स मध्यम और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट्स के लिए इस सेगमेंट्स पर फोकस कर रहे हैं।
भारत में किराये से होने वाली आमदनी को व्यक्तियों द्वारा मैनेज किया जाता है, लेकिन ये किराये रेडी टू मूव पर बेहतर नहीं होते। अगर हम बड़े स्तर पर घर के किराये पर विचार करें और जिन संस्थानों और बड़े निवेशकों ने शुरुआती चरण में मार्केट में एंट्री की थी, उन्हें कमर्शियल प्रॉपर्टीज से शानदार रिटर्न्स मिलने की उम्मीद है।
वहीं रिहायशी प्रॉपर्टी कम पेचीदा होती हैं और नया निवेशक उसे आसानी से समझ लेता है। तुलना करके कोई उसकी वैल्यू मालूम कर सकता है, जबकि कमर्शियल सेगमेंट में एेसा करना आसान नहीं है। लेकिन कमर्शियल सेगमेंट में आमदनी खूब होती है। आप प्राइम लोकेशन पर 4-5 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी में निवेश करके 40 लाख रुपये सालाना कमा सकते हैं। कमर्शियल प्रॉपर्टी की तुलना में रिहायशी प्रॉपर्टी में रिटर्न्स कम होते हैं और ग्राहकों को ध्यान देना चाहिए कि इसके पीछे प्रॉपर्टी का सही चुनाव, लोकेशन, मार्केट की स्थिति, खरीद मूल्य होता है।
क्या हैं रिहायशी और कमर्शियल प्रॉपर्टी के फायदे और नुकसान:
रिहायशी प्रॉपर्टी | कमर्शियल प्रॉपर्टी |
फायदे | |
प्रॉपर्टी की वैल्यू बढ़ने के साथ-साथ किराये की आमदनी भी बढ़ती है
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नियमित तौर पर किराये से अच्छी आमदनी होती है |
टैक्स में छूट उपलब्ध है
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गर मुंबई या एनसीआर जैसी प्राइम लोकेशन चुनते हैं तो अच्छी आमदनी हो सकती है।
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जैसे चाहें वैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। आप उसमें रह सकते हैं या किराये पर दे सकते हैं। खुद का अॉफिस भी बना सकते हैं। | लीज की अवधि लंबी होती है
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जिंदगी भर साथ रहने वाली संपत्ति है, जिसे आने वाली पीढ़ियों को भी सौंपा जा सकता है। | वक्त के साथ पूंजी में इजाफे के साथ किराया बढ़ता है। |
नुकसान | |
नियमित तौर पर मेंटेनेंस की जरूरत पड़ती है। | बहुत दिनों तक प्रॉपर्टी खाली नहीं रख सकते, इससे कैश फ्लो प्रभावित सकता है। |
पोजेशन मिलने में देरी का रिस्क है। | निवेशक को ज्यादा पूंजी राशि के साथ जोखिम लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। |