दूसरी पत्नी और उसके बच्चों के संपत्ति अधिकार

भारत में उत्तराधिकार कानून विवाह की कानूनी स्थिति के आधार पर दूसरी पत्नी को पहली पत्नी के बराबर मानता है।

पहली पत्नी के साथ शादी रहते हुए दूसरी शादी करना हिंदू विवाह कानून के तहत गैरकानूनी है। लेकिन अगर दूसरी शादी वैध है, तो दूसरी पत्नी के बच्चों को पति की पैतृक और अन्य संपत्तियों पर अधिकार मिलता है।

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इसका मतलब यह है कि भारत में दूसरी पत्नी के पति की संपत्ति पर अधिकार मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करते हैं:

  • विवाह की वैधता
  • धार्मिक कानूनों का लागू होना

 

दूसरी शादी कब कानूनी रूप से वैध होती है?

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, दूसरी शादी तभी कानूनी मानी जाती है जब विवाह के समय दोनों में से किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित न हो।” हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा-5 के तहत शादी को वैध बनाने के लिए कई शर्तें हैं, जिनमें से एक है कि “शादी के समय दोनों में से किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिए।”

अक्टूबर 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फिर से यह स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, यदि दोनों में से किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित है, तो दूसरी शादी वैध नहीं होगी। इस शर्त का उल्लंघन करने पर शादी धारा-11 के तहत विवाह को शून्य माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों की सहमति इस तरह की शादी को वैध नहीं बना सकती। दूसरी शादी इन परिस्थितियों में वैध होती है:

  • पहली पत्नी की मृत्यु: यदि पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो और उसके बाद दूसरी शादी हो।
  • पहली पत्नी से तलाक: यदि पति ने पहली पत्नी से तलाक ले लिया हो और उसके बाद दूसरी शादी की हो।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पहली पत्नी से तलाक के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान भी दूसरी शादी वैध मानी जाएगी।

पहली पत्नी के बारे में 7 साल तक कोई जानकारी न होना

यदि पहली पत्नी 7 साल पहले पति को छोड़कर चली गई हो और उसके बारे में कोई जानकारी न हो।

यदि दूसरी शादी कानूनी रूप से वैध है, तो दूसरी पत्नी और उसके बच्चे को पति/पिता की संपत्ति में वही अधिकार मिलते हैं, जो पहली पत्नी और उसके बच्चों को मिलते हैं। हालांकि, अगर शादी शून्य है, तो दूसरी पत्नी को संपत्ति में लगभग कोई अधिकार नहीं होगा।

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तलाक की अर्जी कोर्ट में पेंडिंग होने के बावजूद, दूसरा विवाह वैध माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

अगर पहली पत्नी से तलाक के लिए अर्जी कोर्ट में लगा दी गई है, तो केस के चलने के दौरान भी दूसरा विवाह होता है, तो वह वैध माना जाएगा। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक केस की सुनवाई करते हुए दिया था।

अब इसी ऑर्डर के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले को खारिज कर दिया है। इस फैसले में होई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि तलाक की अर्जी कोर्ट में चलने के दौरान अगर व्यक्ति दूसरी शादी करता है, तो वह हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन  5(1) का उल्लंघन माना जाएगा।

हिंदू मैरिज एक्ट बताता है कि दूसरा विवाह केवल तब ही वैध माना जाएगा जब पहली पत्नी से तलाक मिल चुका हो। सेक्शन  5(1) कहता है कि शादी के वक्त किसी भी पार्टी का जीवनसाथी उसके साथ रिश्ते में नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “दूसरी शादी को वैध न मानने के नतीजे बेहद गंभीर हो सकते हैं जिसका असर बहुत व्यापक हो सकता है। यह फैसला मासूम बच्चों पर भी पड़ सकता है जिनका जन्म शादी को अवैध करार देने के पहले हुआ हो। किसी भी शादी को अवैध करार देना सही नहीं होता जब तक कि कारण बेहद गंभीर न हों।”

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दूसरी पत्नी: भारत में संपत्ति अधिकारों से जुड़े कानून

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956/2005

यह उत्तराधिकार कानून हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925

यह कानून उन हिंदुओं पर लागू होता है, जिनकी मृत्यु वसीयत (टेस्टामेंटरी उत्तराधिकार) के साथ होती है। यह कानून ईसाइयों की संपत्ति अधिकारों से भी संबंधित है। अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति वसीयत बनाकर मृत्यु करता है, तो यह अधिनियम उस पर भी लागू होगा।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937

यह उत्तराधिकार कानून मुसलमानों पर लागू होता है, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है।

यह भी देखें: मुस्लिम महिला का संपत्ति पर क्या अधिकार है?

 

दूसरी शादी में दूसरी पत्नी के संपत्ति अधिकार

ऐसे में जहां विवाह की कोई कानूनी मंजूरी नहीं है, दूसरी पत्नी का अपने पति की पुश्तैनी संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा। हालाँकि, पति की स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में ऐसा नहीं है। वह वसीयत के द्वारा इसे दूसरी पत्नी सहित किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र होगा। हालांकि, अगर वसीयत छोड़े बिना उसकी मृत्य हो जाती है (कानूनी भाषा में निर्वसीयत), तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच बाँट दी जाएगी।

यदि पहली पत्नी से तलाक के बाद या पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी होती है, तो दूसरी शादी को कानूनी मान्यता होगी और दूसरी पत्नी को अपने पति की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति में पूरा अधिकार होगा (और अपने पति के क्लास-1 वारिसों के तहत आएगी)।

 

All about property rights of the wife and her children in a second marriage

 

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दूसरी पत्नी: उसकी विभिन्न कानूनी स्थितियां

विभिन्न अदालतों ने केस-टू-केस के आधार पर दूसरी पत्नी के संपत्ति अधिकारों पर अलग-अलग रुख अपनाया है। हम यहां कुछ परिस्थितियों का हवाला दे रहे हैं और बताते हैं कि वे दूसरी पत्नी की संपत्ति के अधिकारों की कानूनी स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।

यदि दूसरी शादी पति की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद हुई हो

चूंकि इस दूसरी शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त है, इसलिए दूसरी पत्नी और उसके बच्चे पति के क्लास-1 कानूनी वारिसों की हैसियत से अपने संपत्ति के अधिकारों का दावा कर सकती है। पहली पत्नी के बच्चों के साथ-साथ दूसरी पत्नी का भी संपत्ति में समान अधिकार होगा।

अगर दूसरी पत्नी ने पहली पत्नी से तलाक के बाद अपने पति से शादी की: तलाक के बाद पत्नी के अधिकार

इस मामले में भी दूसरी शादी वैध है। इसलिए, यह दूसरी पत्नी को उसके पति की संपत्ति में अधिकार देता है। चूंकि मौजूदा कानून के तहत पहली पत्नी का तलाक हो चुका है, इसलिए उसे अपने पूर्व पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा। हालांकि, उसके बच्चे क्लास-1 वारिस बने रहेंगे और पैतृक संपत्ति में अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं।

 

यह भी देखें: उत्तराधिकारी कौन है और विरासत क्या है?

यदि संपत्ति पति और पहली पत्नी के सहस्वामित्व की है

चूंकि संपत्ति के मालिक पति और पहली पत्नी संयुक्त रूप से हैं, पत्नी संपत्ति के अपने हिस्से पर दावा करने में सक्षम होगी। दूसरी पत्नी ऐसी संपत्तियों पर कोई दावा नहीं कर सकती है, चाहे दूसरी शादी की कानूनी स्थिति जो भी हो। हालांकि, पहली पत्नी की मृत्यु की स्थिति में दूसरी पत्नी ऐसी संपत्तियों में दावा कर सकती है।

अगर पहली पत्नी से तलाक हो गया हो: तलाक के बाद पत्नी के अधिकार

पहली पत्नी अपने पति की स्व-अर्जित संपत्ति पर दावा कर सकती है, जिसे पहली शादी के दौरान खरीदा गया था, भले ही दोनों तलाक लेने का फैसला करें। यदि संपत्ति पहली पत्नी और पति के नाम पर पंजीकृत है, तो अदालत हरेक पक्ष द्वारा किए गए योगदान का फैसला करेगी और तलाक के समय संपत्ति का उसीके अनुसार बँटवारा करेगी।

यदि संपत्ति पति के नाम से पंजीकृत है और वह एकमात्र कर्जदार है, तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पहली पत्नी तलाक के समय इस पर दावा नहीं कर सकती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि संपत्ति शादी के बाद खरीदी गई थी। दूसरी पत्नी उस संपत्ति पर दावा कर सकती है।

 

पहली पत्नी से तलाक के बिना दूसरी शादी

यदि हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होता है और पहली पत्नी से तलाक के बिना दूसरी शादी की जाती है, तो दूसरी पत्नी संपत्ति में कोई दावा नहीं कर सकती, क्योंकि उसकी यह शादी अवैध मानी जाएगी।

ध्यान दें कि हालांकि इस्लाम में बहुपत्नी विवाह (एक पुरुष चार पत्नियां रख सकता है) की अनुमति है, लेकिन मुस्लिम पुरुष भी दूसरी शादी नहीं कर सकते यदि वे अपनी पहली पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं।

“यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो पवित्र कुरान के निर्देशों के अनुसार, वह दूसरी शादी नहीं कर सकता,” इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा।

 

पति की स्व-अर्जित संपत्ति में दूसरी पत्नी का अधिकार

किसी व्यक्ति की स्व-अर्जित संपत्ति (self-acquired property) उसके जीवन भर उसकी अपनी होती है और वो किसी भी तरह से वसीयत के जरिए इसे किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र होता है। अपने जीवनकाल के दौरान भी वो इस संपत्ति को जिसे चाहे उसे उपहार के तौर पर दे सकता है।

परिणामस्वरूप, दूसरी पत्नी अपने मृत पति की सेल्फ अक्वायर्ड प्रॉपर्टी पर केवल उसी हालत में दावेदारी कर सकती है अगर मृतक द्वारा कोई वसीयत न छोड़ी गई हो। अगर वसीयत में मृतक ने अपने सेल्फ अक्वायर्ड प्रॉपर्टी किसी और को देने का इरादा ज़ाहिर किया है तो मृतक की इच्छा के हिसाब से ही संपत्ति का बंटवारा होगा।

अगर उसके दिवंगत पति ने वसीयत के द्वारा अपनी स्व-अर्जित संपत्ति किसी दूसरे को दे दिया है, और दूसरी पत्नी को उसकी मृत्यु के बाद इस बारे में पता चलता है, तो ऐसी संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने के लिए उसके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हालाँकि, अन्य आधारों पर वसीयत को चुनौती देने का विकल्प हमेशा खुला रहता है।

 

दूसरी शादी: दूसरी पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार

दूसरी पत्नी, जिसका पति के साथ विवाह कानून के नज़रिए से अवैध माना जाता है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1974 की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण के अधिकार का लाभ नहीं ले सकती है। लखनऊ के संपत्ति कानून के विशेषज्ञ वकील प्रभांसू मिश्रा बताते हैं, “दूसरी पत्नी के बच्चे, जिनकी शादी है वैध नहीं हैं, तब तक भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं जब तक कि नाबालिग हों और स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकते। वे वयस्क होने के बाद भी (अर्थात 18 वर्ष की आयु के बाद) अपने पिता से भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं यदि उन्हें कोई शारीरिक या मानसिक असामान्यता है और वे अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। हालाँकि, यह नियम दूसरी पत्नी की विवाहित बेटी पर लागू नहीं होता है।”

अदालतों ने कुछ मामलों में अपने फैसले देते हुए कहा है कि दूसरी पत्नी, जिसका पति के साथ विवाह अवैध है, वह गुजारा भत्ता का दावा कर सकती है बशर्ते वह यह साबित कर दे कि उसे अपने पति के पिछले विवाह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

मिश्रा कहते हैं कि ऐसे में गुजारा भत्ता देने से मना करने पर दूसरी पत्नी भी पति के खिलाफ कोर्ट में जा सकती है। हालांकि, उसे यह साबित करना होगा कि जब उसके पति की दूसरी शादी हुई थी तब उसे पहली शादी के बारे में अंधेरे में रखा गया था।

हालांकि, विभिन्न अदालतों ने इस पहलू को अलग-अलग तरीके से देखा है। 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने फैसला सुनाया कि दूसरी पत्नी को कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं कहा जा सकता, भले ही उसे उसके पति की पहली शादी के बारे में उसे अंधेरे में रखा गया हो।

अदालत ने कहा, “अगर यह बहस के लिए मान भी लें कि अपीलकर्ता (दूसरी पत्नी) को प्रतिवादी (पति) की पहली शादी के बारे में अंधेरे में रखा गया था, तो उक्त तथ्य के साबित होने पर अपीलकर्ता की इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वह कानूनी रूप से प्रतिवादी की विवाहित पत्नी है।”

 

दूसरी शादी से हुए बच्चों के संपत्ति का अधिकार

दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे – चाहे वैध या अवैध – का अपने पिता की संपत्ति में पहली पत्नी के बच्चों के समान अधिकार है, क्योंकि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के तहत वैध माना जाता है। वे अपने पिता के class-1 के कानूनी वारिस होंगे और उनकी मृत्यु की होने पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के अनुसार संपत्ति के वारिस होंगे।

सुप्रीम कोर्ट का यह भी विचार है कि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे पिता की संपत्ति पर दावा कर सकते हैं, भले ही शादी अवैध हो।

हालाँकि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों को पैतृक संपत्ति को अन्य क्लास-1 वारिसों के साथ साझा करना होगा, वे पिता की स्वयं की अर्जित संपत्ति के एकमात्र मालिक बन सकते हैं, अगर वो ऐसी वसीयत छोड़कर जाते हैं।

वसीयत न होने पर मृत व्यक्ति के सभी कानूनी वारिसों द्वारा स्व-अर्जित संपत्ति पर दावा किया जाएगा।

यह भी देखें: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक हिंदू बेटी के संपत्ति के अधिकार

 

क्लास-1 कानूनी उत्तराधिकारी कौन हैं?

अगर कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े (निर्वसीयत) मर जाता है, तो उसकी संपत्ति पहले क्लास-1 के वारिसों को दी जाएगी। क्लास-1 के वारिसों में शामिल हैं:

  • बेटे
  • बेटियाँ
  • विधवा
  • मां
  • मृत पुत्र का पुत्र
  • मृतक पुत्र की पुत्री
  • मृतक पुत्री का पुत्र
  • मृत बेटी की बेटी
  • मृतक पुत्र की विधवा
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की पुत्री
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की विधवा
  • पूर्व मृत पुत्री की मृत पुत्री का पुत्र
  • मृतक पुत्री की मृत पुत्री की पुत्री
  • पूर्व मृतक पुत्री के पूर्व मृत पुत्र की पुत्री
  • पूर्व मृत पुत्र की मृत पुत्री की पुत्री

क्लास-2 कानूनी उत्तराधिकारी कौन हैं?

यदि कोई क्लास-1 वारिस अपना दावा पेश करने के लिए मौजूद नहीं है, तो मृतक की संपत्ति उसके क्लास-2 उत्तराधिकारियों के बीच विभाजित की जाती है। किसी व्यक्ति के क्लास-2 वारिसों में शामिल हैं:

  • पिता
  • पुत्र की पुत्री का पुत्र (या प्रपौत्र)
  • बेटे की बेटी की बेटी (या परपोती)
  • भाई
  • बहन
  • बेटी के बेटे का बेटा
  • बेटी के बेटे की बेटी
  • बेटी की बेटी का बेटा
  • बेटी की बेटी की बेटी
  • भतीजा
  • भांजा
  • भतीजी
  • भांजी
  • पिता के पिता
  • पिता की मां
  • पिता की विधवा
  • भाई की विधवा
  • पिता का भाई
  • पिता की बहन
  • नाना
  • मां की मां
  • मामा
  • माँ की बहन

यह भी देखें: मालिक की मृत्यु के बाद संपत्ति ट्रांसफर के बारे में सब कुछ जानें

 

दूसरी शादी से जन्मे बच्चों के अधिकार क्या हैं?

यहां विभिन्न धार्मिक कानूनों के तहत दूसरी शादी से जन्मे बच्चों के अधिकारों का उल्लेख किया गया है।

हिंदू कानून

  • यदि दूसरी शादी हिंदू कानून के तहत वैध है, तो दूसरी पत्नी से जन्मे बच्चों को पहली पत्नी के बच्चों के समान संपत्ति में अधिकार मिलेगा।
  • यदि शादी वैध नहीं है, तो दूसरी शादी से जन्मे बच्चे अपने पिता की संपत्ति (स्वअर्जित और पैतृक) पर अधिकार रख सकते हैं, लेकिन संयुक्त पैतृक संपत्ति पर नहीं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के अनुसार, ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे।

पारसी कानून

  • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 की धारा 3 (b) के अनुसार, यदि विवाह अवैध भी हो, तो भी उस विवाह से जन्मे बच्चे को वैध माना जाएगा।

ईसाई कानून

  • ईसाई कानून के तहत, दूसरी शादी या निरस्त (annulled) विवाह से जन्मे बच्चों को वैध माना जाएगा और उनके पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार होगा।

मुस्लिम कानून

मुस्लिम कानून के अनुसार, पिता को अपने अवैध (illegitimate) बच्चे का भरण-पोषण करने की बाध्यता नहीं है। हालांकि, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत, पिता को बच्चे के भरण-पोषण के लिए भुगतान करने का निर्देश दिया गया है।

 

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

द्विविवाह क्या है?

पहले से ही शादीशुदा व्यक्ति से शादी करने को द्विविवाह कहते हैं। मौजूदा कानून किसी व्यक्ति को किसी शादीशुदा व्यक्ति (जिसका जीवनसाथी जीवित हो) से शादी करने की अनुमति नहीं देते हैं।

बहुविवाह क्या है?

एक से अधिक व्यक्तियों से विवाह करने को बहुविवाह कहते हैं। बहुपत्नीत्व उस पुरुष को कहते हैं, जिसकी एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं।

बहुपतित्व क्या है?

किसी महिला द्वारा एक से अधिक पतियों से शादी करने को बहुपतित्व कहते हैं।

 

दूसरी पत्नी के अधिकार: कोर्ट ने जो कहा उसकी नवीनतम जानकारी

पत्नी द्वारा अलग-अलग धाराओं के तहत गुजारा भत्ता मांगने के खिलाफ कोई कानून नहीं: हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पत्नी को दो अलग-अलग क़ानूनों के तहत मुआवजे की मांग करने से रोकता हो। हाईकोर्ट ने अपना फैसले में रजनेश बनाम नेहा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी कानून के किसी एक प्रावधान के तहत गुजारा भत्ता ले रही है, तो अदालत को एक अन्य धारा के तहत गुजरा भत्ता पर फैसला करते समय पत्नी को मिलने वाले गुजारा भत्ता को ध्यान में रखना चाहिए।

 

हिंदू महिला द्वारा पार्टीशन डीड से प्राप्त पारिवारिक संपत्ति विरासत नहीं है: हाईकोर्ट

 कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पंजीकृत विभाजन विलेख (पार्टीशन डीड) के माध्यम से किसी हिंदू महिला द्वारा प्राप्त पैतृक संपत्ति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत विरासत नहीं माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि ऐसी संपत्ति महिला के निधन के बाद पिता के उत्तराधिकारियों के पास वापस नहीं जाएगी।

 

दहेज लेने की वजह से बेटियों का माता-पिता की संपत्ति में अधिकार ख़त्म नहीं होता: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच ने फैसला सुनाया है कि बेटियों की शादी के समय दहेज देने से उनका पैतृक संपत्ति में अधिकार खत्म नहीं हो जाता है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, “भले ही यह मान लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था, इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। बेटियों के अधिकारों को उस तरह खत्म नहीं किया जा सकता, जिस तरह से भाइयों द्वारा पिता के निधन के बाद खत्म करने का प्रयास किया गया है।” कोर्ट ने फैसला उस केस में सुनाया जिसमें एक भाई ने अपनी बहन की सहमति के बिना ट्रांसफर डीड बनवाया था।

 

इद्दत के बाद भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला भरण-पोषण की हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) ने फैसला सुनाया है कि  भारत में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूरे जीवन के लिए CRPC (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 125 के तहत मेंटिनेंस का दावा करने की हकदार है, वरन उसने दूसरी शादी न की हो।  CRPC की धारा 125 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण देने के नियम स्थापित करती है।

फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए, जिसमें निचली अदालत ने शकीला खातून को राहत देने से इनकार कर दिया था, हाईकोर्ट ने कहा, “तलाकशुदा मुस्लिम महिला CRPC की धारा 125 के तहत इद्दत के बाद की अवधि के लिए भी भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है। वह मेंटिनेंस जिंदगी भर ले सकती है, लेकिन अगर वह किसी और से शादी कर लेती है, तो वह इसकी हकदार नहीं रहेगी।
इद्दत पति के निधन के तलाक के बाद की अवधि है जिसमें एक मुस्लिम महिला को दोबारा शादी करने से परहेज करने का निर्देश दिया गया है।

विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चे उसके दूसरे पति की संपत्ति के वारिस बन सकते हैं: हाईकोर्ट 

गुजरात उच्च न्यायालय ने जून 2022 में फैसला दिया कि किसी विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को उसके दूसरे पति से प्राप्त संपत्ति में अधिकार है। कोर्ट ने आगे कहा कि ये तब भी वैध होगा जब बच्चे शादी के बगैर या अवैध संबंध से पैदा हुए हों।

 

फिर से शादी करने से समझौता नहीं खत्म किया जा सकता: हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति अपनी पूर्व पत्नी से दोबारा शादी करने के बाद पहले कोर्ट में तय किए गए गुजारा भत्ते की रकम देने से नहीं मुकर सकता.
हाईकोर्ट ने कहा, “एक बार जब कोर्ट के सामने मामला निपट जाता है. और कोर्ट  कोर्ट दोनों पक्ष के बीच हुए समझौते को रिकॉर्ड कर लेता है. केवल इसलिए क्योंकि प्रतिवादी (आरोपी) ने फिर से शादी कर ली है, तो याचिकाकर्ता  तय हुए समझौते के अंतर्गत गुजारा भत्ते पर सवाल नहीं उठा सकता, अगर ऐसा होता है, तो इसे धोखा माना जाएगा.”

एक मामले में, एक कपल ने साल 2006 में शादी की और उनकी शादी 2015 में समाप्त हो गई जिसके बाद दोनों के बीच समझौता हुआ.   समझौते के अंतर्गत तय हुआ कि पति को स्थायी गुजारा भत्ता के तौर पर पत्नी को 30 लाख रुपये देने होंगे.

 

पति की दूसरी शादी को शून्य घोषित करने के लिए पहली पत्नी मांग सकती है : उच्च न्यायालय

3 अगस्त, 2023: हिंदू  विवाह  अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत पहली पत्नी का आवेदन विचारणीय है, जिसमें उसने अपने पति की दूसरी शादी को शून्य घोषित करने की मांग की है, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है। पहली पत्नी को उसकी अवैधता के आधार पर दूसरी शादी को रद्द करने के लिए कानूनी सहारा लेने की अनुमति देते हुए, उच्च न्यायालय ने दूसरी पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। “अगर पहली पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत राहत मांगने से वंचित हो जाती है, तो यह अधिनियम के उद्देश्य और इरादे को विफल कर देगा। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा, ‘हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5, 11 और 12 के तहत कानूनी रूप से विवाहित पत्नियों को दी जाने वाली सुरक्षा ऐसी स्थिति में महत्वहीन हो जाएगी।

 

पति की स्व-अर्जित संपत्ति में गृहिणी पत्नी का बराबर का हिस्सा: हाईकोर्ट

25 जून, 2023: गृहिणी पत्नियों का उनके पतियों द्वारा खरीदी गई संपत्ति में बराबर हिस्सा होता है क्योंकि वे परिवार की देखभाल करके अधिग्रहण में योगदान देती हैं, मद्रास उच्च न्यायालय (HC) ने फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने कन्नयन नायडू एवं अन्य बनाम कमसला अम्मल एवं अन्य मामले में अपना फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की।

उन्होंने कहा, ‘कोई भी कानून न्यायाधीशों को पत्नी द्वारा संपत्ति खरीदने के लिए अपने पति को सुविधाजनक बनाने के लिए किए गए योगदान को मान्यता देने से नहीं रोकता है. मेरे विचार में, यदि संपत्ति का अधिग्रहण परिवार के कल्याण के लिए दोनों पति-पत्नी के संयुक्त योगदान (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) द्वारा किया जाता है, तो निश्चित रूप से, दोनों समान हिस्से के हकदार हैं, “एचसी ने 21 जून, 2023 के आदेश में कहा।

 

पहली शादी होने पर दूसरे पति से गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती पत्नी: हाईकोर्ट

30 मई,2023: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के नियम हैं कि अगर किसी महिला का अपने पहले पति से तलाक अदालत द्वारा डिक्री नहीं दिया जाता है तो उसकी दूसरी शादी वैध नहीं है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार दूसरी पत्नी नए पति की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के रूप में योग्य नहीं होगी, और इस प्रकार सीआरपीसी की धारा 125 के तहत हकदार नहीं होगी।  सीआरपीसी, 1973 की धारा 125 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के रखरखाव के बारे में बात करती है।

सरकारी कर्मचारी की दूसरी पत्नी पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने बताया कि अगर पहली शादी से तलाक लिए बिना किसी सरकारी कर्मचारी से शादी हुई है तो उसकी दूसरी पत्नी पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं है।

अदालत ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि राज्य सरकार के नियमों के तहत, मध्य प्रदेश में कोई भी सरकारी अधिकारी पहली आधिकारिक अनुमति के बिना दूसरी बार शादी करने का हकदार नहीं है, भले ही उसका पर्सनल लॉ उसे ऐसा करने की अनुमति देता हो।

 

पत्नी के खिलाफ गुजारा भत्ता मांगने के खिलाफ कोई कानून नहीं: हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून का कोई प्रावधान नहीं है जो पत्नी को दो अलग-अलग कानूनों के तहत मुआवजे की मांग करने से रोकता हो। हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए रजनीश बनाम नेहा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी को कानून के एक प्रावधान के तहत गुजारा भत्ता मिल रहा है तो अदालत को पत्नी को मिलने वाले गुजारे भत्ते को ध्यान में रखना चाहिए जबकि दूसरी धारा के तहत गुजारा भत्ता सुनिश्चित करना चाहिए।

 

हिंदू महिला को विभाजन विलेख के जरिए मिली पारिवारिक संपत्ति विरासत में नहीं: हाईकोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पंजीकृत विभाजन विलेख के जरिए हिंदू महिला को  मिली पैतृक संपत्ति हिंदू  उत्तराधिकार कानून के तहत विरासत की श्रेणी में नहीं आ सकती। अदालत ने कहा कि नतीजतन, ऐसी संपत्ति महिला के निधन के बाद उसके पिता के वारिसों को वापस नहीं जाएगी।

 

दहेज मिलने से माता-पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार नहीं टूटता: हाईकोर्ट

बंबई उच्च न्यायालय की गोवा पीठ ने कहा है कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में उनका अधिकार इसलिए समाप्त नहीं होता क्योंकि उनकी शादी के समय दहेज दिया गया था।

पीठ ने कहा, ‘अगर यह मान भी लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया तो इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाता. बेटियों के अधिकारों को उस तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता था जिस तरह से पिता के निधन के बाद भाइयों द्वारा उन्हें समाप्त करने का प्रयास किया गया है, “पीठ ने उस मामले में अपना आदेश देते हुए कहा जहां एक भाई ने अपनी बहन की सहमति के बिना स्थानांतरण विलेख किया है।

 

तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत के बाद भी गुजारा भत्ता की हकदार: हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिला यदि दूसरी शादी के लिए अयोग्य घोषित नहीं की जाती है तो वह आजीवन गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार है। सीआरपीसी की धारा 125 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने के नियमों को स्थापित करती है।

 

विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चे सौतेले पिता की संपत्ति के वारिस हो सकते हैं: हाईकोर्ट

विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को उसकी संपत्ति में अधिकार होता है जो महिला अपने दूसरे पति से प्राप्त करती है, गुजरात उच्च न्यायालय ने जून 2022 में आयोजित किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह तब भी सच है जब बच्चे विवाह से या अवैध संबंध के माध्यम से पैदा हुए थे।

गृहिणी पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि पति द्वारा गृहिणी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति और आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं होने पर उसे परिवार की संयुक्त संपत्ति की श्रेणी में रखा जाएगा। उच्च न्यायालय ने 15 फरवरी, 2024 को दिए अपने आदेश में कहा कि ऐसी संपत्ति प्रथम दृष्टया संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बन जाती है।

“यह अदालत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत इस तथ्य के अस्तित्व को मान सकती है कि एक हिंदू पति द्वारा अपने पति या पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति, जो एक गृहिणी है और उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, परिवार की संपत्ति होगी, क्योंकि सामान्य घटना में हिंदू पति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है,  जो गृहिणी है और उसके पास परिवार के लाभ के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है, “अदालत ने कहा।

Housing.com का पक्ष

संपत्ति का उत्तराधिकार एक जटिल विषय है और जब इसमें दूसरी शादी शामिल हो तो यह और भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे मामलों में किसी पेशेवर वकील से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है, जो आपको विस्तृत जानकारी और सही मार्गदर्शन प्रदान कर सके।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

दूसरी पत्नी के कानूनी अधिकार क्या हैं?

दूसरी पत्नी के कानूनी अधिकार उसकी शादी की कानूनी स्थिति से निर्धारित होते हैं। अगर शादी वैध है, तो दूसरी पत्नी को भी पहली पत्नी के समान कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।

पति की संपत्ति में दूसरी पत्नी के क्या अधिकार हैं?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, दूसरी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में वही अधिकार है जो पहली पत्नी का होता है, अगर शादी पहली पत्नी से तलाक या उसके निधन के बाद हुई हो।

क्या दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर दावा कर सकती है?

नहीं, दूसरी पत्नी उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती जो कानूनी रूप से पहली पत्नी की है।

क्या हिन्दू दो शादी कर सकता है?

अगर पहला पति/पत्नी जीवित है या दूसरी शादी के समय पूर्व पति/पत्नी के बीच तलाक नहीं हुआ है, तो कानून दूसरी शादी को मान्यता नहीं देता है।

दूसरी पत्नी के बच्चों के संपत्ति के अधिकार क्या हैं?

दूसरी पत्नी के बच्चों को भी पहली पत्नी के बच्चों के समान अधिकार प्राप्त हैं। सभी बच्चे क्लास- 1 के वारिस श्रेणी में आते हैं और उनकी पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदारी के हकदार होते हैं।

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को jhumur.ghosh1@housing.com पर लिखें
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